Tuesday, 6 May 2025

 डॉ. राघवेन्द्र मिश्र 

कविता: "ज्ञान की गाथा, सोनभद्र की वाणी में..."
(साहित्यिक व शैक्षणिक पक्ष पर आधारित कविता)

सोनभद्र की धरती बोले, कथा कहे हर ग्राम,
शब्दों में संचित यहाँ, जन-मन का अभिराम।
न काग़ज़ की पीठ पे, न ही किताबों में,
यहाँ साहित्य गूंजता है, झोपड़ियों के स्वरों में।।

वीरगाथा गाती माँ, सोहर रचता प्रेम,
भुइयाँ की झूमर में, धरा नाचे है छेम।।
कोलों की कथा-कहानी, जंगल की जुबान,
हर बोली में बसता है, भारत का गुमान।।

लोकगीतों की छाया में, इतिहास जीवित है,
बिना लेखनी के भी यहाँ, कवित्व समाहित है।
नारी की पीड़ा हो या श्रम का जयगान,
हर स्वर में होता है, जीवंत आत्मगान।।

पर शिक्षा का दीपक अब, धीर धीरे जले,
अंधकार में उजाला, बच्चों की आंखों में पले।
आश्रम की पाठशालाएं, पर्वतों के पास,
ज्ञान की ज्योति जलाए, सच्चाई के साथ।।

राजकीय विद्यालयों में, उम्मीदें मुस्कुराती,
वनवासी सेवा आश्रम, चुपचाप दीप जलाती।
पढ़ती है बेटियाँ अब, सपनों को थाम के,
शब्दों में पंख भरतीं, दृढ़ नारी धाम के।।

शोध के पथिकों आओ, देखो ये अनमोल भूमि,
जहाँ गीतों में छिपी है, लोक-संस्कृति की लयरूप रश्मि।
जहाँ शिक्षा है साधना, संघर्ष की ये सानी,
सोनभद्र की बस्तियों में, गूंजे ज्ञान वानी।।

यहाँ कलम नहीं बस बोलते हैं लोग,
हर बुज़ुर्ग है पुस्तक, हर बच्चा है योग।
साहित्य और शिक्षा का अद्भुत मेल है यहाँ,
सोनभद्र जनपद, भारत का मूक लेकिन गर्वित ज
हाँ।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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