Tuesday, 6 May 2025

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (सदस्य, काशी विद्वत परिषद, विजिटिंग एक्सपर्ट प्रोफेसर, NSD, नई दिल्ली)

सोनभद्र: दार्शनिक एवं धार्मिक चेतना से वैश्विक एकता की ओर” विषय पर एक शोधपरक लेख:

"सोनभद्र: ऋषियों के दार्शनिक, आध्यात्मिक एवं धार्मिक चेतना से वैश्विक एकता की ओर"

डॉ. राघवेंद्र मिश्र (सदस्य, काशी विद्वत परिषद, विजिटिंग एक्सपर्ट प्रोफेसर, NSD, नई दिल्ली)

(लेखक संस्कृत भाषा, साहित्य दर्शन तथा भारतीय संस्कृतिऔर सभ्यता के विद्वान शोधकर्ता हैं)

उत्तर प्रदेश का दक्षिणी सिरा "सोनभद्र " केवल खनिज और ऊर्जा की दृष्टि से नहीं, बल्कि भारत की धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक चेतना के केंद्र के रूप में भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह वह भूमि है जहाँ ऋषि परंपरा, अघोरी साधना, जनजातीय प्रकृति पूजा और धार्मिक सहअस्तित्व की महान गाथा यथार्थ रूप में जीवित है। आज जब भारत वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना के साथ वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर है, तब सोनभद्र जैसे क्षेत्र उसकी सांस्कृतिक आधारशिलाओं को वैश्विक मंच पर दृढ़ता प्रदान करते हैं।

दार्शनिक एवं धार्मिक परंपराएँ: सहिष्णुता और समावेशिता की प्रयोगभूमि

सोनभद्र का धार्मिक स्वरूप बहुधर्मी और बहुसांस्कृतिक है। यहाँ अगोरी परंपरा की शिव उपासना, वैदिक ऋषियों की तपःभूमियाँ, जनजातीय इको-आध्यात्मिकता और सूफ़ी-संतों के मानवतावादी विचार — सभी एक साथ पनपते हैं। अघोरेश्वर महाकाल की आराधना जहाँ जातिवाद, संप्रदायवाद, और सामाजिक भेदभाव से परे वैराग्य और करुणा का संदेश देती है, वहीं गोंड, कोल, भुइयाँ समुदायों की प्रकृति पूजा विश्व भर में उभर रही पर्यावरणीय अध्यात्मवाद की अवधारणा को मजबूत करती है।

धार्मिक पर्यटन: आस्था से संवाद तक

विजयगढ़ दुर्ग, लखनिया गुफा, रेणुकूट मंदिर और रिहंद जलाशय जैसे स्थल न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा के केन्द्र हैं, बल्कि धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से भी सोनभद्र को उत्तर भारत के प्रमुख स्थलों में स्थान दिलाते हैं। ये तीर्थस्थल केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि भारत के सांस्कृतिक राजदूत बनकर देश और विदेश के लोगों को जोड़ने का कार्य कर रहे हैं।

एकता की प्रयोगशाला: ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ का जीवंत उदाहरण

यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित है। फलतः यहाँ की धार्मिक परंपराएँ बहुभाषी, बहुजातीय और बहुसांस्कृतिक मिलन का स्वरूप धारण कर लेती हैं। रामलीला, झूमर, नवदुर्गा नाट्य, सूफी कव्वालियाँ और लोकगीत इन विविधताओं को एक सूत्र में बाँधते हैं। सोनभद्र की सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना भारत की एकता में विविधता की अवधारणा को यथार्थ रूप देती है।

वैश्विक आयाम: अध्यात्म से अंतर्राष्ट्रीय संवाद

आज जब विश्व सस्टेनेबल डेवलपमेंट, इंटरफेथ हार्मनी, और ग्लोबल योग कल्चर की ओर उन्मुख है, सोनभद्र की धार्मिक विरासत इन सभी में योगदान देने में सक्षम है। अगोरी साधना की समदृष्टि, योग और तंत्र विद्या की प्राचीन परंपराएँ, जनजातीय पर्यावरण चिंतन – सभी वैश्विक बौद्धिक विमर्शों में भारतीय दृष्टिकोण को सशक्त करते हैं।

शोध और नवदृष्टि की संभावनाएँ

सोनभद्र केवल श्रद्धा का क्षेत्र नहीं, यह शोध का स्वर्णिम क्षेत्र है। यहाँ पुरातत्व, नृविज्ञान, धर्म-दर्शन, पर्यावरणीय अध्यात्म, और लोक साहित्य पर बहुआयामी अध्ययन की संभावनाएँ विद्यमान हैं। यदि विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों और नीति-निर्माताओं का ध्यान इस ओर केंद्रित हो, तो सोनभद्र भारत के आध्यात्मिक पुनर्जागरण का वैश्विक केन्द्र बन सकता है।

अन्ततः सोनभद्र कोई सीमावर्ती जिला मात्र नहीं, यह भारत की धार्मिक चेतना, सांस्कृतिक सहिष्णुता और वैश्विक मानवतावाद का साक्षात् संयोग स्थल है। आज की विभाजित होती दुनिया को यदि कोई मार्गदर्शन दे सकता है, तो वह है — सोनभद्र जैसे क्षेत्रों की वह जीवनशैली, जहाँ धर्म केवल पूजा न होकर, सह-अस्तित्व, संवाद, और समरसता की संस्कृति है।

भारत की एकता, विश्व की मानवता और प्रकृति के साथ संतुलन — तीनों के लिए सोनभद्र एक संदेशवाहक बन सकता है।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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