माँ शब्द विश्व की भाषाओं और संस्कृतियों में आधारित कविता
"माँ" पर आधारित एक काव्यात्मक रचना, जिसमें विश्व की भाषाओं और संस्कृतियों में प्रयुक्त शब्दों को भावात्मक रूप में लेखक के द्वारा रचा गया है
माँ एक मन्त्र, माँ एक गीत, माँ एक ब्रह्म की बानी,
जिसे जानें सभी, जग में चाहे भाषा हो अनजानी।
रचनाकार: डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
जब शिशु ने ली पहली साँस,
मुख से निकला माँ एक ही आश।
ना भाषा सीखी, ना वर्ण पहचाना,
पर हृदय ने केवल माँ को जाना।।
संस्कृत बोली "माता, जननी", अंबा,
हिंदी कहती "माँ", तो है जगदंबा।
तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, सबने कहा "अम्मा",
मराठी ने पुकारा "आई", माँ बंगाली अम्बा।।
अंग्रेज़ी में वह बनी "मदर",
फ्रेंच में गूंजी "ममां" की लहर।
जर्मन बोला "मुटर", स्पेनिश कहे "माद्रे",
हर ध्वनि में छिपी है ममता की आद्रे।।
अरबी ने कहा "उम्म", फारसी में "मादर",
तुर्की की धुन में बसी "अन्ने" का सादर।
चीनी बोला "मामा", जापानी ने गाया "हाहा",
कोरियाई की गोद में "ओमनी" का बहता नाहा।।
रूसी की बर्फीली राहों में "मात" की मीठी छाया,
ग्रीक ने कहा "मितेरा", हिब्रू में "इमा" का साया।
थाई, वियतनामी, इंडोनेशिया, लाओस की गली-गली,
“मे”, “इबु”, “मा” बनकर, वह दुनिया में चली–चली।।
आयरिश की परियों ने पुकारा "माथैर",
माओरी की वनों में गूँजा "व्हाएआ" का आभैर।
अफ़्रीका में वह "मामा", योरूबा ने कहा "इया",
हर कोने में, हर भाषा में, माँ ही सबसे प्रिया।।
माँ केवल शब्द नहीं, माँ शुभ माथा है,
माँ सांस्कृतिक चेतना की गाथा है।
वह अन्नपूर्णा, वह सरस्वती, वह गंगा की धारा,
वह वेदों की जननी, वह प्रेम का संसारा।।
"माँ" वह स्वर है, जो धड़कनों से पहले धड़कता है,
"माँ" वह स्पर्श है, जो जन्म से पहले सिहरता है।
हर संस्कृति, हर भाषा में वह एक ही रूप,
जग के हर कोने में उसका उत्तम स्वरूप।
भाषा चाहे कोई भी हो, नाम चाहे हो जैसा,
माँ का प्रेम, माँ की ममता, सभी जग में वैसा।
माँ एक मन्त्र, माँ एक गीत, माँ एक ब्रह्म की बानी,
जिसे जानें सभी, जग में चाहे भाषा हो अनजानी।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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