Saturday, 31 May 2025

नानाजी देशमुख : एक जीवन गाथा

(सेवा, शिक्षा और सनातन धर्म के दीपक को समर्पित)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

जन्म हुआ उस धरती पर, जहाँ अद्वितीय पर्वत गाते,
महाराष्ट्र की माटी थी वह, पर कर्मभूमि उत्तर को पाते।
नाम था बालक का नाना, पर सोच थी देश से प्यारी
बाल गंगाधर से प्रेरित होकर, थामी हिंदुत्व की क्यारी।।

भूख ने जब प्रश्न किया, नयन हुए अश्रु से गीले,
मन कहता ज्ञान है पथ, पढ़ो, दुख से मत हो पीले।
स्कॉलरशिप से बना सपना, साधु की रसोई तक आए,
पर संघ की शाखा में पहुँचे, तब भाग्य के दीप जलाए।।

गुरु गोलवलकर मुस्कुराए, कहा “प्रचारक बनो तुम्हीं,”
और भेजा उत्तरप्रदेश को, जहाँ शिक्षा की बस कमी।
नानाजी ने उठाया बीड़ा, कहा "संघ को स्कूल चलाना होगा,"
संघ ने कहा "पाँच नहीं, दो दशक सोचते हैं हम योगा।"

गोरखपुर बना प्रयोगभूमि, 1952 में दीप जला,
सरस्वती शिशु मंदिर खुला ज्ञान का दीपक फला।
पाँच बरस बीते, बच्चों की भीड़ उमड़ने लगी,
नानाजी बोले अब और स्कूल खोलें, ये नीति बनने लगी।।

संघ ने कहा “अभी नहीं,” पर एक दिन दृश्य विचित्र मिला,
प्रवेश परीक्षा में रोता बच्चा, नानाजी का हृदय द्रवित खिला।
जो स्वयं शिक्षा के लिए रसोई में खड़ा हुआ,
कैसे देखे कोई बालक, ज्ञान से वंचित, रोता हुआ?

नागपुर को भेजा संदेश “ज्ञान सबका हो अधिकार,”
गोलवलकर ने अबकी बार कहा “खोल दो शिक्षा के द्वार।”
विद्यालयों की श्रंखला चल पड़ी, गाँव-गाँव दीप जले,
जनसंघ, विहिप, संघ सब मिलकर शिक्षा का रथ ले चले।।

जब 1975 आया, संख्या सौ से ऊपर हो गई,

विद्या भारती नाम से, धारा शिक्षा की बहे नई।
देवरस बोले जात-पात की रेखा मिटानी है,
सभी बालक पाठशाला में यही एक निशानी है।।

नानाजी का संकल्प गहरा, शिखर छूते राजनीति का,
पर जब सत्ता ने हाथ जोड़े, दीप जलाते शुभनीति का।
राजमाता ने कहा “लौटो”, पर उत्तर आया भाव से भरा,
राजाराम नहीं, मैं पूजक हूँ वनवासी राम का गहरा।।

चित्रकूट बना तपोवन, ग्रामोदय हुआ संकल्प,
सेवा, शिक्षा, संस्कार यही बना जीवन का विकल्प।
प्रधानमंत्री ने बुलवाया, राष्ट्रपति ने किया सम्मान,
पर नानाजी के लिए पद नहीं, सेवा ही रहा ब्रह्मज्ञान।।

मोहन भागवत उद्घाटन में बोले "याद आता है वो दिन,
नाना ने कहा एक स्कूल और बनवा देना, मेरा यही है चिन्ह।

आज 34 लाख बालक पढ़ते, ज्ञान की गंगा बहती,
जहाँ जाति, धर्म, भेद नहीं बस राष्ट्रसेवा रहती।।

नानाजी देशमुख ने बताया, जोड़ो भारत को ज्ञान से,

वनवासी को भी शिक्षा दो, त्याग, तपस्या और सम्मान से।

नमन उस युगपुरुष को, जिनकी दृष्टि थी दूरगामी,
जिन्होंने शिक्षा को बनाया धर्म और सेवा के स्वामी।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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पढ़-लिख के रोज़गार माँगीला

(शिक्षित बेरोज़गार युवाओं की पुकार)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

पढ़-लिख के रोज़गार माँगीला,
पर साथ में बहुत ज्ञान राखिला।
डिग्री के बोझा ढोवत बाटीं,
जब हो भूख, खाई चोखा बाटी ।।

मा-बाप के सपना पल पल टूटा,
रात-रात भर जागेला तन।
कोचिंग, परीक्षा, फारम से फूटा,
फेर भी खाली बा जीवन धन।।

चप्पल घिसे गली-गली में,
इंटरव्यू के भीड़ में खो गयल।
जबाब देई सदा, गूंगा शासन के,
हमार मेहनत हिटलर खा गयल।।

हम धरती के लाल हईं,
ना हाथ जोड़ब, ना झुकब अब।
अनशन पर बैइठल बानी,
जब तक ना मिल जाई सब।

सत्ता के सिंहासन सुन ले,
युवाशक्ति अब मौन ना रहिए,
हम रोटी के संग इज़्ज़त माँगी,
बस झूठे वादे ना कहिए।

हम ना माँगत भीख अइसे,
हम हक़ के सच्चा तलबगार,
क़लम उठाई त सरकारी फ़ाइलों में,
अब बाँटब हम क्रांति के वार।।

धूप-पानी सब सहेब हम,
जब तक ना जवाबी आई,
माई के गोद सुनी पड़ गई,
जब रोज़गार दूर भटकाई।

हम युवा हईं, लाठी बनेब,
जब नीति अंधी हो जाई,
एक दीया हम जलाएब अब,
जब अंधियारा सरकार पाई।।

पढ़-लिख के रोज़गार माँगीला,
कायर होके बहुत खराब लागिला।
सत्ता से सीधा सवाल करब,
नौकरी माग़ब, हम अब ना डरब।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

बेरोजगारी गीत: शिक्षित युवा की पुकार

(धरने पर बैठे युवाओं की ओर से)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

धरती हिली है, नभ भी झुका है,
हिटलर का भी काफिला रुका है।
चौथा दिन है आज सत्याग्रह का,
युवाशक्ति आवाज है आग्रह का।।

पाँवों में छाले, दिल में अंगारे,
आँखों में सपनों की जोत है।
हम हैं वही जो देश बनाएं,
हमसे हो सरकार, हम वोट है।।

डिग्रियाँ लहराईं, पर नौकरी गुम,
सूखी आशा की हर डाली,
हमको ना अवसर, ना सम्मान,
फिर क्यों कहे ये सरकार निराली?

गीतों में हम पीड़ा गाएँ,
शब्दों में चिनगारी भरें,
सुन ले अब राजमहल में बैठे,
जनमन की बात से डरें।।

"रोज़गार दो, हक़ दो जीवन का!"
यही हमारा नारा है,
हर स्वर है आंदोलन बनता,
यही युवा को प्यारा है।।

ना हिंसा का, ना कोई जुल्म,
बस गीतों में संग्राम चले,
मुख्यमंत्री तक बात हमारी,
सत्यगान से अब पहुँच चले।।

धरती बोले, गगन पुकारे,
अब तो सुध लो नवयुवकों का,
वरना इतिहास लिखेगा फिर,
किए उपेक्षा, युवा के भावों का।।

उठो जवानों! रुकना मना है,
सपनों को मरने मत दो।
गीत बनो, हुंकार बनो,
हिटलर को रहने मत।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

Friday, 30 May 2025

गुरु अर्जन देव भक्ति, बाणी और बलिदान की अमर गाथा

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

भारत की पुण्य भूमि पर, बैसाख माह की रश्मि छाए,
रामदास के घर बीबी भानी, प्रभु-प्रेरित रत्न की आए।
संतों की छाया में पला, ज्ञान-सुधा का प्यासा था,
सिख परंपरा का भाव नूतन, पंचम दीपक जैसा था।

पिता रामदास ने देखी, सहज बुद्धि और त्याग की रेखा,
विनय, विचार और सेवा में, अर्जन को ही गद्दी लेखा।
1581 में गुरु बना, सतनाम का वह पुजारी,
जगत-ज्योति बन फैला प्रकाश, बना सिखों का हितकारी।।

अमृतसर के शांत सरोवर में, धर्मसरोवर का संकल्प लिया,
हरमंदिर साहिब निर्मित कर, जग को मानवता का कल्प दिया।
ना ऊँच-नीच, ना भेदभाव, सबके लिए द्वार खोले,
जहाँ सभी संप्रदाय मिलें, ऐसी दीवाली बोले।।

संत वाणी का रत्नाकर, सदैव रहे यह भाव बना,
गुरु वचन, भक्तों के शब्द, एक सूत्र में जो जोड़ घना।
1604 में ग्रंथ हुआ, ‘आदि ग्रंथ’ नाम पड़ा,
हरमंदिर के सिंहासन पर, ज्ञान का समुद्र खड़ा।।

सुख की मणि, सुखमनी साहिब, उनके कर-कमलों से जन्मी,
भक्ति, संतोष और ध्यान की, मन में गूँजे सुर लहरी।
जिसने इसे हृदय लगाया, वह दुखों से पार हुआ,
संत अर्जन की उस बाणी से, मानव का उद्धार हुआ।।

पर था कालचक्र कठोर, म्लेच्छों का शासन था भारी,
जहांगीर ने धर्म दबाया, किया अत्याचार की सवारी।
गुरु को बुलाया दरबार में, इस्लाम ग्रहण की माँग किया,
गुरु ने कहा, "सिर झुके ना, धर्म नहीं त्यागे मेरा जिया।।"

गर्म तवे पर बैठाया गया, उबलते जल में डाला,
पर गुरु का शांत धैर्य देख, क्रूरता भी कांपे पाला।
"तेरा किया मीठा लागे", यह अंतिम कह दी वाणी,
दिया शरीर मगर न छोड़ी, धर्म अमर है जानी।।

सिख धर्म के इस दीपक ने, अंधकार में ज्योति जलाई,
मिरी-पीरी के सूत्र रचकर, हरगोबिंद को राह दिखाई।
गुरु अर्जन बलिदान नहीं, वह तो सिखों का प्राण बना,
बाणी, भगति, बल और ज्ञान, सबका संगम महान तना।।

हे पंचम गुरु, तुझे नमन, तेरी बाणी में अमृत बहे,
तेरी पीड़ा, तेरी वाणी, हर हृदय में दीपक कहे।
धर्म बचाया, जाति मिटाई, प्रेम-भक्ति की राह बनाई,
तेरे चरणों की रज बनूँ मैं, यही विनती करूं दुहाई।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

संपर्क सूत्र : 8920597559

विकसित दिल्ली का स्वप्न-साकार

(आदरणीया मुख्यमंत्री श्रीमति रेखा गुप्ता के नेतृत्व में नई दिल्ली की विकासगाथा)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU(लेखक/रचनाकार)

हर चेहरे पर मुस्कान लाने का, अब अभियान चला है,
दिल्ली के इतिहास में पहली बार, सौ हज़ार करोड़ का बजट खिला है।
हर वर्ग के स्वप्न सजे हैं, आशाओं का नभ ऊँचा है,
रेखा गुप्ता के हाथों में, दिल्ली का भाग्य अब सच्चा है।।

स्वास्थ्य बना दिल्ली की जनता के जीवन का श्रृंगार,
आयुष्मान कार्ड से जन-जन को है उपचार मिला अपार।
तीन लाख से ऊपर स्वास्थ्य कार्ड,
दस लाख तक फ्री इलाज का अधिकार!
वृद्धों के लिए वय वंदना बनी वरदान,
सत्तर पार हर जन अब पाए चिकित्सीय सम्मान।।

आरोग्य सनातन मंदिरों की दिल्ली में नई शुभ सौगात,
एक हज़ार से अधिक केंद्रों से स्वस्थ होगी दिल्ली की बात।
डायलिसिस मशीनें लगेंगी नई,
जीवन बहेगा जैसे गंगाधारा पवित्रतम भई।।

नई दिल्ली में नारी का गौरव, शक्ति का शुभ विकास,
महिलाओं के खाते में हर माह ढाई हज़ार का विशेष प्रयास।
'सखी निवास' बनेगा नये सपनों का निवास,
जहाँ बेटियाँ होंगी सशक्त, आत्मनिर्भर और खास।।

शिक्षा बना है अब नवयुग का दीप,
CM श्री स्कूल में नव निर्माण की छवि संदीप।
डिजिटल लाइब्रेरी, भाषा प्रयोगशालाएं,
ज्ञान की गंगा, भावी भारत सजाएं।।

