बुद्ध की वाणी, शांति की कहानी
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
लुंबिनी की वसुंधरा बोली,
जागा आज करुणा का मोती।
शुद्धोधन के कुल में आये,
सिद्धार्थ बने जीवन ज्योति।।
महलों में था सुख का आलोक,
पर मन पूछे जीवन का शोक।
जरा, व्याधि, मरण के दर्शन ने,
खोल दिए चिंतन के लोक।।
राजसिंहासन त्याग दिया,
सत्य की राह को पथिक चले।
बोधिवृक्ष के नीचे साधन में,
ज्ञान का दीपक स्वयं जले।।
"अत्त दीपो भव" का सन्देश,
अहिंसा, शील, करुणा का भेष।
मध्यम मार्ग का अमृत धारा,
मिटा दिया अज्ञान जग सारा।।
वैशाख पूर्णिमा का यह पर्व,
तीन बार पुण्यस्मृति का गर्व।
जन्म, ज्ञान, निर्वाण की वेला,
बुद्धम शरणं गच्छामि का मेला।।
दान, धर्म, करुणा का संकल्प,
मानवता का शाश्वत विकल्प।
बुद्ध की वाणी पूजे सब भूप,
शांति, समता, प्रेम स्वरूप।।
आज भी जगत के सभी मन में,
बुद्धमय है जीवन का फूल।
मोह, तृष्णा के तम को हरकर,
जग में फैले मैत्री का मूल।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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