Wednesday, 7 May 2025

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

सिख धर्म के दसों गुरुओं के जीवन, योगदान और प्रेरणाओं को सारगर्भित रूप में प्रस्तुत करती है यह कविता :

"दस दीप सिख धर्म के, दिव्य ज्योति की गाथा"
(डॉ. राघवेन्द्र मिश्र)

नानक दीप जला प्रथम, इक ओंकार की बानी दी,
जाति-पांति का भेद मिटा, हर दिल में रवानी दी।
चार दिशा में चले उदासी, सत्यधर्म का स्वर गूंजा,
संगत, पंगत, नाम सुमिरन, जीवन का संबल पूंजा।।

अंगद गुरु ने अक्षर रचे, गुरुमुखी को आकार दिया,

शब्दों में साधना पिरोई, सेवा से संसार दिया।
बालकों को ज्ञान दिया, श्रम को जीवनधर्म बनाया,
शिष्यत्व की मर्यादा में, अनुशासन का दीप जलाया।।

अमरदास ने लंगर रचाया, समता की परिपाटी दी,

नारी को नव दृष्टि मिली, मानवता को शुभ माटी दी।
मंझियों से सिख समाज, संगठित हुआ, दृढ़ हुआ,
राहत धर्म की मर्यादा, हर जीवन में स्थिर हुआ।।

रामदास ने रच दी अमृतसर की पावन थाती,
उत्तम श्लोकों से बाँधी, जीवन की सुन्दर परिभाषा साथी।
शब्द बाणी की धारा बही, भक्ति में रस की धार सही,
हर हृदय में बसे गुरबानी, जीवन की मधुर बानी कही।।

अर्जुन देव ने ग्रंथ संजोया, आदिग्रंथ की वाणी में,

हरमंदिर का ज्योतिरमय चित्र, बना सेवा-पर्वाणी में।
शहीद हुए सतधर्म हेतु, चढ़ा सत्य का जो सूरज,
जलती रहीं सिख आत्माएं, बलिदान बना अमर पूरज।।

हरगोबिंद ने दी दो तलवारें, मीरी और पीरी का जोश,
शक्ति और भक्ति का संयोग, धर्मयुद्ध का सच्चा रोष।
अकाल तख्त से निकली हुंकार, अन्याय को ललकार मिली,
शस्त्रधारी संन्यासी बन, धर्मबल एक ओंकार मिली।।

हरराय थे करुणा सागर, पुष्पवत कोमल उनका दिल,
वन औषधियों का संग पालक, आयुर्वेद बना उनका मिल।
प्रकृति के थे सखा सुहाने, शांति संयम उनका पहचान,
दया स्नेह की सिख परंपरा में, प्रेमपूर्ण उनका व्याख्यान।।

हरकृष्ण बाल गुरु बन आए, चेचककाल में सेवा दी,
नन्हें हाथों से चमत्कार, मानवता को मेवा दी।
दुखियों का जो मीत बना, खुद कष्ट में हँसता रहा,
दिल्ली ने देखा दिव्य प्रकाश, बचपन में गुरु बसता रहा।।

तेग बहादुर बलिदानी, हिंद की चादर कहलाए,
धर्म हेतु शीश दिया, सत्य अधिकार सिखलाए।
कश्मीरी ब्राह्मणों की रक्षा, बने वीरता की परिभाषा,
चाँदनी चौक बना तीर्थ, सत्य के नाम की आशा।।

गोबिंद सिंह, गुरु अंतिम, कवि, योद्धा, संत महान,
पाँच प्यारे से रच दिया, खालसा का निर्मल अभियान।
चार पुत्रों का बलिदान, धर्म की रक्षा में दिया,
गुरु ग्रंथ को अंतिम गुरु, यह अमर विधान किया।।

दस दीपों से ज्योति बही, सिख धर्म का एक रेखा,
सेवा, साहस, संतुलन, सत्य बना धर्म का विशेष लेखा।
नाम, दान, शस्त्र और शास्त्र सबका अनुपम मेल,
गुरु परंपरा की वाणी से, अमर रहे यह खेल।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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