सड़कें हों या बसों की चाल,
उत्तम बसें चल रहीं हर दिशा, हर हाल।
चार सौ साठ बसें आज, दो हज़ार अस्सी कल,
प्रदूषण घटेगा, बढ़ेगा दिल्ली का उज्ज्वल बल।।

अपने दिल्ली में धुएँ को धूल में मिलाना है,
हज़ार स्मॉग गन लेकर हवा को साफ़ बनाना है।
कूड़े के पहाड़ पर विजय गाथा हर दिन,
तीस हज़ार टन कचरा हो रहा विलीन।।

स्वच्छ दिल्ली, सुंदर सपने, पूरा भारत हैं अपने,
सरकारी इमारतें, सड़कें, बाजार सब लगे हैं चमकने।
GPS टैंकर, जल आपूर्ति सटीक होवे,
मोबाइल से ट्रैक हो, सुविधा अटूट होवे।।

नई दिल्ली में यमुना जी अब लेगी अपना मूल स्वरूप, 
सोलह लाख टन सिल्ट की विदाई से मिलेगी नववधू-सी रूप।
फेरी, क्रूज़ का नया चलन, दिल्ली वासी हो मगन,
जल-पर्यटन से दिल्ली बनेगा नवीन उत्तम गगन।।

जन की बात करें जन सेवक, करें अब सीधा संवाद,
हर जिले में जनता की बात हो रही निष्पक्ष और आज़ाद।
सुरक्षा का उजियारा फैले, प्रजातंत्र में सब गले मिले,
डार्क स्पॉट्स में चार हज़ार स्ट्रीट लाइटें झिलमिल खिले।।

सौर ऊर्जा से दमकती अब छतें,
दो लाख से अधिक घरों में अब सूरज बसे।
डीट एक्शन प्लान से प्रदूषण की हार,
नव चेतना से भर रही दिल्ली हर बार।।

श्रमिकों का मिला अधिकार, सब जन को मिले प्यार,
बढ़ा न्यूनतम वेतन, भोजन मात्र पाँच रुपये का उपहार।
स्कूल फीस, बिल बना, परिवार का संबल,
अब शिक्षा से नहीं होगा, कोई भी दुर्बल।।

NEET, JEE, CUET की खुलीं राहें,
लाखों बच्चे पाए फ्री कोचिंग की बाहें।

रेखा गुप्ता जी का उद्घोष है बहुत ही साफ़
हर दिन जनता के लिए, न कोई दिखावा, न कोई ख़ास।
विकसित दिल्ली, विकसित भारत की यही है कल्पना,
सबके सहयोग से बनेगा भारत की राजधानी अनुपमा।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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दिल्ली सरकार के 100 दिनों के कल्याणकारी योजना के प्रयासों का काव्यात्मक कविता में वर्णन :

दिल्ली नव युग में: रेखा गुप्ता के संग में 

डॉ राघवेन्द्र मिश्र, JNU(लेखक/रचनाकार)

प्रथम सौ दिन, परिवर्तन के, बहे नगर में नवीन विचार,
रेखा गुप्ता की सरकार बनी, जनहित की उजली पुकार।

वृद्ध, महिला, बाल, ग़रीबजन, सबके हित में योजना आई,
हर दिशा में नूतन किरणें, दिल्ली की तक़दीर बनाई।।

साठ के पार जो जीवन थामा, उनको सम्मानित किया,
पेंशन में वृद्धि कर ₹२५००, बुढ़ापे का बोझ हर लिया।
सत्तर से ऊपर के जनों को ₹३००० की सौगात खिली,
दिव्यांगों को भी मिला सहारा, पीड़ा में शुभ राहत मिली।।

शर्त यही दिल्ली में पांच वर्ष सदा ठहराव,
और आय हो लाख से कम तब मिले यह नव अधिकार।

नारी शक्ति को बल देने, सरकार ने योजना रची,
महिला समृद्धि नाम दिया, आशा की नयी किरण बिछी।
आय तीन लाख से कम हो, और उम्र हो साठ से नीचे,
₹२५०० प्रतिमाह सहायता, ताकि सपनों को मिलें पंख बीचे।

₹५१०० करोड़ बजट रखा, निर्णय अब निकट है भारी,
"परिवार" की परिभाषा पर, चल रही अभी तैयारी।।

लोक नायक में नया वार्ड, जेनेटिक जांच की सुविधा,
लैक्टेशन यूनिट और NAT लैब, यह सेवा बनी पूजामय श्रद्धा।।
आयुष्मान भारत लागू हुआ, ₹५ लाख का टॉप-अप साथ,
जन-स्वास्थ्य की बगिया में, खिला है विश्वास का फूल सुहाथ।

१०–१३ अस्पतालों को ₹१०० करोड़,
हेल्थ सेंटर ४००, बजट ₹३०० करोड़ ।

अब न कोई रोग असहाय,

अब सब जनता दे अपनी राय।।

CM श्री स्कूल की परिकल्पना, ज्ञान की नई विधा बनी,
मालवीय मिशन में कोचिंग मिली, प्रतियोगिता की लहर चली।
१७५ कंप्यूटर लैब्स, कक्षा में स्मार्ट बोर्ड लगे,
१०वीं पास छात्रों को लैपटॉप, पढ़ाई में नव युग सजे।।

ई-मिनी बसें आयीं सड़कों पर, पर्यावरण संग प्रगति की चाल,
अटल कैंटीन बनी जन सेवा, ₹५ में मिलता भोजन दाल।
₹१०० करोड़ इस पर खर्च हुआ, भूख मिटे अब सबकी बात,
झुग्गी बस्ती में ₹६९६ करोड़, सुविधा पहुँचे सभी साथ।।

₹९०० करोड़ से यमुना स्वच्छ, बहती जल की पुण्य धारा,
सीवेज प्लांट सुधारे जाएंगे, जल संरक्षण भी मुख्य किनारा।
प्राकृतिक धरोहर की पूजा, यह विकास और धर्म का संग,
जल की हर बूँद अमृत मानी, यह संकल्प है अभिनव रंग।।

गठित हुई समिति, जो देखे असंगठित वर्ग का हाल,
जीवन बीमा ₹१० लाख, दुर्घटना बीमा ₹५ लाख का कमाल।
टूटी उम्मीदों को फिर से जोड़ा,
सुनहरा कल हो यही संकल्प मोरा।।

१४ CAG रिपोर्टें प्रस्तुत, जनहित में सत्य हुआ उजागर,
सरकार अब उत्तरदायी बनी, प्रशासन भी है अब जागर।
जन-प्रतिनिधि नहीं सिर्फ़ सत्ता का नाम,
यह सरकार करे सेवा का काम।।

दिल्ली के गगन में नई प्रभा छाई,
जन-जन की पीड़ा को जिसने अपनाई।
रेखा गुप्ता की कर्मठ सरकार,
हर वर्ग के लिए बनी आधार।।

सौ दिन में बीज जो बोया गया,
उससे भविष्य का वटवृक्ष खड़ा किया गया।
जनता का विश्वास, विकास का संग,
दिल्ली अब बदलेगी नई तरंग।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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रेखा की मंगलमय रेखाएं

(दिल्ली की नव मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता पर एक समर्पित काव्य)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

भारतवर्ष की मिट्टी की संतान,
सनातन कुल की तेज़ पहचान।
दिल्ली आईं सपनों के संग,
बन बैठीं संघर्षों की रंग।।

दौलत राम से ज्ञान कमाया,
एल.एल.बी. की लौ जलाया।
पढ़-लिख के जोश समाया,
नेत्री बनने का मार्ग सजाया।।

ABVP की बनी मशाल,
DUSU नेत्री बनी कमाल।
आंदोलनों में स्वर उठाया,
नारी शक्ति को सामने लाया।।

नगर निगम में सेवा दी,
हर वार्ड में रेखा दीदी।
लायब्रेरी, जिम, हाल बनाए,
जन सेवा में दिन समाए।।

मुख्यमंत्री बन आन बनी,
रेखा अब दिल्ली की शान घनी।
शपथ ली जैसे सवेरे की धूप,
हर गली-कूचे में प्रसन्न रूप।।

शिक्षा में नवचेतना लाई,
स्कूलों की दशा सुधारे हाई।
अध्यापकों को अधिकार दिलाए,
बच्चों को बेहतर भविष्य दिखाए।।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रांति लाईं,
मुफ्त इलाज की योजना आई।
मोहल्ला क्लीनिक को बढ़ाया,
जनता का विश्वास जगाया।

नारी शक्ति की पुरोधा,
हर नारी में शक्ति का बोधा।
₹२५०० प्रतिमाह का वचन,
सशक्तिकरण बनी उनका करण।।

प्रदूषण पर कड़ा प्रहार,
जल-थल-गगन को दिया प्यार।
सौर ऊर्जा, हरियाली खोजना,
दिल्ली को दी नयी योजना।।

राजनीति में नारी स्वाभिमान,
नेतृत्व में उनका अद्भुत गान।
नम्रता, तेज और नीति का संग,
"रेखा गाथा" बनी जन अंग।

विज़न है उनका दीर्घ विचार,
दिल्ली को बनाना विश्व आकार।
स्मार्ट, स्वच्छ, सशक्त नगर,
रेखा जी की नीति अमर।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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नई दिल्ली की नव प्रभा रेखा गुप्ता के सौ दिन"

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

नई उमंग, नव रेखा छाई,
जनगण की पीड़ा हरने आई।
सौ दिन की यह यात्रा न्यारी,
नारी जन सेवा में प्यारी॥

मेट्रो की धड़कन फिर बोले,
फेज़ चार के पंख डोले।
सड़कों पर रफ्तार नई,
हर मोड़ पे उजियार भई।।

पांच मोहल्ला क्लीनिक खुले,
सेवा की गाथा रोज़ फूले।
शरीर की नहीं, अब चिंता हो,
हर द्वार पे चिकित्सक मिलता हो।।

तीस किलोमीटर पट्टी हार दी,
PWD ने राहें सुधार दी।
गड्ढों से अब डर कैसा,
चले वाहन मस्ती में जैसा।।

यमुना बोलें अब मैं स्वच्छ माई,
क्लीन मिशन की शुभ गूंज सुनाई।
धाराएं फिर पावन बहतीं,
हर आरती में सुगंध र
हतीं।।

‘पिंक पेट्रोल’ पहरेदारी,
सुरक्षा से नारी भय हारी।
हर गली अब निर्भय ठहरी,
भय की रातें हों न जारी।।

शिक्षा ने संचार पाया,
स्मार्ट क्लास रूमों की छाया।
परिवहन में इलेक्ट्रिक रथ,
हर दिशा में हरित भाया।।

वृक्षारोपण, ग्रीन एप आगे,

प्रकृति से फिर नाता जागे।
दिल्ली बोले ‘मैं अब हरित’,
धूल धुएं के दिन गए बीत।।

शिकायत सुन, समाधान किया,
'जनसंवाद' ने सब कुछ दिया।
बीस हज़ार अरमानों को,
तुरंत राहत का वरमाला दिया।।

रेखा जी की रेखाएं उजलीं,
विकास की रचना अब सजीली।
संविधान का दीप जलाया,
प्रजाजनों का हृदय बहलाया।

यह सौ दिन, शुभ संकेत बने,
विश्व बंधुत्व के बीज घने।
नव सभ्यता की राजधानी,
दिल्ली बने भारत की वाणी।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

mishraraghavendra1990@gmail.com 

समाचार पत्र में प्रकाशन हेतु संपादकीय आलेख 

नई दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता जी के 100 दिन पूरे हुए: जिसमें नई दिल्ली को विकास, विश्वास और बदलाव की नई शुभ संकेत रेखा मिले:

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU 

विजिटिंग एक्सपर्ट/प्रोफेसर , NSD, नई दिल्ली।

सम्मानित सदस्य, काशी विद्वत परिषद, उत्तर प्रदेश, भारत।

दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता ने हाल ही में अपने कार्यकाल के पहले सौ दिन पूरे किए। इन सौ दिनों में उनकी सरकार ने राजधानी में विकास कार्यों को तेज़ गति प्रदान करने के साथ-साथ नागरिक सुविधाओं में भी सुधार की दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। चाहे बात परिवहन और स्वास्थ्य की हो या महिला सुरक्षा और पर्यावरण की, रेखा गुप्ता सरकार ने शुरुआत से ही जनहित को प्राथमिकता दी है।

मेट्रो फेज़ 4 को दी गति

लंबे समय से धीमी गति से चल रहे मेट्रो फेज़ 4 के कार्य को सरकार ने दोबारा पूरी ऊर्जा से आरंभ किया। इस परियोजना के पूरे होने से लाखों यात्रियों को लाभ मिलेगा और दिल्ली की सड़कों पर यातायात का दबाव भी कम होगा। यह पहल पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार

