Tuesday, 6 May 2025

सोनभद्र: इतिहास की जीवित गाथा

(डॉ. राघवेंद्र मिश्र द्वारा सोनभद्र की ऐतिहासिक काव्यात्मक प्रस्तुति)

विंध्य-गिरी की गोद में बसा,
सोन नदिया का प्यारा तट।
जहाँ चट्टानों पर अंकित हैं,
प्राचीन जीवन के शाश्वत वट।।

गुफाओं में बोलती हैं गाथा,
नवपाषाण के मानव का।
चित्रों में गूंजती स्मृतियाँ,
आदिकाल की साधना नीति का।।

ऋषि श्रृंग की ऋचाएँ जहाँ,
वशिष्ठ के तप की ध्वनि बजे।
लोपामुद्रा के शुद्ध विचार,
अगस्त्य की साधना रंग सजे।।

दण्डक वन का गहन विस्तार,
महाभारत का दृश्य यहाँ।
यज्ञकुण्ड की राख में छिपा,
वेदों का आदिसत्य जहाँ।।

मौर्य, गुप्तों की छाया आई,
शुंगों का यश भी गूँजा था।
फिर चेरो राजाओं ने रचा,
किलों का गौरवपूर्ण कथा।।

विजयगढ़ की दीवारें कहें,
राजत्व की प्रतिज्ञा का स्वर।
अगोरी दुर्ग की शिला सहेजे,
प्रहरियों का निष्ठा सुस्वर।।

जनजातियों की आत्मगाथा,
कोल, गोंड, भुइयाँ की बात।
धरती से गूंथे उनके स्वप्न,
प्रकृति के संग उनका नात।।

कहते हैं पत्थर भी यहाँ,
इतिहासों की भाषा में।
और हवाएँ फुसफुसाती हैं,
वेद ऋचाओं की आशा में।।

अंग्रेज़ों के पदचिन्ह आए,
पर यह भूमि रही अडिग खड़ी।
आजादी के सूरज से पहले,
थी चेतना यहाँ संजीव पड़ी।।

१९८९ की एक सुबह,
जनपद का सम्मान मिला।
‘ऊर्जा की राजधानी’ कह,
नव युग का प्रारंभ खिला।।

हे सोनभद्र! तू केवल भूखंड नहीं,
एक जीवित शास्त्र, एक इतिहास है।
तू शिल्प भी है, तू शब्द भी है,
तू साधना, तू विश्रांति व्यास है।।

गूंजे तेरा यश युगों युगों तक,
शोधपथ पर दीप जलाए।
हर विद्यार्थी, हर जिज्ञासु को,
तेरा अतीत राह दिखाए।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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