Thursday, 8 May 2025

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र 

"पूर्वोत्तर भारत" की महिमा पर आधारित एक काव्यात्मक कविता, जिसमें उत्तरपूर्व भारत का इतिहास, संस्कृति, भूगोल, धर्म और राष्ट्रीय एकता की भावना को सुचारू रूप से समाहित किया गया है :

"पूर्वोत्तर की वंदना"
(लेखक/रचनाकार: डॉ. राघवेन्द्र मिश्र)

जहाँ उगता सूरज पहले, पर्वत चूमे नीला गगन,
हरियाली की चादर ओढ़े, बहता शांति सरस सुमन।
वो भूमि नहीं बस सीमांत, भारत की धड़कन है,
पूर्वोत्तर है वह दीपक, जो भारत तन में अर्पण है।

असम का गाता राग बीहू, ब्रह्मपुत्र की वीणा तानें,
शंकरदेव की भक्ति से, जन मन मधुमय गानें।
कामाख्या की ज्योति जले, शक्ति वहाँ विराजे,
संघर्षों में भी सत्य चले, सौहार्द जहाँ साजे।

अरुणाचल पर्वतों का पुत्र, तवांग में तारे उतरे हैं, 
बुद्ध के मंत्रों की गूँज में, हिम की चोटी भी झूमे हैं।
डोनी पोलो, सूर्य-चंद्र, प्रकृति पूजा का उपहार,
रक्षा का प्रहरी बन खड़ा, बढ़ाता भारत का सत्कार।

मणिपुर की रासलीला, राधा माधव का मधुर प्रणय,
थांग-ता की गूँज में बोले, शौर्य जहाँ अमर सनय।
लोकटक की छाती पर, फूलों का राजमहल,
इम्फाल की धरती गाए, आज़ादी का मधुर फल।

मेघालय, जहाँ कहा करें, संगीत से संवाद,
खासी-गारो नृत्य रचें, वर्षा में उत्सववाद।
शालीनता, मातृवंश की छाया,
प्रकृति का मंदिर है यह, भारत की अमूल्य माया।

मिजोरम के घाटों पर, चेरव नृत्य जब चलता है,
संघर्षों से निकलकर अब, विकास पथ पर बढ़ता है।
सद्भाव, सेवा, समरसता, यहाँ का सत्य संदेश,
भारतमाता की कोख से, उपजा यह स्वदेश।

नागालैंड का हॉर्नबिल, पंख फैलाए गान करे,
नागा योद्धा, वीर परंपरा, अखंड संधान धरे।
संवाद से शांति की राह, भारत का अपनापन,
जाति धर्म से ऊपर उठकर, गूँजे राष्ट्रभाव का प्रण।

त्रिपुरा की त्रिपुरासुंदरी, शाक्त शक्ति का स्थल,
कोकबोरोक, बंगाली स्वर में, गूंजे आत्मबल।
माणिक्य वंश की गाथाएँ, गौरव का इतिहास कहें,
भारत की बाहों में बँधा, ये प्रदेश अमर रहें।

सिक्किम, हिम का उज्ज्वल दीप, बौद्ध तपोभूमि पावन,
कंचनजंघा की चोटी बोले, यह भारत का आँगन।
लेपचा, भूटिया, नेपाली गीत, समरसता के अंग,
धर्म और विज्ञान यहाँ, चलते सदैव संग।

ये आठ रत्न, पूर्व दिशा के, भारत का अभिमान,
संस्कृति, भाषा, धर्म भले हो अलग, पर आत्मा एक महान।
एकता की मिसाल हैं ये, विविधता के रंगों में,
भारत माँ की बगिया में, फूल खिले अनगिनत अंगों में।

जयतु भारत! जय पूर्वोत्तर! संस्कृति का अद्भुत स्वर,
एक सूत्र में पिरो रहा है, अखंड राष्ट्र हो अजर अमर।
वीर जवान, संत, किसान, शिक्षक, कवि, पुजारी,
सब मिलकर गाते भारतवंदन, एक चेतना प्यारी।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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