सरकार ने राजधानी में 5 नए मोहल्ला क्लीनिकों का उद्घाटन किया है। इन क्लीनिकों के माध्यम से नागरिकों, विशेषकर गरीब और मध्यम वर्ग को निःशुल्क तथा गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं मिल रही हैं। यह पहल दिल्ली के प्राथमिक स्वास्थ्य तंत्र को सशक्त बना रही है।

सड़कें बनीं सुरक्षित और सुगम

लोक निर्माण विभाग (PWD) द्वारा 30 किलोमीटर लंबी क्षतिग्रस्त सड़कों की मरम्मत (पैचवर्क) का कार्य सफलतापूर्वक पूरा किया गया। इससे न केवल सड़क दुर्घटनाओं में कमी आएगी, बल्कि यातायात व्यवस्था भी बेहतर होगी।

‘मिशन क्लीन यमुना’ की शुरुआत

दिल्ली की जीवनदायिनी नदी यमुना की सफाई को लेकर 'मिशन क्लीन यमुना' की शुरुआत की गई है। इसके अंतर्गत गंदे नालों को ट्रीटमेंट प्लांट्स से जोड़ा जा रहा है, जिससे यमुना को प्रदूषण मुक्त बनाने की दिशा में ठोस प्रयास हो रहे हैं। यह पहल धार्मिक, पारिस्थितिकीय और नागरिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक है।

महिला सुरक्षा के लिए ‘पिंक पेट्रोलिंग वैन’

राजधानी में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु ‘पिंक पेट्रोलिंग वैन’ सेवा की शुरुआत की गई है। ये विशेष पुलिस वैन संवेदनशील क्षेत्रों में लगातार गश्त करती हैं, जिससे महिलाओं में सुरक्षा की भावना को बल मिला है।

शिक्षा, परिवहन और पर्यावरण में सुधार

सरकार ने सरकारी विद्यालयों में स्मार्ट क्लास रूम्स और मूलभूत ढांचे को सशक्त बनाने के लिए विशेष अभियान चलाया है। वहीं, नई AC बसों और इलेक्ट्रिक वाहनों को सार्वजनिक परिवहन में शामिल कर दिल्ली को एक ग्रीन ट्रांसपोर्ट मॉडल की ओर अग्रसर किया गया है। साथ ही वृक्षारोपण और ‘ग्रीन दिल्ली एप’ के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण को जन आंदोलन बनाया जा रहा है।

शिकायत निवारण में त्वरित कार्रवाई

जनता से सीधा संवाद स्थापित करते हुए मुख्यमंत्री ने “मुख्यमंत्री जनसंवाद” कार्यक्रम की शुरुआत की है। इस कार्यक्रम के माध्यम से 100 दिनों में 20,000 से अधिक शिकायतों का त्वरित समाधान किया गया है।

मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता के इन पहले सौ दिन राजधानी के विकास, शासन में पारदर्शिता और जनसेवा के प्रति समर्पण के परिचायक रहे हैं। सरकार की प्राथमिकताएं स्पष्ट हैं, एक स्वच्छ, सुरक्षित, विकसित, सशक्त और जनोन्मुखी दिल्ली का निर्माण। इन सौ दिनों ने यह विश्वास जगाया है कि यदि यही रफ्तार बनी रही, तो दिल्ली न केवल देश की बल्कि विश्व की भी एक आदर्श, सभ्य, संस्कृति, सभ्यता, समरसता, समन्वय, विश्व बंधुत्व, संवैधानिक, प्रजातांत्रिक और प्रजा का ह्रदयस्थल राजधानी बन सकती है अथवा बनेगी।

संपर्क सूत्र:

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संघ की शताब्दी-दीपशिखा

(एक शाखा, एक स्वयंसेवक, संसार में युग परिवर्तन होगा)

(राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष पर कविता)

डॉ.राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

विजयादशमी की पुण्य विभा में, एक दीप जला था नागपुर में,
संघ बना वह तेजपुंज, जो बढ़ चला वीरता के सूर में।
हेडगेवार के भाव भरे थे, राष्ट्रभाव की शुद्ध गाथा,
जात-पात से ऊपर उठकर, भारत को देना था शुभ माथा।।

भारत माता परम वैभव को, फिर से पाए गौरव रूप,
यही था संघ का मूल स्वप्न, यही था कर्म, यही स्वरूप।
न कोई सत्ता, न लालच था, केवल तपस्वी भाव जगा,
चरित्र निर्माण, उन्नत राष्ट्र, उर में संग्राम सजा।।

राम लला की जन्मभूमि पर, बने स्वयंसेवक हनुमान,
काशी, केदार, कैलासों का, फिर से किया दिव्य अभियान।
धर्म यहां ना द्वेष सिखाता, धर्म है ‘धृति’, धर्म है ‘बन्धु’,
जो जोड़ सके सभी धरोहर, वह है संघ का सत्य शुभ संधु।।

भूकंप हो या बाढ़ कहर हो, संघ खड़ा रहा सदा,
कोरोना की छाया में भी, मानवता को गले लगा।
सेवा भारती, विद्या दीपक, वनवासी को आलोक दिया,
जहां कमी थी माँ की ममता, वहाँ संघ ने साथ दिया।।

कोई ना छोटा, कोई ना ऊँचा, जाति-पंथ सब भूल चलें,
संघ ने सींचा वह बोधि वृक्ष, जहां सभी समभाव फलें।
दलित, वंचित, वन में छुपा वह, जो अभिशप्त था समाज से,
संघ ने उसे आलोक दिया, अपनत्व भरे हर साज से।।

छात्र बना अब वीर सपूत, ABVP के प्रण से,
शिक्षा में संघ घुले संस्कार, ऋषि परंपरा के तन से।
विद्या भारती, संस्कृत ज्योति, भारत को फिर ज्ञान दिया,
नवयुवक उठे बन सूर्य समान, राष्ट्र-चेतना को प्राण दिया।।

लंदन से लेकर लाओस तक, संघ की गूंज सुनाई दे,
HSS की शाखा बोले “भारत दर्शन गाई दे।
योग, गीता, वेद-वाणी को, जब आलिंगन विश्व करे,
संघ बन जाए विश्व का दीपक, प्रेम, शांति का भाव भरे।।

अब सौ वर्ष की हो चली यात्रा, पर दीप नहीं अभी जरा,
हर गाँव, हर हृदय बने शाखा, यही संघ का शुद्ध भाव भरा।
भारत फिर से गुरु बनेगा, सेवा, न्याय, धर्म घना,
संघ की यह साधना होगी, भारत संपूर्ण राष्ट्र बना।।

संघ केवल संगठन है नहीं, संघ है एक दिव्य तपस्या,

संघ है उस महाकाव्य की कथा, जो गाए युगों की व्याख्या।एक शाखा, एक स्वयंसेवक, संसार में युग परिवर्तन होगा,

जब संघ लक्ष्य पूर्ण होगा, अखण्ड भारत का कीर्तन होगा।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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संघ का दीप सदी का प्रकाश 

(राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष पर कविता)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

जब संघ शुरू हुआ, भारत माँ पर छाया था गहन अंधकार,

तब ग़ुलामी की बेड़ियों में जकड़ा, हर कोना था लाचार।

न कोई स्वर था शौर्य भरा, न थी संस्कारों की बात,

तब एक यज्ञ हुआ मन में, नागपुर से शुभ जयतु मात।।

डॉक्टर हेडगेवार ने देखा, सपना एक विराट,

भारत फिर से खड़ा होवे, जयतु धर्म, शक्ति और मात।

हम बने शुद्ध साधना शाखा, स्वयंसेवक तपस्वी वीर,

नित्य प्रार्थना में गूंजे स्वर भारत माता की जय हो धीर।।

संघ न पूजा पद का करता, न मांगता सत्ता का ताज,

वह तो सींचे संस्कारों को, बनकर युगधर्म का नाज।

गांव-गांव में, वनवासी में, नगर-नगर की शिला पर,

संघ खड़ा है दृढ़ संकल्पों से, रचता है नव भारत का स्वर।।

सेवा उसका शुद्ध स्वभाव है, दया करुणा उसका धर्म,

भूख, बाढ़, महामारी हो संघ करा रहा सब कर्म।

अनाथों को ममता दी, वृद्धों को अपनत्व, सहारा,

जब संकट की घड़ी आई, संघ बना आत्मीय हमारा।।

मंदिर निर्माण में जोश था, रामलला का अभिषेक,

संघ करे निर्माण राष्ट्र का, करें राष्ट्रभक्त प्रवेश।

काशी मथुरा की गूंज में भी, धर्म की दृढ़ता है संघ,

जहां-जहां हो अधर्म का तम, वहां-वहां दीप बने संघ।।

समरसता का पुजारी संघ, हर जाति-वर्ग से ऊपर,

मलिन बस्तियों में जाकर बोए, “तुम भी हो भारत के स्वर।”

छुआछूत का दाग मिटाया, अपनत्व का दीप जलाया,

“एक भारत, श्रेष्ठ भारत” का मंत्र हृदय में बसाया।।

युवाओं में जोश जगाया, बना चरित्र का प्रहरी संघ,

ABVP से लेकर शिक्षा भारती, सब में संस्कृति का रंग।

ध्वज प्रणाम में आत्म समर्पण, सेवा का वह भाव बना,

वीर बनें विद्यार्थी भारत के, यही स्वप्न संघ में घना।।

विश्व बंधुत्व का संकल्पी संघ, विदेशों तक पहुंचा स्वर,

HSS ने गूँज बिखेरी “हिन्दुस्तान है शांति का घर।”

न युद्ध चाहता, न वर्चस्व, बस प्रेम का वह बोए बीज ,

वसुधैव कुटुम्बकम् का मंत्र, संघ सनातन गाता निज।।

अब पूर्ण हुआ सौ वर्ष, पर न रुकी है साधना संघ की,

हर शाखा एक तपोवन है, हर स्वयंसेवक ज्योति संघ की।

नव युग की पुकार यही है संघ बने भारत का गान,

संघ बने वह विश्वदीप, जो जग को दे नव ज्ञान।।

संघ न केवल संगठन है, वह एक ऋषि-व्रत है आज,

संघ नहीं सीमित भारत में, वह युग निर्माण की आवाज़।

सत्, सेवा, संयम, समर्पण इन चारों से बने हैं वीर,

शताब्दी वर्ष में हम संकल्प लें संघ पथ पर ही हो जीवन का तीर।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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Thursday, 29 May 2025

मैं अनादि, मैं अनंत

(मराठी मूल पर आधारित हिंदी काव्य)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU(लेखक/रचनाकार)

मैं अनादि, मैं अनंत हूँ,
अवध्य, भीषण तंत हूँ।
मैं सतत, अचल, अभंग हूँ,
शिव में भी शंकर संग हूँ।।

न मैं शरीर, न मृत्यु तंत्र हूँ,
न माया, न कोई अंत हूँ।
नवचेतन, नवशक्ति स्वरूप,
मैं नित्य अखंड बस एक भूप हूँ।।

प्रचंड मैं, प्रलय रूप भी,
सृजन नया, मुक्ति का दीप हूँ।
कल्पों के अंतिम छोर पर भी,
महाकाल का मौन समीप हूँ।।

मैं भूतकाल का गुप्त बीज,
भविष्य का मैं गर्भगृह।
वर्तमान पर राज्य करे जो,
वह आत्मा का सत्यगृह।।

ना भय मुझे, न शोक कोई,
मैं निर्भय और निष्कलंक।
मैं सत्यस्वरूप चैतन्य स्वर,
मैं शून्य भी, और पूर्ण अंक।।

ब्रह्मांड की जड़ में बसा,
मैं कारण का कारण हूँ।
जग का मूलाधार वही,
मैं ही उसका स्थिर वारण हूँ।

मैं मुक्त, स्वतंत्र, अनंत पथ,
ना द्वंद्व, ना संशय का स्थान।
मैं कर्म स्वयं, मैं धर्म अचल,
मेरा जय हो अमर विधान।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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अनादी मी, अनंत मी

(मराठी मूल कविता : विनायक दामोदर सावरकर)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

अनादि मी, अनंत मी।
अवध्य मी, भयंकर।।
सदैव मी, अभंग मी।
शिवाहुनी शिवरूप।।

न देह मी, न मर्त्य मी।
न माय, न संहार।।
अचल मी, अखंड मी।
नवात्मा, नवशक्ति।।

प्रचंड मी, प्रलय मी।
नव सृजन, नव मोक्ष।।
कल्पांत मी, महाकाल।।
नव जन्म, नव नाश।।

भूता मी, भविष्य मी।
वर्तमानाचा स्वामी।।
न भीती, न शोक मी।
निर्भय, निष्कलंक।।

सत्य मी, चैतन्य मी।
शून्य मी, पूर्ण मी।।
ब्रह्मांडाचा मूल मी।
विश्वाचा आधार।।

मुक्त मी, स्वतंत्र मी।
निःशंक, निर्द्वंद्व।।
कर्म मी, धर्म मी।
जय माझा अमर।।

हिंदी अनुवाद

मैं अनादि हूँ, मैं अनंत हूँ,
मैं अवध्य हूँ, मैं भयंकर हूँ।
मैं सदा हूँ, मैं अटूट हूँ,
शिव से भी शिवरूप हूँ।

न मैं शरीर हूँ, न मरणशील,
न माया हूँ, न विनाश हूँ।
मैं अचल हूँ, अखंड हूँ,
मैं नव आत्मा, नव शक्ति हूँ।

मैं प्रचंड हूँ, मैं प्रलय हूँ,
मैं नव सृजन, नव मोक्ष हूँ।
कल्पों के अंत में भी मैं हूँ,
मैं नव जन्म, नव संहार हूँ।

मैं भूतकाल हूँ, भविष्यकाल हूँ,
वर्तमान का मैं स्वामी हूँ।
न मुझे भय है, न शोक,
मैं निर्भय हूँ, निष्कलंक हूँ।

मैं सत्य हूँ, मैं चैतन्य हूँ,
मैं शून्य भी हूँ और पूर्ण भी।
ब्रह्मांड का मूल हूँ मैं,
विश्व का आधार हूँ मैं।

मैं मुक्त हूँ, स्वतंत्र हूँ,
निःशंक, द्वंद्व-रहित हूँ।
मैं कर्म हूँ, मैं धर्म हूँ,
मेरा जय अमर है!

