मणिपुर की गरिमा, सांस्कृतिक वैभव, इतिहास, दर्शन और योगदान को समाहित करती काव्यात्मक कविता :
"मणिपुर पूर्व दिशा की रत्नदीपिका"
(रचयिता : डॉ. राघवेन्द्र मिश्र)
पूर्व दिशा की रत्नदीपिका, सदा सुगंधित पर्वत धारा।
जहाँ नित्य जागे रासमाधुरी, भक्ति संस्कृति की उजियारा।।
राजर्षि भगीचंद्र की वाणी, जहाँ बन गई कृष्ण गाथा।
मीतेई की जनधर्म चेतना, लिखे स्वयं ने ‘पुया’ पाथा।।
शब्द जहाँ हो शास्त्र समाना,भाव जहाँ ब्रह्म को छू आना।।
वहाँ मणिपुर, वह धरती है, जहाँ गूंजे जय कृष्ण का गाना।।
लोकतक की तरल दृगनीरा, फुमदी पर तैरे ध्येय महान।
केइबुल का तैरता उपवन, जहाँ प्रकृति सिखाए विज्ञान।।
मीतेई, कुकी, नागा, खासी, बंधुता में बँधे विविध विचार।
धर्म यहाँ है जीवन नाट्य, शुभ रासलीला ब्रह्म का सार।।
वनचर, जलचर, वनमाली, सबमें तत्त्वबोध का हार।
ठांग-ता में हो संयमशक्ति, संगीत में हो योग अपार।।
मीतेई मायेक की लिपि पुनः, जाग उठी नव ज्योति समान।
ग्रंथों में छिपी प्रकृतिविद्या, शास्त्र बने अब जन प्रान।।
संगाई नाचे वीर नृत्य में, धरा बने सौंदर्य असमान।
जहाँ चीराबा, निंगोल चकुबा, बाँटें प्रेम का हर अरमान।।
नारी गरिमा, कुल-संस्कार, जहाँ पूजित हो मातृ समान।
गाथाएँ हैं पुयाओं की, जो कहें चिरंतन की शान।।
मैरीकॉम की शक्ति गाथा, मीराबाई का मन प्रकाश।
क्रीड़ा से लेकर ज्ञान क्षेत्र तक, मणिपुर का उज्ज्वल आश।।
हे भारत! तू गर्व करे, मणिपुर है, तेरा तिलक महान।
संस्कृति का वह रत्नगृह, जहाँ नित्य बजता श्रीहरिगान।।
विश्वबंधुता की सजीव झाँकी, पूर्वोदय का वह मान है।
सहिष्णुता, समरसता, समन्वय, मणिपुर की अमर पहचान है।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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