महात्मा गौतम बुद्ध
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
लुम्बिनी के वन में खिला, एक करुणा का मूल,
शुद्धोधन महामाया के, घर जन्मा शाक्यकुल का फूल।
राजमहल में लालन पालन, सुख वैभव का हार,
पर हृदय में उठती थी करुणा, सनातन का था सार।।
जरा, व्याधि और मृत्यु ने, जब चेताया मन,
त्याग दिया वह सिंहासन, साधक बना जीवन।
बोधिवृक्ष के नीचे बैठा, चित्त किया निर्विकार,
ज्ञान रूपी रश्मियों से, पाया बोध साकार।।
दुःख का दर्शन, कारण जाना, निरोध का पथ खोला,
आष्टांगिक मार्ग दिखाकर, जीवन का लक्ष्य बोला।
अनित्य, अनात्म, क्षणभंगुरता का सुंदर गान,
सनातन से विश्व को दिया, शांति प्रेम का ज्ञान।।
सारनाथ की भूमि पे, घुमाया धर्मचक्र विशेष,
पाँच शिष्यों को बांटा, सत्य का अमृत अशेष।
संघ की स्थापना कर, सनातन का पाठ पढ़ाया,
सभी जीव के भेद मिटाकर, प्राणीवाद को अपनाया।।
"अत्त दीपो भव:" कहकर, आत्मदीप जलाया,
"अहिंसा परमो धर्मः" का, अमर मंत्र सुनाया।
मोह, द्वेष, तृष्णा को त्यागो, चित्त को शुद्ध बनाओ,
मैत्री करुणा के पुष्पों से, जीवन को महकाओ।।
देश काल की सीमाओं से, ऊपर उठकर बोले,
सर्वजन हिताय, सुखाय पथ, करुणा के रंग खोले।
चीन, जापान, श्रीलंका तक, शांति सुगंध फैलाई,
मानव मात्र को बंधुत्व की, मधुर सुरभि पिलाई।।
नालंदा, विक्रमशिला जैसे, विद्यापीठ बनाए,
तर्क, चिकित्सा, वास्तुशिल्प में, नव पथ खोज दिखाए।
अशोक, कनिष्क राजाओं ने, जग में किया विकास,
धम्म की ध्वनि से गूँजा, संपूर्ण धरा आकाश।।
कुशीनगर में देह त्यागी, पर लोकों में बसे,
बुद्धत्व की ज्योति जलाई, युगों युगों तक हँसे।
संस्कृति की धरोहर में, बुद्ध बने अभियान,
शांति, समता, करुणा का, वह अद्भुत वरदान।
बुद्धं शरणं गच्छामि,
धम्मं शरणं गच्छामि,
संघं शरणं गच्छामि।
@Dr. Raghavendra Mishra
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