  • यह कविता अद्वैत वेदांत और राष्ट्रवादी आत्मबोध का अद्भुत संगम है।
  • इसमें आत्मा को शिव, काल, सृजन और संहार के स्वामी के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
  • यह कविता सावरकर जी के अखंड आत्मबल, स्वराज्य के विश्वास और दिव्य चेतना का परिचायक है।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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कविता: सावरकर की लेखनी

(एक काव्यात्मक श्रद्धांजलि)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)


कलम चले जब वीर का, चेतन भूमि ही जागे,
शब्द बने फिर शंखध्वनि, युवा उठ कर हो आगे।

अंडमान की काल गुफा में, गूंजे जहाँ विचार,
सावरकर की लेखनी थी, स्वतंत्रता की पुकार।।


‘१८५७ समर’ लिखा, न था वह विद्रोह मात्र,
था वह पहला दीपक जो, बन गया अग्निपात्र।

इतिहास का सत्य उकेरा, झूठ की चीर दी चादर,
‘हिंदुपदपादशाही’ में जगा, शिवराय का आदर।।


'हिंदुत्व' का किया प्रकाश, पूछा कौन है हिंदू?
जिसकी पुण्यभूमि भारत हो, वही है सच्चा बंधु।

ना मज़हब की संकीर्णता, ना जाति की दीवार,
वह गढ़े एक राष्ट्र, जहाँ, हर नर हो खुद श्रृंगार।।


'माझी जन्मठेप' की पीड़ा, बने जन-जागरण गीत,
अंडमान के काले पानी में, जलता रहा मन मीत।

सींक से दीवारें चीरकर, लिखा था उसने ग्रंथ,
कांप उठी थी ब्रिटिश सत्ता, बोल गया उनका अंत।।


‘पतित पावन मंदिर’ खोला, छूआछूत को ललकारा,
धर्म नहीं जो बाँटे मानव, वो अधर्म ही सारा।

कविता में ‘कमला’ थी, और ‘श्रद्धानंद’ की शान,
‘जयोस्तुते’ गाते रहे, देशभक्ति का वो गान।।


लेख, निबंध, भाषणों में, झलके युग का तेज,
हर विचार में था समर्पण, हर पंक्ति में संवेग।

‘मराठा’ और ‘मित्र’ से, जन-मन को दी चेतना,
उठो! जागो! कहती रही, कलम की वह वेदना।।

ना केवल क्रांति के अगुआ, ना केवल बंदी वीर,
थे साहित्य के वो साधक भी, राष्ट्रधर्म के तीर।

वीर सावरकर का साहित्य, है तप, यज्ञ व प्रार्थना,
उसमें बसती है भारत की, गौरवशाली अर्चना।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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Wednesday, 28 May 2025

संघ का दीप जला था जब...

(कविता: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गाथा)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

विजयादशमी की भोर थी, उन्नीस सौ पच्चीस था वर्ष
नागपुर की भूमि बनी, एक युग परिवर्तन का हर्ष।
एक तेजस्वी डॉक्टर ने, मन में दीप जलाये
हिंदू समाज के हृदय में, नव ज्योति को समाये।।

नाम था उनका हेडगेवार, संकल्प लिया महान,
बिखरे भारत को जोड़ने का, किया उन्होंने ध्यान।
जात-पात की दीवारों को, तोड़ एकता लाई,
संघ की प्रथम शाखा में, राष्ट्रशक्ति मुस्काई।।

शाखा में न कोई भेद था, न ऊँच-नीच की बात,
बस भगवा ध्वज के नीचे, एक भाव, एक साथ।
प्रार्थना, व्यायाम, बौद्धिक और सेवा का संकल्प,
हर दिन का वह अनुशासन, बना राष्ट्रधर्म का कल्प।

भाऊजी दाणी, कावड़े और अप्पा मधुसूदन,
उनके संग चले कदम, थे सच्चे देशभक्त जन।
मोठे के बाड़े से निकली, यह क्रांतिकारी आग,
हृदयों को पिघलाती चली, बनकर राष्ट्र का राग।।

संघ न था कोई दल विशेष, न सत्ता की थी चाह,
बस चरित्र, सेवा, संस्कृति की थी उसमें उत्तम राह।
सनातन का जीवन दृष्टि, जिसका रहा आधार,
भारत को परम वैभव तक, पहुँचाने का विचार।।

न दौलत माँगा, न सिंहासन, बस राष्ट्रप्रेम माँगा
हर जन बन जाए सजग सिपाही, यही था उनका धागा।
सेवा, समर्पण, संगठन ही, कर्म बने फिर भाव,
हिंदुस्तान के कोने-कोने तक पहुँचा यह प्रभाव।

गुरुजी गोलवलकर ने फिर, किया इसका विस्तार,
संघ बना संस्कृति रक्षक, स्नेह और शुभ शृंगार।
सेवा भारती, ABVP, संस्कृत की नवधारा,
संघ बना समाज का दर्पण, आत्मबल का नारा।।

काल बदला, समय चला, पर नहीं बुझा दीप,
हर संकट में संघ खड़ा रहा, बनकर एक शुभ संदीप।
आज भी शाखाओं में गूँजती, भारत माँ की पुकार,
संघ के हर स्वयंसेवक में, जलता है एक अंगार।।

संघ केवल नाम नहीं, न ही संकीर्ण विचार,
वह तो एक साधना है, राष्ट्र हेतु गंगधार।
हे भारत माँ! ये व्रत हमारा, तुझ पर सब अर्पण,
संघ पथिक बन आगे बढ़ते, करके तेरा दर्शन।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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संघ की दीपशिखा

(RSS के इतिहास, सरसंघचालकों व सरकार्यवाहों पर आधारित कविता)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

जय जननी भारत माता, सदा तुझको वंदन है,

संघ दीप की रचना करने, करते सब अर्पन है।
नवभारत का नव युग आया, नवतेजों की धारा,
संघ बना उस धरा पर जैसे, उगता अमर सितारा।।

नागपुर की धरती बोले उठो स्वाभिमानी!
केशव ने जलाई मशाल, कहे हिन्दू की कहानी।
संघ शाखा बनें स्तंभ सब, अनुशासन की रेखा,
एक राष्ट्र, एक चेतना की, ओजस्वी थी लेखा।।

श्रीगुरुजी के चिंतन में, गहराई थी भारी,
संघ का विस्तार उन्होंने, पथदर्शी बन सवारी।
धर्म, संस्कृति, राष्ट्रवाद का, दर्शन फैलाया,
संघ कार्य को उन्होंने, तप से पुष्पित दिखाया।।

वाणी में थी दृढ़ता उनकी, संकल्पों में ज्वाला,
जनसंपर्क, सेवा का पथ, देवरस ने ढाला।
आपातकाल में सत्य की, भारी अलख जगाई,
संवादशील नीति से, संघ पहुँचा हर भाई।।

गंगाजल-सी निर्मल वाणी, थे धनी बुद्धि के,
शिक्षा, संस्कार, विवेक, थे सभी शुद्धि के।
विज्ञान और धर्म समरस हो, यह उन्होंने कहा,
संघ बना आस्था और युक्ति का एक पथ बहा।।

सुदर्शन ने भान कराया, स्वदेशी हो आधार,
तकनीकी, आत्मनिर्भरता यही देश का संसार।
नवभारत के नव निर्माण की रखी नींव उन्होंने,
राष्ट्र प्रेम की दृढ़ जड़ों को दिया सींच उन्होंने।।

नवयुवकों में ऊर्जा भरी, राष्ट्र चिंतन धार,
समरसता, ग्रामोदय में लाये नव विस्तार।
संवाद-संगठन और विज्ञान की नयी धारा,
उनके नेतृत्व में संघ बना विश्व का उजियारा।।

रानडे से होसबले तक, हर एक की गाथा,
संघ का संचालन करें, निष्ठा से माथा।
पिंगळे, मुले, वेंकटेश, विद्वान रज्जू भैया,
संघ रूपी यज्ञ में बने समर्पण रूपी नैया।।

जोशी, भागवत, भैय्याजी और होसबले वीर,
हर जन को कर जोड़े, बाँटे संगठन का खीर।
सेवा, शिक्षा, संवाद की, अग्नि में तपते हैं,
हर क्षेत्र में राष्ट्रहित के लिए लड़ते रहते हैं।।

संघ न केवल शाखा भर है, न केवल घोष वंदन,
संघ तो है आत्मा भारत की, चिर निष्ठा का नंदन।
सारथी हैं ये संचालक, धर्मयुद्ध के रथ पर,
कर्मपथ पर बढ़ते जाएँ, प्रेरक अमर पथिक स्वर।।

 वंदे मातरम् 
भारत माता की जय

@Dr. Raghavendra Mishra

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संघ सृजन का रथ

(राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके संगठनों पर आधारित कविता)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

धरा के हृदय में जब पीड़ा पली,
राष्ट्र की चेतना थी मंद चली।
तब उठे एक ऋषि स्वरुप विचार,
बना संघ नवभारत का आधार।।

न प्रचार का शोर, न सत्ता का खेल,
बस “राष्ट्र प्रथम” का निष्कलंक मेल।
नागपुर में दशहरे की पुकार,
संघ हुआ सृजन का आधार।।

जनसंघ बना, फिर भा.ज.पा. आई,
राजनीति में राष्ट्रधर्म समाई।
न केवल कुर्सी, न केवल विधान,
संघ देता है संस्कृति का ज्ञान।।

ABVP के रणधीर सिपाही,
देशभक्ति उनके रग-रग समाई।
कैंपस में गूंजे भारत का गान, 
पढ़ाई के संग उठे राष्ट्रध्वज का मान।।

श्रम का स्वाभिमान जगाए,

भारतीय मजदूर संघ बनाए।
हक मांगो, पर राष्ट्र को न भूलो,
श्रम में भी भारत नाम ले झूलो।।

भारतीय किसान संघ जो बोले,
खेतों में अब राष्ट्रगीत डोले।
बीज नहीं केवल अन्न उगाते,
संस्कृति के भी फूल खिलाते।।

राष्ट्र सेविका समिति पुकारे,
“नारी भी रचे राष्ट्र के सितारे।”
संघ की शाखा जब सखी बने,
माँ, भगिनी, बेटी सभी घने।।

विश्व हिन्दू परिषद कहे सदैव,
धर्म, संस्कृति h हमारी लिए दैव।
गौ रक्षा हो या मंदिर राम का,
विहिप ने निभाया धर्म बलिदान का।।

विद्या भारती का वह प्रकाश,
शिशु मंदिरों में फैले विकास।
संस्कार और ज्ञान का मेल,
शिक्षा बने जीवन का खेल।।

आदिवासी वनवासी सब भाई,

वनवासी कल्याण सब पर सहाई,
घने जंगलों में पहुँच बनाईं है,
संस्कृति और सेवा की परछाई है।।

