"ऑपरेशन सिंदूर, रणचंडी का आह्वान"
(लेखक: डॉ. राघवेंद्र मिश्र)
सिंदूर नहीं ये रंग मात्र है,
ये शक्ति का अमर अंग है।
माँ दुर्गा की ज्वाला इसमें,
हर राक्षस का महादंड है॥
यह माँ की माँग की रेखा,
यह कुल धर्म का घोष है।
जिसने इसे मिटाने चाहा,
आतंकी को मरा यह जोश है।।
कश्मीर की पुकार बनी है,
सभी सिंदूरों की बात।
यह आँसू नहीं प्रतिज्ञा है,
अब होगी पापों पर घात॥
रामायण फिर जीवित होगी,
सीता के हरण पर शंख बजे।
द्रौपदी की लाज के रक्षक,
अब अर्जुन रणभूमि सजे॥
नारी का अपमान जहाँ हो,
भारत वहाँ सुशांत नहीं।
हम वह राष्ट्र हैं जो उठते,
अब नारी लाचार नहीं॥
ना ये प्रतिशोध, ना क्रोध मात्र,
यह धर्मरथ का प्रहार है।
“धर्मो रक्षति रक्षितः” की,
हर सीमा पर हुंकार है॥
अब वज्र बनेगी हर भुजा,
अब शस्त्र उठेगा मंत्र संग।
यह सेना नहीं अकेली है,
इसमें बसा देवों का रंग॥
हे निर्लज्ज! हे आतंकी पाप!
सुन ले आज भारत की शान।
हर चीरहरण की सीमा पर,
अब आएगी चंडी की तान॥
सिंदूर बचेगा, धर्म जिएगा,
नारी गरिमा सदा अमर।
रणभूमि में गूंजेगा फिर,
“जयतु भारत! जयतु शंकर!”॥
यह युद्ध नहीं बस रणकला है,
यह संस्कृति की महा पुकार।
ऑपरेशन सिंदूर बना अब,
धर्मयुद्ध का वज्र विचार॥
@Dr. Raghavendra Mishra
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