मेघालय के विविध पक्षों पर आधारित एक विस्तृत काव्यात्मक रचना (काव्यात्मक कविता के रूप में) :
मेघों का घर "मेघालय"
(डॉ. राघवेन्द्र मिश्र द्वारा रचित)
मेघों का घर, पर्वतों की गोद,
हरियाली लिपटे जैसे हो गांव।
चेरापूंजी की रिमझिम बूँदें,
गाएँ प्रकृति की मधुर छाँव।।
खासी, गारो, जयंतिया वंश,
सभ्यता जिनकी उज्ज्वल हंस।
लोकगीत में गूँजें पुरखे,
धरती बने जहाँ आदर्श अंश ।।
अरण्य जड़ी की है विद्या,
जीवित पुलों की अनुपम रचना।
वृक्षों से सीखा जीवन ज्ञान,
धरती पर मानवता का बसना।।
बोलियाँ मीठी खासी, गारो,
प्नार में गाथा जनमन का।
शत्रु भी पहुँचे वहां तक,
पर ना टूटा ज्ञान चिंतन का।।
नृत्य ताल में है धर्म विवेक,
त्योहारों में छुपा संदेश।
कबीलाई ढोल, गीतों के बोल,
शांति, बंधुत्व, प्रेमदेश।।
गगन के नीचे ज्ञान का दीप,
NEHU और IIM की छांह।
भारतीय शिक्षा में ऊँचाई,
बौद्धिकता की यह सच्ची राह।।
बाँसों की झोंपड़ी, पत्तों की छत,
परंपरा में है विज्ञान जचा,
झूमे कृषि, जलसंरक्षण,
प्रकृति के संग है जीवन रचा।
भारतमाता की अनुपम संतान,
पूर्व के सीमा का प्रहरी महान,
विश्वबंधुत्व के हम हैं शान,
समरसता के हम सुंदर गान।
@Dr. Raghavendra Mishra
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