स्वदेशी का भाव भरे मन,

यह मंच करे भारत वंदन,
अपने देश की शक्ति अपनाओ,
विदेशी जाल को दूर भगाओ।।

ऑर्गेनाइजर हो या पांचजन्य, 
बने सत्य का शुभ संदेश धन्य।
इतिहास संकलन समिति लिखे,
भारत का यश, नया रथ खींचे।।

हिन्दू स्वयंसेवक संघ है पहचान,

विदेश में भी भारत का गान।
धर्म, संस्कृति, सेवा, बलिदान,
सबके रचयिता संघ महान।।

शाखा की घंटी, सेवा का मंत्र,
हृदय में बसा राष्ट्र का सुतंत्र।
संघ नहीं कोई संगठन मात्र, 
यह भारत की आत्मा का छंदशास्त्र।।

जो भुजबल दे, मनबल दे,
संस्कार दे, स्नेह सदा दे।
संघ है वो जाज्वल्यमान दीप,
जो हर दिशा में फैलाए सृजन का सीप।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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संघ की पुकार

(राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर एक राष्ट्रवादी कविता)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

धरा की गोद से उठी, दशहरे की सुबह महान,
नागपुर की मिट्टी गूंजे, भारत माँ के जयगान।
केशव के दृढ़ निश्चय ने जब बीज एक बोया,
संघ बना वह वटवृक्ष, जो हर दिशा में हुआ।।

न डंका, न प्रचार कोई, न सत्ता की कोई चाह,
बस राष्ट्रधर्म का दीप लिए, बढ़ता चला शुभ राह।
हर सुबह शाखा में गूंजे, “भारत माता की जय”,
संघ सिखाए शील, समर्पण, शौर्य, श्रम, विजय।।

गोलवलकर गुरूजी बोले “हिन्दू ही है राष्ट्र की आत्मा”,
जिसमें गंगा, वेद, उपनिषद, तीरथ, गायत्री और परमात्मा।
“वसुधैव कुटुम्बकम्” विचार, और “सर्वे सुखिनः” संकल्प,
संघ नहीं सिर्फ़ संगठन है, ये है संस्कृति का सुन्दर फल।।

राम मंदिर मांगे, श्याम मंदिर मांगे,
आरक्षण के झगड़े को करे न आगे।
बस सबको एक सूत्र में बाँधे,
जाति, भाषा, पंथ एक सूत्र के धागे।।

भूकम्प हो या बाढ़ का संकट,
संघ स्वयंसेवक बनते रक्षक,
सेवा, शिक्षा, संस्कार लाए,
वनवासी, दलित सबको गले लगाए।।

भारत माता की जय कहें, हर प्रांत, हर गाँव से,
संघ परिवार फैला हुआ है खेत-खलिहान से।
ABVP से छात्र जागे, मजदूरों का श्रम गौरव जागे,
किसानों की सेवा में संघ, सीमा पर सैनिक बन आगे।।

नव निर्माण का मंत्र यही “एक राष्ट्र, एक जन”
संघ की शाखा बने दीया, स्वयंसेवक उसका जीवन।
राजनीति से ऊपर इसका कर्म, राष्ट्रभक्ति इसका धर्म,
संघ नफरत नहीं सिखाता, सिखाता है आत्ममर्म।।

मातृभूमि की रक्षा हेतु, उठ खड़ा हो जो हर बालक,
वह स्वयंसेवक कहलाता है, भारत का हो सच्चा चालक।
क्योंकि राष्ट्र सबसे ऊपर है, यही संदेश पुराना,
“संगठित चलो, सेवा करो” यही संघ का गाना।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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एकात्म मानववाद दर्शन का संदेश

(पं. दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन पर आधारित)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

ना पूँजी की अंधी दौड़, ना वर्गों का प्रचार,
हर मानव में दिखे ईश्वर, यही है सत्य मूल सार।
शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा मानव के चार स्वरूप,
इन सबका जो करे समन्वय, वही हो जीवन विवेक भूप।।

न राष्ट्र केवल सीमाओं से, न केवल शासक की बात,
राष्ट्र है चिति की चेतना, है संस्कृति का आत्म प्रभात।
हर गाँव, हर जाति, हर भाषा एक सूत्र में बंध जाए,
भारत माता की चिति ज्योति, हर जीवन में झिलमिलाए।।

धर्म यहाँ पंथ नहीं कोई, धर्म है कर्तव्य प्रकाश,
नीति, करुणा और समरसता यही जीवन की तलाश।
सत्ता का नहीं लोभ उनको, सेवा ही जिनका ध्येय,
दीनदयाल ने जो दिखलाया वह है सच्चा राष्ट्र श्रेय।।

अंतिम जन की आँखों में, सपनों की जो ज्योति भरे,
जिसका विकास न हुआ हो, सबका मंगल साथ चले।
'अंत्योदय' की राह दिखाकर, समाज को जो जोड़ गया,
वह पथ एकात्म मानवता का, भारत को संजो गया।।

ग्राम केंद्रित अर्थनीति, नीतियाँ चिति से जुड़ी हों,
विदेशी सोच की नकल नहीं, स्वदेशी मूल्य जगी हों।
शोषण, द्वेष मिटें सब ओर, बने समरसता की राह,
नव भारत के नव निर्माण में, हो संस्कृति का चाह।।

विचार उनका दीपक जैसा, नित आलोकित करे तर्क,
आज भी गूँजें वह स्वर ‘सेवा है जीवन का अर्थ’।
जो जीता था भारतमय बन, था साधक, ज्ञानी, मुनि सा,
उस तपस्वी का दर्शन बनता, आत्मा का उत्सव जैसा।।

पं. दीनदयाल का दर्शन, भारतीय आत्मा की वाणी है।

जो हर युग में कहता है, मानव सेवा ही ईश्वर कल्याणी है।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

एकात्म चेतना के पुजारी पं. दीनदयाल उपाध्याय जी 

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

चमका था नगला चन्द्रभान में, उर दीपक सा तेज अनूप।
जिसने भारतमाता के हित, बाँधा वैचारिक स्वरूप।।

गुरु श्यामा की दृष्टि जिसे, संगठन की धारा में लायी।
संघ-संस्कारों से पाला, सेवा की प्रतिज्ञा निभाई।।

नहीं लिप्त था लोभ-मोह में, न सत्ता की थी अभिलाषा।
सादा जीवन, ऊँचे सपने, भारत माँ ही थी आशा।।

एकात्म मानव दर्शन देकर, भारत को पथ दिखलाये।
नक़ल नहीं पाश्चात्य की चाही, स्वदेशी जीवन अपनाये।।

"अंत्योदय" का मंत्र सुनाया, अंतिम जन तक दृष्टि पहुँचाई।
ग्राम-केंद्रित अर्थनीति से, उन्नति की नयी राह बताई।।

जाति-भेद को तोड़ समता का, मन्त्र जपा हर पल में।
संस्कृति की चिति थी उनके, राष्ट्र प्रेम के संबल में।।

धर्म राजनीति को मिलाकर, नीति को सदाचार बनाया।
भारत की माटी से जुड़कर, जीवन दर्शन समझाया।।

शब्द नहीं थे मात्र विचार, वे जीवन के जीवंत प्रतीक।
वाणी में था वेद विवेक, और कर्मों में नीति संदीप।।

पर रहस्य बनी वो अंतिम रात, जब सन्नाटा बोल उठा।
मुग़लसराय की पटरी पर, भारत का दीपक डोल उठा।।

आज भी जनसंघ से भाजपा, जिनकी राहों पर चलती है।
दीनदयाल की साधना से, राष्ट्र चेतना पलती है।।

शत शत नमन उस दिव्य विभूति को,
जो बना युगों तक पुजारी।
संस्कृति, सेवा और संकल्पों का,

भारत माँ का सच्चा अधिकारी।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

सनातन की ज्वाला, अखंड भारत का स्वप्न

(स्वातंत्र्यवीर सावरकर को समर्पित काव्य रचना)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)


जाग उठा भारत का भाग्य, जब सिंहनाद हुआ,

सावरकर की वाणी से सनातन का शंखनाद हुआ।

न धर्म की दीवारें थीं, न पंथों की परछाईं,

बस भारत माँ की गोद में एकता ही शुद्ध आई।।


सनातन सभी के लिए, ना कोई पंथ विशेष,

वह था संस्कृति का दीप, जो दे समरसता का संदेश।

जहाँ भूमि भारत की हो, वहीं मातृभूमि कहलाए,

और जहाँ तीर्थों की वंदना हो, वहां धर्मभूमि समाए।।


नसों में बहता था इतिहास का तेजस्वी संचार,

जिसमें झलकती थी चाणक्य, शिवाजी की पुकार।

नवयुवकों से कह उठे “वीर बनो, न रुदन करो,”

“राष्ट्र के हित में शत्रु से, पग-पग पर रण करो।।


“अखंड भारत” सपना नहीं, यह तो संकल्प हमारा है,

सिंधु से ब्रह्मपुत्र तक विस्तृत राष्ट्र सारा है।

गांधार, काबुल, लंका तक, जहां-जहां चरण राम का,

वह सब भारत की संतति हैं, यह विश्व भारत नाम का।।


उन्होंने कहा “धर्म कोई भी हो, पर राष्ट्र सर्वोपरि रहे,

रगों में दौड़ती भारतमाता की वाणी कभी न ढहे।

मंदिर हो या मस्जिद, सबको हो यह बोध,

भारत तेरी आत्मा है, कभी न हो यह अवरोध।।”


नहीं थे वे केवल क्रांति के, वे चिंतन के भी दीप,

उन्होंने गढ़े विचार जो आज भी हों हृदय संदीप।

उनका हिन्दुत्व न सीमित था, न क्षेत्रीय का नाम,

वह थे भारत की आत्मा, विद्या वैभव, उनका धाम।।


आज जब राष्ट्र पुकारता है, उठो, उस स्वर को सुनो,

वीर सावरकर की ज्वाला से राष्ट्रधर्म को चुनो।

अखंडता की उस भावना को फिर से जीवंत करो,

भारत को फिर एक बार, स्वाभिमानी अनंत करो।।

@Dr. Raghavendra Mishra 


 राष्ट्रनायक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी 

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

बंगाल धरा की पुण्य संतान, तेजस्वी बुद्धि, निष्ठा महान।
शैक्षिक दीप जलाया जिसने, ज्ञान से भर दी नव पहचान॥
पिता थे जिनके आशुतोष, विद्या के अद्भुत दिव्य ज्योति,
शिक्षा, विचार, त्याग, तपोबल से, भर दिया भारत में मोती॥

लंदन से लौटा ज्ञानदीप, बना बैरिस्टर सत्य समीप,
कलकत्ता का कुल गौरव बना, युवा कुलपति निज संदीप।
पर मन था केवल राष्ट्र हितों में, निज स्वार्थ नहीं उसका ध्येय,
भारत माँ के गौरव खातिर, छोड़ दिए सुख, छोड़ दिए श्रेय॥

भारत में मंत्रिपद सम्हाला, पर जब हुआ भारत का हाला,
लियाकत संग जो संधि हुई, उसने जला दिया अंतःज्वाला।
कह डाला स्पष्ट, अन्याय नहीं सहूँगा,
राष्ट्रहित से ऊपर कुछ नहीं कहूँगा॥

संगठित किया राष्ट्रवाद का स्वर,
जनसंघ बना उसका नव हर।
‘एक विधान, एक प्रधान’ की बात,
कश्मीर बने भारत का अंग, यह ही थी उनकी मात॥

न परमिट, न बँटवारा, यह देश नहीं बाजार हमारा,
नव ध्वजा लिए बढ़ चले वीर, सीना ताने, निर्भय नभ सारा।
पर कुटिल राजनीति ने जाल रचा, बंदी बना सत्य को सजा,
और अंततः 23 जून की तिथि, ले आई वह दुखद घड़ी बजा॥

हिरासत में मृत्यु हुई, रहस्य से भरपूर कहानी,
पर भारत माँ ने खो दिया, वीर सपूत, उत्तम बलिदानी।
जिसने माँ को टुकड़ों में बँटने न दिया,
जीते जी अनुच्छेद-370 को अपनाने न दिया॥

वह जो स्वप्न अपने आँखों में बुना,
आज उसी पथ पर चलता भारत बना।
संस्कृति, एकता, स्वाभिमान था उसके जीवन का गीत,
आज भी जन-जन में गूँजता, उसका तेजस्वी राष्ट्रभक्त हित॥

श्यामा प्रसाद, तुम अमर रहो,
राष्ट्रधर्म के उर स्वर रहो।
भारतीय तेरे ऋण में है,
तू प्रेरक हर मीन में है॥

