डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
(लेखक: डॉ. राघवेन्द्र मिश्र)
जातियों की गिनती नहीं,
यह पहचान का स्वर है।
वंचितों की पीड़ा का,
अब आँकड़ों में उज्वर है।
1931 की छाया से,
आज भी नीतियाँ चलतीं,
बिना सम्यक् आधार के,
अधूरी योजनाएँ पलतीं।
शिक्षा में जो पीछे हैं,
वे दिखते नहीं नज़रों को,
इस गणना से मिलेगा स्वर,
शोषित हुए मन के हजरों को।
कहाँ हैं वे हस्तकार,
जो रचते लोक-संस्कृति,
जाति के आँकड़े खोलेंगे,
हमारी सच्ची विरासतो की सुकीर्ति।
राजनीति में जो छूट गए,
प्रतिनिधित्व से कोसों दूर,
अब जनगणना लाएगी,
उनके अधिकारों का नूर।
न्यायालय की वाणी भी कहे,
"बिन आँकड़े न हो आरक्षन",
यह है संविधान की पुकार,
न्याय की सच्ची परिभाषा बन।
संदेहों के धुंध छटेंगे,
यदि नीति हो निष्पक्ष,
गोपनीयता, पारदर्शिता से,
बनेगा नया सामाजिक चित्र सुविपक्ष।
यह जनगणना नहीं मात्र गिनती,
यह भविष्य की नींव है।
जहाँ हर वर्ग को मिलेगा स्थान,
जहाँ समरसता ही नीति की घीव है।
@Dr. Raghavendra Mishra
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