तृतीय अध्याय
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
नाट्यशास्त्र के तृतीय अध्याय पर आधारित काव्यात्मक रचना, जिसमें नाट्यगृह के उद्घाटन (उद्योतन), पूजन विधि, जर्जर का अभिषेक, वाद्य-पूजन, नर्तकियों का नीराजन तथा रंगमण्डप की प्रदीप्ति का भावभरा चित्रण है किया गया है:
॥ नाट्यगृह का उद्योतन ॥
(नाट्यशास्त्र अध्याय ३ पर आधारित काव्यात्मक कविता)
जब पूर्ण हुआ मण्डप निर्माण, तब पूजन का क्रम आया,
व्रती, पवित्र, नाट्याचार्य ने, एकाग्र मन से ध्यान लगाया।
लाल धागे की कंकण रचना, चंदन लाल चढ़े अंग,
लाल पुष्प, लाल फल, अक्षत, पूजन हेतु हों संग।
जौ, सरसों, प्रियंगु-फल, नागपुष्प का हो चूर्ण,
खीलें, चावल, मण्डल सजें, विधिवत पूजन पूर्ण।
सोलह हस्त हो मंडल का व्यास, चार द्वार हों चारों ओर,
बीचों बीच रेखाएँ खिंचे, पूजन हो देवताओं की कोर।
चारों दिशा में देव विराजें, यथाविधि हो कक्ष्य-विभाजन,
सबसे अंत जर्जर की पूजा, करे विघ्नों का संहारन।
श्वेत वस्त्र हो जर्जर के सिर पर, पर्व अनुसार रंग बदलें,
रुद्र के दिन नीलवस्त्र, विष्णु के दिन पीत सरलें।
स्कन्द के दिन रक्त हो अर्पण, मृड के दिन हो चित्र वस्त्र,
धूप, माला, चंदन सहित, हो पूजा भावभ्रष्ट।
वाद्यों को ढक दें वस्त्रों से, फिर करें उनका पूजन,
गंध, माला, भक्ष्य, भोज्य से, हो प्रेमपूर्ण अर्पन।
फिर अग्नि जली यज्ञ सम, मशालों से नीराजन,
राजा, नर्तकी, मंडली सारी, हो उज्जवल अभिनन्दन।
मंत्रसिक्त जल से प्रोक्षण कर, कहे नाट्याचार्य सप्रेम,
"हे कुलश्रेष्ठ! गुणसम्पन्नो! तुम्हें मिले यश, धन, नेम।"
दीपिका से फोड़े घटिका, करे रंगपीठ प्रज्वलित,
जगमग उठे रंगभूमि सारी, जैसे हो यज्ञ का अनुष्ठित।
बिन पूजन प्रयोग न होवे, यह शास्त्रों का है वचन,
अनुचित अभिनय क्षण में जला दे, जो न जला सके ज्वालापन।
@Dr. Raghavendra Mishra
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