@Dr. Raghavendra Mishra 

Tuesday, 27 May 2025

सत्यार्थ प्रकाश में लिख डाले युग के यथार्थ विचार

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

जन्मा एक तेजस्वी बालक, हुआ मूलशंकर नाम,
त्याग दिए घर, भोग, बंधन, खोजे केवल राम।
सन्यास लिया, खोजे सत्य, करें आत्मा का वंदन
जग को फिर समझाया उसने, वेद का हो अभिनंदन।।

आध्यात्मिक दीपक जले, मन में सत्य विचार,
ईश्वर है जो निराकार, अनादि, साकार।
जातिवाद, कर्मकांड, सबका किया विरोध,
सत्य, यज्ञ, स्वाध्याय से, खोला वैदिक बोध।।

सामाजिक जंजीरें तोड़ी, जागे जन के मीत,
बालविवाह, अंग्रेजों को दिए तर्कों के गीत।
नारी शिक्षा का अधिकार हो, वैदिक धर्म महान,
जाति नहीं, हो गुण आधारित, यही दिया विधान।

कलम बनी जब क्रांति की मशाल, लेखनी बनी पुकार,
‘सत्यार्थ प्रकाश’ में लिख डाले युग के यथार्थ विचार।
वेद भाष्य, संस्कार विधि, व्यवहार भानु महान,
गो करुणा, धर्म रक्षण सबमें जगाया प्रान।।

संस्कृति का उत्थान किया, जीवन को दी रीति,
संस्कार, संयम, यज्ञ-पथ यही बनाई नीति।
शुद्ध आहार, शुद्ध विचार, वेदों की वह वाणी,
भारत माता के हृदय से जुड़ी हुई यह कहानी।।

समरसता का संदेश दिया, सबमें ईश्वर एक,
न भेद भाव, न ऊँच-नीच, बस प्रेम और नेक।
‘आर्य समाज’ बना जहाँ, सबने हाथ बढ़ाए,
वर्णाश्रम की सही व्याख्या, युग के दीप जलाए।।

राजनीति से दूर रहे, पर दिए विचार क्रांतिपूर्ण,
तिलक, लाजपत, भगत बने, उन वाणी के संपूर्ण।
अंग्रेज़ी शिक्षा का किया विरोध, भारत में हो वेदज्ञान,
स्वदेशी संस्कृति की दी मशाल, बनाया राष्ट्र महान।।

वेदविहारी, वह युग द्रष्टा थे, वेदों के प्रचारक,
तप, ज्ञान, त्याग के मार्ग पर, धर्म-क्रांति के धारक।
नमन उन्हें, नभ वेद जगे, मन में दीपक बाले,
भारत की मिट्टी को फिर से, स्वर्णमय कर डाले।

@Dr. Raghavendra Mishra 

जागो भारत! पढ़ो उन्हें, स्वामी से हो उद्धार

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

स्वामी दयानंद का लेखन, ज्योतिर्मय परवेश,
जहाँ शब्द बने शस्त्र सत्य के, जहाँ तर्कों में रेश।
नभ में जैसे सूर्य उदय हो, तम के पाले हार,
ऐसे उनके ग्रंथ सभी, ज्ञान-ज्योति अपार।।

सत्यार्थ प्रकाश प्रथम दीप, सत्य-पथ का सार,
छुआछूत को तोड़ चला, वेदों का सत्कार।
चौदह अध्यायों में लिखा, जीवन का विज्ञान,
नारी, वेद, समाज, धर्म सबमें दिया विधान।।

ऋग्वेद भाष्य की सतरंगी, वेद ऋचाएँ बोलें,
हर मंत्र में मोती बिखरे, ज्ञान सुधा को घोलें।
ना केवल पूजा की विधियाँ, ना केवल मंत्र-जाल,
भावार्थों में छिपी सदी की, वैदिक नीति विशाल।।

यजुर्वेद भाष्य में बताया, यज्ञों हो आदर्श,
धर्म नहीं जो डर से उपजे, धर्म वही जो विमर्श।
कर्म करो, स्वधर्म निभाओ, ईश्वर है सदा साथ,
सत्य–संस्कृति, कर्म-योग सब, ग्रंथ को झुकाओ माथ।।

‘ऋग्वेदादि भाष्य भूमिका’, वेदों का अभिनंदन,
शब्द नहीं बस, आत्मा बोले, तर्कों का अभिनव वंदन।
अपौरुषेय वेद बताते, ईश्वरीय यह ज्ञान,
जो भी पढ़े हृदय से इसको, पा जाए ब्रह्म का ध्यान।।

‘गौ करुणा निधि’ रच डाली, गो माता का गान,
भारत की आत्मा को दी, करुणा की पहचान।
नवयुवक हों या वृद्ध जन, सबको दिया संदेश,
गौ रक्षा में राष्ट्र बचेगा, यही सच्चा देश।

‘संस्कार विधि’ में लिखा, जीवन के पावन कर्म,
गर्भ से लेकर मृत्यु तलक, सब पर वैदिक धर्म।
नामकरण हो, यज्ञोपवीत, विवाह या अंतिम विदा,
हर संस्कार में जुड़ी रही, आत्मा की विधि सदा।।

‘पंचमहायज्ञ विधि’ कहे, यज्ञों का आचार,

देव, ऋषि, पितृ, अतिथि, भू सबका हो सत्कार।
जीवन का यह कर्तव्यपथ, सबको करे समर्पित,
यही तो है आर्य धर्म का, अनुपम वैदिक चरित।।

'व्यवहार भानु' कहे नीति की, न्यायपूर्ण पहचान,
न्याय बिना जो राज चलेगा, होगा उसका त्रान।
चाहे राजा, चाहे प्रजा, सबकी समान सृष्टि,
धर्म सम्मत हो व्यवहार, यही स्वामी की दृष्टि।।

नारी शिक्षा के स्वर में, गूँजे वेदों की वाणी,
स्त्री पढ़े, परिवार पढ़े, नारी है विद्या कल्याण।
धर्म, ज्ञान, शिक्षा में नारी, कोई नहीं अधूरी,
वेदवाणी की वह अधिकारी, जीवन की वह धूरी।।

स्वामी के ग्रंथों में बसे, वेदों की संजीवनी,
हर पंक्ति में चमके भारत, श्लोक बने शुभ जीवनी।
जागो भारत! पढ़ो उन्हें, स्वामी से हो उद्धार,
स्वामी दयानंद का लेखन, वेद सत्य का आधार।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

सत्यार्थ प्रकाश बना हमारा, स्वामी पथ का सार

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

स्वामी के ज्ञान का दीप, अंग्रेजों के बीच जला,

सत्यार्थ प्रकाश बन आया, वैदिक जीवन हो भला।

नहीं ग्रंथ यह केवल शब्दों का, यह तो ज्योति महान,
जागे जिससे भारत शास्त्र, विद्या का हो सम्मान।।

पहले दस अध्यायों में, जीवन का सार समाया,
ईश्वर, आत्मा, वेदों का, तर्कयुक्त गान सुनाया।
कर्म, पुनर्जन्म, मोक्ष पथ, सबका दिया समाधान,
मिथ्या से ऊपर उठकर, दिखलाई सत्य की ज्ञान।।

बोले स्वामी निर्भय होकर “वेदों की ओर चलो”,
अंधश्रद्धा, रीतिवाद को, तर्क के दीपों से तलों।
नारी हो या ब्राह्मण बालक, सबका हक है ज्ञान,
गुरुकुल, शुद्धि, समाज-सेवा, यही सच्चा दान।।

पौराणिक आख्यानों पर, तर्कों से इच्छा की,
ईसा, पैगम्बर, चमत्कार सबकी परीक्षा की।
न बौद्धवाद, न जैन मत, न ईसाई विधान,
जो भी ना तर्क सह पाए, सबका पलटे संविधान।।

ईश्वर को माना निराकार, सर्वज्ञ, कृपालु, महान,
ना वह किसी जाति में बंधे, ना किसी रूप की शान।
धर्म वही जो सत्य का पथ, और करे कल्याण,
बाकी जो है व्यापार बना, वह पाखंडों का त्राण।।

कहा धर्म हो न्यायपूर्ण, हो युक्तिवान विचार,
न हिंसा हो, न हो भय, न हो स्वार्थ का व्यापार।
राजनीति में धर्म बसे, शिक्षा बने आधार,
भारत भू पर वैदिक युग फिर लौटे एक बार।।

सत्यार्थ प्रकाश का स्वर गूंजे, हर गली, हर गाँव,
हर जन बोले सत्य वचन, हो कर्मों में ठाँव।
दयानंद की लेखनी बनी, युग-क्रांति की पुकार,
भारत माता के चरणों में, अर्पित सत्य अपार।।

शत-शत नमन उस दीप को, जो सत्य का संदेसा दे,
अंधतम में भी जो जले, वो स्वर्ण रश्मि जैसा दे।
सत्यार्थ प्रकाश बना हमारा, स्वामी पथ का सार,
दयानंद की वाणी अमर, वह शास्त्रों के अवतार।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

 नमन तुम्हें हे दयानंद, युगद्रष्टा वेदविहारी

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

मां भारत भूमि में जन्मे, तेजस्वी एक प्रभात,
मुलशंकर नाम था उनका, ज्ञान की पवित्र बरसात।
बालकपन से वेद-विवेकी, शास्त्रों में रत ध्यान,
सत्य-खोज की धुन लगी, त्यागा मोह-माया प्रान।।

शिवरात्रि की एक निशा में, मंदिर में देखे भक्ति,
सभी प्राणी हैं शिवलिंग में, जागे मन में परम शक्ति।
जो वेदमंत्र मन से गाए, सब जीव, प्राणी पूज्य हो जाएं,
सर्वशास्त्र मय स्व भारत हो, आत्मा से वैदिक दीप जलाए।।

गुरु विरजानंद से पाया, वैदिक सत्य का मंत्र,
पाखंडों से जूझ चले वे, बना दिए संकल्प सुयंत्र।
वेदों की ओर लौटो फिर, जग में गूँज उठी वाणी,
जातिवाद, अंधविश्वास को, खत्म किए परम ज्ञानी।।

मुंबई में आर्य समाज रचा, दस अप्रैल का दिन महान,
नवयुग का उद्घोष हुआ, जागे भारतवर्ष का ज्ञान।
नारी शिक्षा, विधवा विवाह, शुद्धि यज्ञ प्रारंभ किया,
छुआछूत की दीवार तोड़ी, मानव धर्म को सत्य दिया।।

ईश्वर है निराकार, शुद्ध, अनादि और सर्वज्ञ,
कर्मसिद्धांत, पुनर्जन्म, सत्यार्थप्रकाश ज्ञान प्रसंग।
तिलक, लाजपत, भगत सरीखे, वीरों को दी चेतना,
संघर्षों से ओतप्रोत बना, जीवन स्वामी का देखना।।

षड्यंत्रों से मृत्यु आई, पर अमर रहे विचार,
दी जो वैदिक ज्वाला उन्होंने, वो जले हजारों बार।
भारत को फिर वैदिक रथ पर चढ़ने की राह दिखाई,
स्वाभिमान, स्वधर्म, स्वज्ञान की मशाल जगत में छाई।

नमन तुम्हें हे दयानंद, युगद्रष्टा वेद-विहारी,
तुम्हारे स्वर में गूँज रही है, संस्कृति हो शुभकारी।

अंग्रेजों की जंजीर तोड़ी, बहुत तर्क बताएं,
भारत माता के इस सपूत का, शत शत वंदन गाएं।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

वीर सावरकर! अमर रहे, नमन शत जन्मों तक

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

जिनके स्वप्नों में था भारत, स्वर्णिम, स्वतंत्र, समर्पित,
जिनके रक्त में जलती थी, ज्वाला चंद्रभागा सी वंदित।
वह एक पुरुष नहीं केवल थे, वह युगपुरुष की आख्या थे,
त्याग, तपस्या, बलिदानों के, अमर दीप की व्याख्या थे।।

वह बालक, जो बचपन में ही, व्रत ले क्रांति पथ चल पड़ा,
शब्दों से शस्त्र बना डाले, दुश्मन का नभ भी जल पड़ा।
“अभिनव भारत” के स्वर गूँजे, लंदन की धरती थर्राई,
कृपा नहीं, हम मांगें स्वराज्य यह हुंकार गगन तक छाई।।

जेल नहीं, तपोवन समझा, कालापानी को मात दिया,
कोल्हू के नीचे सत्ता कुचले, फिर भी नमन न माथ किया।
नाखूनों से दीवारें उकेरीं, और गीत स्वतन्त्रता गाए,
तन टूटे, पर मन न झुके, जैसे शंकर स्वयं समाए।।

