Friday, 9 May 2025

नागालैंड की संस्कृति, इतिहास, भूगोल, दर्शन, विज्ञान, साहित्य, शिक्षा, समरसता और विश्व बंधुत्व को समेटती एक काव्यात्मक मेरे द्वारा रचित कविता:

"हे नागा भूमि! तू सिर्फ़ धरा नहीं है, तू संस्कृति, साहस, सौंदर्य की शान"
(डॉ. राघवेंद्र मिश्र : लेखक/रचनाकार)

पूर्वोत्तर की शांत शिराओं में, झरनों के मीठे स्वर में।
बसा जहाँ जन-जन का सपना,वह नागालैंड है अमूल्य अपना।।

वन पर्वत से लिपटी धरती, झूम खेती की गूंज सुगंधित।
बांस की बस्ती,रेशों की छाया, यहाँ प्रकृति स्वयं गुरु बन भाया।।

कोन्याक,आओ,अंगामी कबीले,मिलकर रचते संस्कृति के रिले।

हॉर्नबिल नाचे, स्वर थिरके, हर नृत्य में जीवन के तत्त्व झलके।।

न कोई शास्त्रों की वेदनाएं, मगर गाथाएँ लोकों में छाए।
कहानी बनती गीतों में, धुनें रचतीं हैं इतिहास को प्रीतों में।।

धरती से प्रेम, नभ से नाता, प्रकृति के हर कण में आत्म पाता।
वन की पूजा,जल की आराधना,आध्यात्म की शक्ति है साधना।।

प्रकृति के गुणों से जुड़ी धरा, मगर मूल्यों में सजी परा।सामूहिकता, सेवा, सरलता, नागा जीवन की यही कोमलता।।

बचपन से शिक्षा की जोत जली, विद्यालयों में स्वप्नों की कलियाँ खिलीं।
विश्वविद्यालय, ज्ञान, स्कूलों का संग, आशा का दीपक जला हर अंग।।

आरोग्य जहाँ बूटियों का ज्ञान, वनवासी विज्ञान का सम्मान।
जड़ी-बूटियों से रोग हटे, आधुनिकता में भी नागा डटे।।

बुनाई, चित्र, काष्ठकला, हाथों की यह सच्चाई भला।
लोकगीतों की लहरें चलतीं, जीवनकथा,वाद्य, स्वरों में पलती।।

नागालैंड, तू भारत का हार, हर मोती तेरा अनोखा उपहार।
सैनिक, खिलाड़ी, मधुरसंगीत बजे,विश्व मंच पर तेरा नाम सजे।।

सभी जन अलग, मगर हृदय समान, भाषा भिन्न, पर भावों में मान।
समरसता का संकल्प महान, विश्व बंधुत्व का तुझमें गान।।

हे नागा भूमि! तू सिर्फ़ धरा नहीं है, तू संस्कृति, साहस, सौंदर्य की शान।
तेरे चरणों में अर्पित प्रणाम, तू भारत का अनमोल जान।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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