Wednesday, 7 May 2025

15.

काश्मीर शैवदर्शन की सम्पूर्ण परंपरा, आचार्यों, ग्रंथों और दर्शन की भावधारा को समाहित करती यह काव्यात्मक कविता है :


शिवभावसार...

(लेखक/रचनाकार डॉ. राघवेन्द्र मिश्र)


आदि शिव की संकल्प धारा, ज्यों स्पन्दित हो विश्व विशाल।


अविकल्प चैतन्य का सिन्धु, त्रिकमन्त्रों में प्रकट कराल।।


मालिनीविजयोत्सव जागा, विज्ञानभैरव ने गूढ़ सांचा,


शिवसूत्र की ओंकार रागिनी, वसुगुप्त का ऋषिमन बाचा।। 


कल्लट ने स्पन्द का स्वर जोड़ा, प्रज्ञा की गूढ़ तरंगें दीं।शब्दातीत शिव के स्पर्श से, चेतन ध्वनि की उमंगें दीं।।


सोमानन्द बोले “शिव दृष्टि में, स्वपर अभिज्ञान का बीज है।”


उत्पल ने प्रत्यभिज्ञा गूंथी, “त्वं एव अहं” का यही भाव सजीव है।।


अभिनवगुप्त योगेश्वर, ग्रंथों की सृष्टि स्वयं विराट।


तन्त्रालोक में ब्रह्म तत्त्व, रसवेदना का भाव सम्राट।।

नाट्यशास्त्र का भावोद्गम, “रस इव परमानन्द” कहा,

शिव ही रंगमंच बना, जीव बना अभिनेता वहां।।


क्षेमराज गुरुसेवक वंद्य, सरल हृदय में ज्ञान उजास।


प्रत्यभिज्ञा-हृदयम् उन्मीलित, शिवत्व के रहस्य का प्रकाश।।

भट्टनायक रसमीमांसा, समरसता में अद्वैत मिला,

शिवदर्शन का मधुर संगीता, तंत्रवेद का राग खिला।।


फिर समय की बाढ़ में डूबे, ग्रंथ, मनीषा, योग संपदा।

पर लक्ष्मणजू ने दीप जलाया, फिर चेतना पाई सुख जनपदा।।उनके कंठ से गूंजे सूत्र, "तव हृदयेऽहं" की ध्वनि बही,


कश्मीरी शिव का गान बना, साक्षात् ब्रह्म की अभिव्यक्ति सही।।


हे साधक! तू भी कर प्रतीति, जो शिव है, वही तव रूप।

अभिनव चेतन शून्य नहीं है, स्पन्दन ही है तव स्वरूप।।

वेद, तंत्र, योग सभी कुछ, शिवदर्शन में सुमानित है,


शिव न भूते, न भविष्यति सदा तुम्हारे निकट समाहित हैं।।


@Dr. Raghavendra Mishra

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