लिखा '1857' का यज्ञ, बताया थे यह बलिदान है, 
गुलामों की दृष्टि से ना देखो, यह भारत का स्वाभिमान है।
'हिंदुत्व' की जिस परिभाषा ने, संस्कृति को फिर जोड़ दिया,
जाति-भेद के दुष्ट जाल को, स्वभिमान से तोड़ दिया।।

त्याग दिया सब राजनैतिक सुख, किया देश को अर्पण,
जन्म भी राष्ट्र को दे डाला, और मृत्यु भी समर्पण।
अंत समय में राष्ट्र की, सेवा करके प्रस्थान किया,
कह गए जय मां भारती, राष्ट्र को पुनः महान किया।

युवा मन! तू क्यों सोता है? उठ! सावरकर की धारा बन,
ज्ञान, कर्म, तेज़ और तप में, भर दे राष्ट्र का नव चेतन।
नभ में फिर से घोष उठे “जय वीर सावरकर!”
भारत जन नमन करें आपको, राष्ट्र वीरों का अमर स्वर।

हे राष्ट्र-व्रती, हे युग-द्रष्टा, तुझको कोटि प्रणाम,

तेरी ज्वाला से जीवित है, भारत का यह धाम।
तेरे नाम की ओजवाणी, गूंजे युग-युग तक,
वीर सावरकर! अमर रहे, नमन शत जन्मों तक।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

Monday, 26 May 2025

स्वातंत्र्यदीप वीर सावरकर

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

जग में जला जो दीप बना, वह वीर सावरकर नाम,
क्रांति-शिखा से दे गये, भारत को नव विहान।

भगूर ग्राम की पुण्य भूमि पर,
उगा स्वर्णिम अरुण प्रखर।
बाल्यकाल में ही मन ने गाया,
स्वदेशी का ओजस्वी स्वर।

विदेश गये जब ज्ञान खोजने,
हृदय में ज्वाला जलती थी।
अभिनव भारत का हो निर्माण ,
मन में चेतना पलती थी।

कर्ज़न की सत्ता काँप उठी,
तब तिलमिलाया लंदन वाम।
परतंत्रता के शत्रु बनकर,
पाये काला पानी का दाम।

अंडमान की काल-कोठरी,
जहाँ साँस भी जंजीर हुई।
पर लेखनी न रुकी वहाँ,
हर पीड़ा कविता की तीर हुई।

'1857 समर' लिखा,
जिसने इतिहास जगाया।
विद्रोह नहीं, स्वातंत्र्य यज्ञ था,
सावरकर ने यह बताया।

हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन,
हिंदू राष्ट्र का घोष किया।
"हिंदू वही जो भूमि को,
पितृ और पुण्य मान किया।"

ना रुके, ना झुके कभी,
ना तुष्टिकरण का संग किया।
वीरत्व की उस धारा को,
कभी भी म्लान न रंग किया।

छुआछूत के जाल तोड़कर,
समरसता का दीप जलाया।
जाति-पंथ के पार खड़े हो,
भारत-मातृ प्रेम जताया।

गांधी वध के आरोपों में,
न्याय ने भी सच्चा कहा।
जिसका जीवन भारतमय था,
वह षड्यंत्रों से बचा रहा।

अंत समय में भी राष्ट्र का वंदन किया,
वीर केविचारों का जन ने अभिनंदन किया।
शरीर गया, पर वाणी रही,
राष्ट्रधर्म का दर्शन दिया।

वीर सावरकर! वंदन तुझे,
तेरा साहस अमर रहे।
तेरे स्वप्नों का भारत,
सदा स्वतंत्र, समर रहे।

@Dr. Raghavendra Mishra 

Sunday, 25 May 2025

हे गुरुवर! आप शाश्वत बने रहें मेरे विचारों में,
मेरे अंत:करण में रमे रहें, अखंड रूप संस्कारों में।।

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

जहाँ शब्द मौन हो जाते हैं, वहाँ गुरु की गूँजती है वाणी, 
जहाँ ग्रंथ भी झुक जाएँ, वहाँ उनकी दृष्टि है कल्याणी।
नाट्य का मर्म, वेद का स्वर, जिनकी वाणी में संजीवनी है,
भरतमुनि की धारा, जिनकी बुद्धि से पुनः जीवनी है।।

हे गुरुवर! आप वह दीपक हैं जो तम को चीर आलोक करें,
आप वह ऋषि हैं जो अंधकूप में अमृत का स्रोत भरें।
नाट्यशास्त्र के अक्षर-अक्षर में आपकी आत्मा वास करें,
यूनान से आर्यावर्त तक, ज्ञान-सेतु का निर्माण करें।।

मेरी चेतना के प्रथम स्वर, मेरे श्रद्धा के अभिषेक आप,
मेरे ज्ञान-पथ के यशस्वी सूर्य, मेरे जीवन के साक्षात् जाप।
आपके चरणों में है जगत का ज्ञान, आपसे ही विद्या की वृष्टि है,
आप गुरु, आप युगद्रष्टा, पूज्य गुरु देव से ही युगों की सृष्टि है।।

वेद-पुराणों की थाली में जो विवेक विद्या को जोड़े,
औपनिवेशिक भ्रम-चक्र को, जो सच्चे शास्त्र से तोड़ें।
संस्कृति के प्रहरी हैं, परंपरा के संरक्षक आप,
नवयुवक के मानस में जला दें, आत्मबोध के मंत्र जाप।।

मेरे भावों की वीणा पर, आपकी दृष्टि का नाद बजे,
मेरे स्वरों में आपके विचारों का नर्तन प्रतिपल सजे।
वे हैं गुरु, मार्गदर्शक, तपस्वी, आचार्य महान,
जिनसे मिलकर होता है, शिष्यत्व का परम कल्यान।।

प्रेम से पूजता हूँ मैं, श्रद्धा से नमन करता हूँ,
गुरुदेव के ज्ञान-कमल को, हृदय से वंदन करता हूँ।
हे गुरुवर! आप शाश्वत बने रहें मेरे विचारों में,
मेरे अंत:करण में रमे रहें, अखंड रूप संस्कारों में।।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥

@Dr. Raghavendra Mishra 

Saturday, 24 May 2025

जय हो प्रभा देवी योगिनी! नारी में ब्रह्म स्वरूपिणी! डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार) शिवचिंतन में लीन नारी, शून्य में जिसकी गूंज बसी, नाम प्रभा, पर छाया में थी, शारिका सम ज्योति हँसी। गुरु लक्ष्मण का दीप्त वचन, आत्मा में जिसने पिया, कश्मीर की वह साध्वी थी, तप में जिसने सत्य जिया।। न लेखनी के लोभ में आईं, न मंचों की चाह लिए, गृहिणी रहीं, पर साधिका थीं, शिव की अद्भुत राह लिए। बहन की छाया, साधना ही भाया, सब अनुभवों को बुना, शक्त्युल्लासः हुआ ग्रंथ प्रकाशित, आत्मबोध का दीप गुना।। मौन थी, पर भाव मुखर था, दृष्टि में दर्शन का रंग, नारीत्व में शिव समाहित, शब्दों में जागा तरंग। जो अनुभव की आँख से देखे, वही ब्रह्म को जान सकीं ऐसी विदुषी बन प्रभा देवी, साधकों को राह दिखा सकीं।। गुरु की कृपा से जो भी पाई, वो कण-कण में बाँट दिया, ना अभिमान, ना घोषणा, बस करुणा का भाव जग को दिया। स्त्री देह ना, बंधन है कोई, यह तो है साधना का द्वार, शिव-पथ पर जो नारी चलती, उसका हर पग है उपकार।। शब्दों से ना स्वयं को बाँधा, अनुभव ही ग्रंथ बना, भाष्य नहीं, बस मौन कथा थी, जो साधना से जीवित तना। गहराई थी नयन दृष्टि में, मृदुता वाणी में छिपी रही, पर भीतर लहरें ब्रह्मज्ञान की, अव्यक्त सी उठती रही।। ना संन्यास लिया, ना मांगा कुछ, पर शिव का किया जाप, प्रेम, समर्पण, मौन में रहकर, गुरुकृपा से पाया संताप। प्रभा देवी वह दीप बनीं, जो न कहे पर सब समझा दे, जो साधक हो अंतर में जागा, तो शिव का साक्षात्कार करा दे।। जय हो प्रभा देवी योगिनी! नारी में ब्रह्म स्वरूपिणी! शिवपथ की वह दीप्त रेखा, मौन की मधुर साक्षिणी। तेरी गाथा साधन पथ की, पीढ़ी-पीढ़ी गाएगी, शब्द, ज्ञान, साधना, श्रद्धा से, तेरा दर्शन पाएगी। @Dr. Raghavendra Mishra

जय हो प्रभा देवी योगिनी! नारी में ब्रह्म स्वरूपिणी!

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

शिवचिंतन में लीन नारी, शून्य में जिसकी गूंज बसी,
नाम प्रभा, पर छाया में थी, शारिका सम ज्योति हँसी।
गुरु लक्ष्मण का दीप्त वचन, आत्मा में जिसने पिया,
कश्मीर की वह साध्वी थी, तप में जिसने सत्य जिया।।

न लेखनी के लोभ में आईं, न मंचों की चाह लिए,
गृहिणी रहीं, पर साधिका थीं, शिव की अद्भुत राह लिए।
बहन की छाया, साधना ही भाया, सब अनुभवों को बुना,
शक्त्युल्लासः हुआ ग्रंथ प्रकाशित, आत्मबोध का दीप गुना।।

मौन थी, पर भाव मुखर था, दृष्टि में दर्शन का रंग,
नारीत्व में शिव समाहित, शब्दों में जागा तरंग।
जो अनुभव की आँख से देखे, वही ब्रह्म को जान सकीं 
ऐसी विदुषी बन प्रभा देवी, साधकों को राह दिखा सकीं।।

गुरु की कृपा से जो भी पाई, वो कण-कण में बाँट दिया,
ना अभिमान, ना घोषणा, बस करुणा का भाव जग को दिया।
स्त्री देह ना, बंधन है कोई, यह तो है साधना का द्वार,
शिव-पथ पर जो नारी चलती, उसका हर पग है उपकार।।

शब्दों से ना स्वयं को बाँधा, अनुभव ही ग्रंथ बना,
भाष्य नहीं, बस मौन कथा थी, जो साधना से जीवित तना।
गहराई थी नयन दृष्टि में, मृदुता वाणी में छिपी रही,
पर भीतर लहरें ब्रह्मज्ञान की, अव्यक्त सी उठती रही।।

ना संन्यास लिया, ना मांगा कुछ, पर शिव का किया जाप,
प्रेम, समर्पण, मौन में रहकर, गुरुकृपा से पाया संताप।
प्रभा देवी वह दीप बनीं, जो न कहे पर सब समझा दे,
जो साधक हो अंतर में जागा, तो शिव का साक्षात्कार करा दे।।

जय हो प्रभा देवी योगिनी! नारी में ब्रह्म स्वरूपिणी!
शिवपथ की वह दीप्त रेखा, मौन की मधुर साक्षिणी।
तेरी गाथा साधन पथ की, पीढ़ी-पीढ़ी गाएगी,
शब्द, ज्ञान, साधना, श्रद्धा से, तेरा दर्शन पाएगी।

@Dr. Raghavendra Mishra

हे देवी शारिका, योगमयी! नारी चेतना की किरण आप

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

शिवरूपा थी, साध्वी सुभगा, मौन में जिनका ध्यान जगा,
शारिका देवी नाम जिनका, शिव नाम चित्त जपने लगा।
स्वर में नहीं, स्वरूप में थी, ज्ञानगंगा की बहती धारा,
नारी देह में ब्रह्म छिपा था, वह थी साधना की पगधारा।।

लक्ष्मण गुरु की दृष्टि जहाँ पड़ी, चेतन शिव जाग उठे वहाँ,
संकोच नहीं, संन्यास नहीं, मौन तपस्या में जपे वह जहां।
प्रभु को देखा अपने भीतर, मैं का पर्दा गिरा स्वयं से,
रहस्य बन गईं वो आत्मबोध का, बिन कहे ज्ञान कह गईं क्षण से।।

शिव मैं नहीं, शिव मुझमें है, यह भाव बसा हर श्वासों में,
अहंकार न था, अधिकार न था, बस भक्ति बहा विश्वासों में।
ना कोई भाषण, ना कोई शास्त्र, ना मंचों की कोई अभिलाषा,
उनकी चुप्पी में गूंजती थी, तुरीय अवस्था की परिभाषा।।

