Friday, 9 May 2025

सिक्किम पर आधारित एक काव्यात्मक कविता, जिसमें संक्षेप में सिक्किम का इतिहास, दर्शन, भूगोल, संस्कृति, विज्ञान, अध्यात्म, समरसता और विश्वबंधुत्व के विविध काव्यात्मक कविता के रूप में रचा गया है :

"हे सिक्किम! तू केवल भूखंड नहीं,
तू जीवन की वह गति है,
जो प्रेम, प्रकृति, प्रज्ञा और परंपरा
सभी के संतुलन की रति है।
"

(लेखक/रचनाकार : डॉ. राघवेन्द्र मिश्र)

हिमगिरि की छाया में लिपटा,
शांति का अनुपम उपहार,
जहाँ प्रकृति के सुर में बहता
मानवता का मधुर विचार।
वह भूमि जहाँ चरण पड़े जब,
जागे ज्ञान-विवेक-संस्कार
वही है मेरा प्यारा सिक्किम,
भारत की पूजा, प्राणाधार।।

इतिहास के पृष्ठों में उज्ज्वल,
नामग्याल की छवि महान,
राजसिंहासन से भी ऊँचा,
सादगी का रहा विधान।
लेपचा-भूटिया की गाथा,
संघ की मृदुल शुभ परिभाषा,
जनमत भारत मन से जुड़ा जब,
बने अखंड राष्ट्र की भाषा।।

दर्शन में वह बौद्ध विचारों का,
गम्भीर, समर्पित, मौन स्वभाव,
रुमटेक, ताशीदिंग मठ बोलें,
"ध्यान से मिलते ब्रह्मभाव।"
करुणा के नयन विशाल,
पथिक बने संत और बुद्ध,
अंतर्यात्रा का बन बसेरा,
सिक्किम तेरा हर पग विशुद्ध।।

भूगोल का यह स्वर्ण गहना,
कंचनजंघा शीश समान,
तीस्ता-रंगीत कलकल करतीं,
जैसे प्रकृति का मधुर गान।
हिम, वन, घाटी, पुष्प, सुगंध,
पर्यावरण की रक्षा में अपर्ण,
भारत को जैविक संदेशा,
सिक्किम ने दिया सहज भाव तर्पण।।

भाषा में है गीत कई,
नेपाली की सरगम लहराए,
लेपचा की मधु बोली बहे,
भूटिया की गूंज सुलझाए।
साहित्य की मौन परंपरा,
लोकगीतों में जीवन बहे,
तिब्बती सूत्रों से लेकर
जनजन में सद्गुण रहे।।

ज्ञान विज्ञान का यह दीपक,
जैविक कृषि में शुभ वरना,
सुविद्या, औषधालयों में
सत्व संवेदन की सजीव गणना।
सोवा, रिग्पा हो या योग,
चिकित्सा बने समर्पण भाव,
मन से तन तक साधे जो,
वह सिक्किम की सहज नाव।।

शिक्षा में नवचेतना जागे,
SMU की गाथा जानो,
साक्षरता की ऊँचाई में
आत्म प्रकाश का स्वर मानो।
विद्यालय हों या पवित्र मठ,
हर शिष्य बने युगद्रष्टा,
गुरुकुल से विश्वविद्यालय तक
सिक्किम बने संस्कृति सुरक्षा।।

संस्कृति का दिव्य संगम यह,
त्यौहारों की रँगोली न्यारी,
लोसार, बुमचू, दशैं दिवाली,
सबमें छिपी एक ही क्यारी।
प्रेम, सहयोग, मानवता,
अर्थ में विविध, मूल में एक,
बहुजातीय इस समरस भूमि पर,
बँधता है मन निर्मल नेक।।

विश्वबंधु भाव का संदेश,
सिक्किम देता मौन स्वीकृति,
जाति धर्म की सीमाओं में
ना बँधता उसका मृदु संस्कृति।
संघ, समन्वय, सद्भाव की
सुगंध उड़ाए सात जान
सिक्किम बना हिमलोक समान,
मानवता के अमृत पथ का गान।।

"हे सिक्किम! तू केवल भूखंड नहीं,
तू जीवन की वह गति है,
जो प्रेम, प्रकृति, प्रज्ञा और परंपरा
सभी के संतुलन की रति है।
भारत का मुकुट ही नहीं,
विश्व मानवता की तू प्रेरणा सुमति है।।"

@Dr. Raghavendra Mishra 

No comments:

Post a Comment