“मां के आँचल में स्वर्ग है बसता”
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
मां के आँचल में स्वर्ग है बसता,
उसके साये में जीवन है मिलता।
चाँदनी सी वो हर रात में,
ज्ञान जैसी चमके हर बात में।।
मां के आँचल में स्वर्ग है बसता...
जब थक जाए जीवन की राहें,
मां की गोद बने गंगाजल की बाहें।
उसके स्पर्श में जादू ऐसा,
दर्द भी मुस्कान पहन ले वैसा।।
मां के आँचल में स्वर्ग है बसता...
वो भूखी रह जाए कई बार,
पर हमें दे भरी थाली हर बार।
त्याग और प्रेम की वो मूरत है,
सदैव हमें मां की ज़रूरत है।।
मां के आँचल में स्वर्ग है बसता...
न किसी किताब में ऐसा ज्ञान,
न किसी मंदिर में वो स्थान।
मां की सेवा ही है तीरथ सच्चा,
उसके बिना जीवन अधूरा बच्चा।।
मां के आँचल में स्वर्ग है बसता...
नमन करें मां के चरण धूल को,
जहाँ स्वर्ग खिलता है उस मूल को।
मां के आँचल को प्रणाम करें,
उससे अच्छा न कोई काम करें।।
मां के आँचल में स्वर्ग है बसता,
उसके साये में जीवन है मिलता।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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