Tuesday, 6 May 2025

 "सोनभद्र – तप की धरा, दर्शन की ज्योति"

(लेखक: डॉ. राघवेन्द्र मिश्र)

विंध्यक्षेत्र की छाया में, जो भूमि तपोभूमि कहाई,
अगस्त्य, ऋष्यशृंग, वशिष्ठ को जहाँ साधना लीन दिखाई।
वन, गिरि, गुफा, नदियों का संग, योगमय जीवन प्रवाहित,
हर कण में दर्शन का स्पंदन, अध्यात्म वहाँ बहता सुस्रावित।।

दार्शनिक दीप जले हर घाटी, वेदों की प्रतिध्वनि सुनाई,
षड्दर्शन की छाया में हर वृक्षों ने साधकता अपनाई।
न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, जीवन में हो गए साकार,
लोक में रह कर भी ऋषि वहाँ, बनते थे ब्रह्म के अंग हार।।

लखनीयादरी की गुफा कहे, ध्यान की प्रतिमा खड़ी जहाँ,
मौन साधना, प्राचीन योग चुपचाप कथा कहे वहां।
प्रकृति बनी गुरु वहाँ जनजाति, पेड़-पत्थर, जल ही देव्य,
धरती से जो जोड़ सके, वह है धर्म यही है सच्चा सेव्य।।

शैव, वैष्णव, शाक्त परंपरा, सँग सनातन स्नेहिल संचार,
रेणुकूट, अगोरी दुर्ग से उठे भक्ति के सुर अपार।
छठ की लहर, रामलीला की गूंज, चुर्क की महक भली,
सोनभद्र की यह धरती सिखाए, हर धर्म में एकतामयी फली।।

अघोरी की समदृष्टि वृष्टि दे, मृत्यु से भी प्रेम करें,
शव को शिव कह साधे जो, वह मानवता में मर्म भरें।
जाति धर्म से परे खड़ा जो, श्मशान को मंदिर माने,
वह 'अघोर' अज्ञान से पार का दीपक है, जो सबको पहचाने।।

हर पर्वत, गुफा, नदी यहाँ शोधार्थी को दे संकेत,

इतिहास नहीं, यह वर्तमान ज्ञानयोग का सच्चा अंकेत।
योग की मूर्तियाँ बोल उठें, मौन भी देता संदेश,
सोनभद्र का प्रत्येक श्वास, दर्शन का बन जाए जनदेश।।

यह भूमि नहीं बस खनिजों की, न विद्युत-शक्ति की खान,

यह है भारत के आत्मज्ञान की, शाश्वत अमूल्य पहचान।
ओ शोधक! ओ साधक! सुन ले, यहाँ सत्य का स्वर बहता,
सोनभद्र है वो दीपशिखा, जो युगों-युगों तक रहता।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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