त्रिपुरा के इतिहास, दर्शन, संस्कृति, साहित्य, विज्ञान, अध्यात्म आदि पर आधारित एक विस्तृत काव्यात्मक रचना (कविता):
"त्रिपुरा! तू केवल राज्य नहीं, तू शाश्वत संस्कृति की साक्षी है।"
(डॉ. राघवेंद्र मिश्र: लेखक/रचनाकार)
त्रिपुरा! त्रिकाल की चिर धारा, शस्य-श्यामला, ज्योति अपारा।
जहाँ राजमाला गाथा गाती, मनिक्य वंश की वंशावली आती।।
गोमती, माणु, हाओरा निर्झर, जैसे वेदों के स्वरलहर।
पर्वत, वन, और बांस बगिचा, सजीव यहाँ हर एक सींचा।।
त्रिपुरा सुंदरी की भक्ति धारा,तंत्र साधना का आदि सहारा।
शक्ति की पीठ, तत्त्व की गाथा,साक्षात ज्ञान-सिद्धि की माथा।।
कोकबोरोक बोले जनमन, लोकगाथा जैसे ऋषिगन।
बंग भाषा से आलिंगन करती,संस्कृति की बाँहें हर दिल भरती।।
राजमाला, शास्त्र, उपाख्यान, देते त्रिपुरा को गौरव प्राण।
ज्ञान-विज्ञान की शिक्षायें फैलीं, गाँव-गाँव में दीपक बाण।।
विश्वविद्यालय जहाँ विचार सजे, एनआईटी से हो सब महान।
गाँवों में आयुर्वेदिक ज्ञान, जड़ी बूटी का होता सम्मान।।
होजागिरी की लय में थिरकन, खरचुम्बा में नर्तन अर्चन।
थंगता, गरिया, रीति दर्पन,सजती संस्कृति, मन सपर्पन।।
बीर बिक्रम की तेज़ कलम, भारत माँ को जोड़े शुभ मन।
एकीकरण का स्वप्न बन,भारतवर्ष का प्यारा जन।।
बांग्लादेश मुक्ति की बेला, त्रिपुरा बना भारत का मेला।
शरणार्थी हो या वीर सैनिक,यह भूमि बनी सेवा का रेला।।
समरसता का भाव अपार, भारतीय जनजाति का प्यार।
धर्म अनेक, पर आत्मसार, विश्वबंधुत्व का सुंदर यार।।
हिंदू बौद्ध तांत्रिक सहधारी, योग, प्रेम, समभाव की सवारी।
संघर्ष भी, समाधान भी है,त्रिपुरा है एक जीवंत कियारी।।
त्रिपुरा! तू केवल राज्य नहीं, तू शाश्वत संस्कृति की साक्षी है।
तू भारत मां का गौरव गान है, तेरे चरणों में मेरा प्रणाम है।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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