डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
अखण्ड भारत के अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर के महान राजा ललितादित्य मुक्तापीड पर आधारित लेख:
संपादकीय प्रकाशन हेतु
ललितादित्य मुक्तापीड : कश्मीर का भूला हुआ सम्राट, भारत का विश्वविजयी ध्रुवतारा
भारतीय इतिहास के पन्नों में कुछ ऐसे तेजस्वी नक्षत्र हैं जिनकी दीप्ति समय के कुहासे में ओझल हो गई है। ऐसे ही एक विस्मृत गौरव का नाम है महाराज ललितादित्य मुक्तापीड। कश्मीर की पुण्यभूमि से 8वीं शताब्दी में उदित हुए इस सम्राट ने केवल एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना नहीं की, बल्कि धर्म, संस्कृति, स्थापत्य और शासन-प्रबंधन की एक ऐसी मिसाल कायम की, जो आज भी प्रेरणास्पद है।
ललितादित्य कर्कोट वंश के राजा थे, जिनका उल्लेख सर्वप्रथम राजतरंगिणी (रचयिता – कल्हण, 12वीं शताब्दी) में मिलता है। कल्हण उन्हें एक चक्रवर्ती सम्राट के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिन्होंने न केवल सम्पूर्ण उत्तर भारत को एकता के सूत्र में पिरोया, अपितु अरब, तिब्बत, मध्य एशिया और दक्षिण भारत तक अपना सैन्य परचम लहराया। उन्होंने अरब आक्रांताओं को पीछे धकेलकर उत्तर-पश्चिम भारत की सीमाओं की रक्षा की, जो तत्कालीन विश्व राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में एक असाधारण उपलब्धि थी।
महाराज ललितादित्य का व्यक्तित्व केवल युद्ध-विजय तक सीमित नहीं था। वे एक गहरे सांस्कृतिक दृष्टिकोण वाले सम्राट थे। उन्होंने अनेक मंदिरों, नगरों और सरोवरों का निर्माण करवाया, जिनमें मार्तण्ड सूर्य मंदिर विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यह मंदिर न केवल भारतीय स्थापत्य-कला का उत्कर्ष है, बल्कि यह बताता है कि कश्मीर, जो आज सांस्कृतिक संघर्षों का केंद्र बना हुआ है, कभी भारतीय संस्कृति का ध्रुव रहा है।
ललितादित्य की धर्मनिष्ठा सर्वसमावेशी थी। वे वैदिक परंपरा के अनुयायी होते हुए भी बौद्धों और अन्य संप्रदायों के प्रति सहिष्णु थे। वे केवल तलवार के सम्राट नहीं, विचार और ज्ञान के भी संरक्षक थे। उनके शासनकाल में कश्मीर एक ज्ञान, कला और शक्ति का त्रिवेणी केंद्र बन गया था।
वर्तमान संदर्भ में जब कश्मीर को उसकी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान से जोड़ने की आवश्यकता अनुभव की जा रही है, तब ललितादित्य जैसे राजाओं की स्मृति को पुनर्जीवित करना अत्यंत आवश्यक है। उन्हें पाठ्यपुस्तकों, वृत्तचित्रों और लोकगीतों का हिस्सा बनाकर युवा पीढ़ी को उनकी विरासत से जोड़ा जाना चाहिए। इससे न केवल ऐतिहासिक न्याय होगा, बल्कि राष्ट्रचेतना को भी एक सशक्त आधार मिलेगा।
आज भारत को जिस समन्वयी नेतृत्व, दूरदर्शिता, और आत्मविश्वास की आवश्यकता है, उसकी जीवंत मिसाल ललितादित्य मुक्तापीड में मिलती है। उन्हें केवल 'कश्मीर के राजा' कहकर सीमित कर देना उनके ऐतिहासिक महत्त्व का अपमान है। वे संपूर्ण भारतवर्ष के थे—एक विश्वविजयी सम्राट, जिनकी गाथा हर भारतीय को जाननी चाहिए।
लेखक:
डॉ. राघवेंद्र मिश्र
(संस्कृत भाषा, साहित्य दर्शन तथा भारतीय संस्कृति एवं इतिहास के अध्येता)
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