डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
“बोलो भारत! क्या तुम जानें, कौन तुम्हारा अपना है?”
(रचनाकार: डॉ. राघवेन्द्र मिश्र)
बोलो भारत! क्या तुम जानें,
कौन तुम्हारा अपना है?
किसके आँचल में है सूखा,
किसके माथे सपना है?
कौन पढ़ा है, कौन अड़ा है,
किसके द्वार न रोटी आई?
किसके बच्चे अब भी रोते,
किसने पुस्तक छू न पाई?
गांव-गांव में गीत बची है,
पर गीतों के रचयिता कहां?
किस लोहार की थाप बुझी है,
किसी छुपे जुलाहे का जहां?
जाति नहीं कोई दीवारें हैं,
वे तो परिचय का दर्पण हैं,
जो बिछुड़ गए इस भीड़ में,
उनकी आवाज समर्पण हैं।
यदि न गिनोगे अब तुम उनको,
कैसे नीति बनेगी रे?
बिन पहचाने क्या उपचार हो,
बिन आँकड़ें पीड़ा टलेगी रे?
जाति-गणना नहीं विभाजन है,
यह तो आँसू मापेगी,
जो घुप अंधेरे में बैठे थे,
उन्हें उजाले बाँटेगी।
गिनती से डर क्यों भारत को?
जब न्याय हो अंतिम लक्ष्य,
जनगणना से ही तो होगा,
समता का रथयात्रा सत्य!
@Dr. Raghavendra Mishra
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