सिख धर्म के दस गुरुओं और उनके ग्रंथों पर आधारित एक सुन्दर कविता :
"दस गुरु और अमर ग्रंथ"
(डॉ. राघवेंद्र मिश्र द्वारा रचित)
एक ओंकार की बानी से, गुरु नानक ने दी सिख सवेरा।
ईश्वर, सेवा, नाम जपें, यही सच्चा राज द्वारेरा।।
गुरु अंगद ने लिपि सँवारी, गुरमुखी का दिया उपहार।
भाषा से ज्ञान बहे जन-जन में, मिटे अज्ञान अंधकार।।
गुरु अमरदास ने लंगर चलाया, समता का दिया संदेश।
नारी-पुरुष सभी हैं सम, यही धर्म का सच्चा भेष।।
रामदास जी ने नगर बसाया, अमृतसर प्यारा कहलाया।
हरिमंदिर की नींव रखी, भक्ति भाव का दीप जलाया।।
गुरु अर्जुन ने ग्रंथ रचाया, "आदि ग्रंथ" जो बाद में कहलाया।
शहीद हुए धर्म के खातिर, अमर नाम इतिहास में छाया।।
हरगोबिंद ने तलवार उठाई, "मीरी-पीरी" नीति सिखाई।
संत-सिपाही बना सिख जग, सच्ची शक्ति की राह दिखाई।।
हरराय ने फूलों को पूजा, शांति सुधा से जग को भिगोया।
औषधि सेवा, करुणा बानी, धर्ममार्ग फिर से संजोया।।
हरकृष्ण बालक देव महान, दिल्ली में दिए सेवा में प्रान।
बीमारों को जीवन दिया, गुरु रूप में बना पहचान।।
तेग बहादुर बलिदानी, धर्म रक्षा की थी ठानी,
कश्मीरी पंडितों के हित, शीश दिया, यही है गुरु की कहानी।।
गुरु गोविंद सिंह, वीर महान, बनाए खालसा, दिए पहचान,
पाँच प्यारे, अमृत संचार, भरत बने फिर सारा संसार।।
कहा 'अब ग्रंथ ही गुरु होगा', वाणी में ही ब्रह्म का जोगा,
'गुरु ग्रंथ साहिब' बना प्रकाश, सिखों का वह जीवन होगा।।
दसम ग्रंथ भी अमर कथा, वीर रस की वो पुण्य गाथा।
जाप साहिब, चंडी दी वार, शब्दों में रमा है माथा।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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