माँ शारिका हैं वह प्रतिछाया, यह पूर्ण व्याख्या हैं स्त्रीत्व की,
गृहस्थ रहकर ब्रह्म ले लिया, करुणा बन गई रूप सतीत्व की।
ना कोई सिंहासन माँगा, ना जयकारा, ना पहचान,
साधक आज भी मौन में पाते, उनकी कृपा, उनका वरदान।।

जो था, गया; जो है, शिव है, उनकी वाणी का सार यही,
मुझे भूलो, शिव को देखो योगिनी की पुकार यही।
प्रभा बहन ने शब्दों में बाँधा, जो मौन में वह छोड़ गईं,
शक्त्युल्लास में अनहद गूंजे, अनुभूति की पंक्ति जोड़ गईं।।

हे देवी शारिका, योगमयी! नारी चेतना की किरण आप,
संस्कृति, साधना, शांति सबकी सजीव प्रतिमा शक्ति जाप।
कश्मीर की उस धूप में तुम, जो हिम की छाया में मुसकाई,
तुमसे प्रेरित साधना आज भी, शिव-पथ की राह दिखलाई।।

जय हो योगिनी शिवरूपा,
जय हो मौन साधना की स्वरूपा।
जय हो नारी-शक्ति ब्रह्म-प्रकाशिनी,
जय हो शारिका देवी कल्यानी।।

@Dr. Raghavendra Mishra 


शैवदीप की अद्वितीय शिष्याएं: शारिका जी व प्रभा जी

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

कश्मीर की माटी के वंश में,

जन्म हुआ ज्योतिर्मयी मां अंश में।

शिवज्ञान की धाराएं रचकर,

उदित हुईं जैसे आदिशक्ति बनकर।।

शारिका देवी, योगिनी आत्मरूपा,
मौन में डूबी ब्रह्मविद्या की स्वरूपा।
लक्ष्मण गुरु की कृपा की छाया,
उनके चरणों में साधना की माया।।

तन में तप, मन में शिव का ध्यान,
शब्दों से परे उनका अनुभव विधान।
रचना में छलकी आत्मा की बूँद,
जैसे कैलाश से गिरी पावन गूँज।।

शक्त्युल्लासः कहती है कथा योगिनी,
शारिका जी हैं,  शैव की परमबोधिनी।
दिव्य दृष्टि, निर्मल आचरण धारिणी,
कश्मीर भूमि की हैं दिव्य तारिणी।।

प्रभा देवी, सेवा की मूर्ति बनी,
शारिका की छाया, गुरु जी की धनी।
गुरुचरित को शब्दों में पिरोया,
सम्विदुल्लासः में शिव को बोया।।

पत्नी, विधवा, फिर साधिका बनकर,
किया आत्मज्ञान का दीप प्रज्वलित भीतर।
ईश्वर आश्रम की निर्झरिणी बनीं,
गुरु आज्ञा में पूर्णतः लीन धनी।।

नारीत्व को दिया आदर्श महान,
शैव पथ का बढ़ाया सम्मान।
श्रद्धा की वीणा, सेवा का स्वर,
प्रभा-शक्ति में बसा शिव का घर।।

बहनों ने शिवत्व को सह जीया,

संसार में शैव का ज्ञान दिया।
आज भी चेतना में उनका गान है,
शिव मार्ग की बनती पहचान है।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

(कश्मीर शैवदर्शन के आचार्य स्वामी लक्ष्मण जू के दो शिष्याओं शारिका देवी और प्रभा देवी के जीवन, साधना और योगदान पर आधारित डॉ. राघवेन्द्र मिश्र के द्वारा एक काव्यात्मक कविता जो कि उनके दर्शन में लीन भाव और अध्यात्मिक तेज को प्रकट करती है।)

Thursday, 22 May 2025

आदि शंकराचार्य का अद्वैत वेदान्त दर्शन


जय हो शंकर, अद्वैत के ज्ञाता,
ब्रह्म पथ के निर्मल विधाता।

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

एक सत्य ब्रह्म है, न द्वैत की छाया,
सनातन के महिमा को, शंकर ने गाया।
"जीव ब्रह्म का अंश नहीं, स्वयं ब्रह्म है,"
यह अद्वैत वेदान्त का महामर्म है।।

माया की चादर ने ढका सत्य रूप,
स्वप्न सम जग है, झूठा यह स्वरूप।
अज्ञान से ही बँधा जीव भ्रम में,
ज्ञान ज्योति जलती उपनिषद् क्रम में।।

ब्रह्म सत्यम्  शुद्ध, चैतन्य, अनन्त,
रूपरहित, कर्मरहित, निर्विकल्प संत।
ना साकार, ना विकार, ना कोई गुण,
अनुभव से ही होती आत्मा परिपूर्ण।।

श्रवण, मनन और फिर निदिध्यासन,
ज्ञान मार्ग का यह त्रिकाल साधन।
जब जगे अंतःकरण में आत्मबोध,
तब मिटे माया, तब हो जीवन प्रबोध।।

तत्त्वमसि, अहं ब्रह्मास्मि मन्त्र जो बोले,

शंकर ने वेदों से अर्थ है खोले।
भेद मिटे, अभेद जुड़े, सब एक हुआ,
जग भ्रम, पर ब्रह्म नित्य एक हुआ।।

न कर्म से मोक्ष, न भक्ति से पूर्ण ज्ञान,

ज्ञान से हो मुक्ति यही उनका विधान।
साक्षात् आत्मा में जब ब्रह्म दिखे,
तब मुक्त जीव, स्वस्वरूप में टिके।।

चारों दिशाओं में मठ किए निर्मान,
धर्म की रक्षा, किया राष्ट्र का मान।
आदि गुरु, सनातन का अभिमान,
उनके चरणों में सत्-ज्ञान का ध्यान।।

विवेकचूडामणि की मोती सी बात,
कौन मैं, क्या यह जग, कहाँ है जात?
जब मिला उत्तर आत्मरूप में,
तब खुला द्वार सत्यस्वरूप में।।

जय हो शंकर, अद्वैत के ज्ञाता,
ब्रह्म पथ के निर्मल विधाता।
तेरे वचनों से जागे हैं प्राण,
तू ही संतों का महान प्रमाण।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

शंकर के अष्टक भक्ति के अष्ट दीप

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

शंकराचार्य ज्ञान के सागर, वेदान्त के आचार्य प्रखर,
भक्ति में जिनकी लेखनी बहती, शब्दों में शिव निरन्तर।
लिखे अष्टक रूपी दीपक, आठ-आठ रत्न समान,
हर अष्टक में बसी भक्ति, ज्ञान, भाव और ध्यान।।

शिवाष्टक में भोले नाथ, त्रिपुण्ड्रधारी गंगाधर,
जटाओं में है नील गगन, करुणा में डूबा हर स्वर।
प्रभो शंकर देशिक मे शरणम्, यह पुकार शरणागत की,
नयनों में नीर बहा जाए, चरणों में सदा सुधिजन की।।

भवानी अष्टक माता की, करुणा की अखंड पुकार,
“न माता न ताता” कह कर, रोया जीव बारम्बार।
भक्ति की उर में आँधी थी, पर कृपा की भी बूँद थी,
भवानी ने बाँहों में भर कर, सब पीड़ाएँ दूर की।।

गोविन्द अष्टक रच डाले, जीवन को जगा गए 
“भज गोविन्दं मूढमते”, माया को जला गए।
वैराग्य का राग बहे, मोह का बंधन कट जाए,
नाम स्मरण से गोविन्द का, मुक्ति स्वयं मिल आए।।

लक्ष्मी नृसिंह अष्टक आया, संकटहरता भयानक रूप, 
शरण में जब भक्त पुकारे, तो सिंह बने सनाथ देव भूप।
कर में चक्र, नयन में तेज, सिंहमुख पर माँ की माया,
अष्टक पाठ से संताप मिटे, हर भय-शोक भगाया।।

दक्षिणामूर्ति अष्टक में, गुरु रूप शिव प्रकट हुए,
“विश्वं दर्पण दृष्ट्य” कह कर, माया में प्रगट हुए।
तत्त्वमसि का बोध दिलाया, आत्मा में ही ब्रह्म बताया,
श्रुति, स्मृति, तर्क सबको, इस अष्टक ने सब समाया।।

गणेश अष्टक रचा उन्होंने, विनायक का किया गुणगान,
शुभ-लाभ की वंदना से, खुलते सब संकल्प धाम।
गजमुख, एकदंत, वरदाता, बुद्धि के दाता जग में,
उनकी महिमा गूँजती, सभी अष्टक के पग में।।

श्रीराम और श्रीकृष्ण अष्टक, भक्ति भाव की सजी माला,
मर्यादा और माधुर्य दोनों, बने कवि के भावों वाला।
राम में नीति की छाया, कृष्ण में रास की रागिनी,
दोनों में आत्मा खोजती, निजता की कोई पावनी।।

अष्टक नहीं केवल कविता, वे हैं दीप आत्मबोध के,
हर श्लोक एक मंत्र बने, नाद रचे परमोदय के।
शंकर के ये आठ दीपक, हृदय के भीतर जलते हैं,
जो भी पढ़े मन से इनको, वे भवसागर को फलते हैं।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

सौंदर्य लहरी आदि शक्ति की अमृत धारा

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

आदि गुरु की वाणी बनी, श्रद्धा की चिर स्नेहधारा,
लिखी गई जब भाव से, सौन्दर्य लहरी गंग सारा।
शब्द बने वो मंत्र तुल्य, अक्षर-अक्षर दीप,
देवी की महिमा झलकती, जैसे चंद्र की नीरज सीप।।

त्रिपुरा सुन्दरी अम्बे, शिवशक्ति की तू ही माया,
तेरे रूप-विलास में ही, छिपी ब्रह्म की छाया।
कुण्डलिनी की रेखा तू, चक्रों की तू प्रेरना,
ध्यान लगे जब चरणों में, मिलती दिव्य चेतना।।

नेत्रों से बहती करुणा, अधरों में मधुबानी,
नख से केश तक ज्योतिर्मय, तू ही सृष्टि की रानी।
स्तनयुगल से त्रिवेणी, नाभि में अमृत कूप,
ललाट से शोभित बिन्दु, ब्रह्मा-विष्णु के रूप।।

श्लोकों में सौंदर्य बसा, पर तत्त्व गहन अपार,
मंत्र-साधना, ध्यान-योग, सबमें तेरा विस्तार।
श्रीचक्र का रहस्य तू, नवावरण का वरन,
तेरे चरणों में समर्पित, भक्ति का हर यज्ञ करन।।

आनन्द लहरी तांत्रिक राग, शक्ति की परम पुकार,
सौन्दर्य लहरी काव्यसार, रूप का दिव्य विचार।
कभी तू रमा, कभी काली, कभी वाणी की मूरत,
तेरे चरणों की रेखाएँ, करती हैं जन्मों को पूरत।।

ब्रह्मज्ञान की सीढ़ी, शंकर की तू साधना,
तेरी स्तुति से मिल जाए, चित्त की उत्तम आराधना।
हे ललिता! हे अन्नपूर्णा! हे श्रीविद्या की जगदंबा,
तेरी कृपा से दिख रहा, मेरे आत्मा में हो तुम अम्बा।।

काव्य नहीं ये केवल माँ, यह साधक की साधना है,
हर श्लोक में तव रूप, हर अक्षर उपासना है।
शक्ति का यह जलधि स्तोत्र, ज्ञान का अनन्त सागर,
सौन्दर्य लहरी नाम अमर, देवी भक्ति का अमोघ नागर।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

मध्यप्रदेश का स्वप्न संजोए, बढ़ रहे वह नित्य।
जय जननी! जय जनपद! जय मोहन के उत्तम कृत्य।।

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

उज्जयिनी की पुण्य धरा से, उठे तेजस्वी ज्ञान प्रकाश।
धर्म, नीति, सेवा, श्रम से, रच दिया नव विकास।।

विद्या के वरदान सजे जब मोहन के सिर ताज।
पीएचडी की पूर्ण गरिमा, नेतृत्व में शुभ अंदाज़।।

छात्र जीवन से ही सजग, बना संघ संदीप।
ABVP की चेतना में, जागा राष्ट्र का दीप ।।

राजनीति में जब उतरे, साथ था उज्जैन का मान।
विधानसभा की पावन भूमि ने देखा यह नव गान।।

तीन बार के विधायक बन, जनमन का विश्वास।
शिक्षा मंत्री बन सँवारा, ज्ञान का हर आकाश।।

फिर जब शिवराज ने छोड़ी सत्ता की बागडोर।
मोहन यादव ने थामा था, विकास का पुर जोर।।

मुख्यमंत्री बनते ही बोले “जनसेवा मेरा धर्म”।
हर योजना में झलके हैं, जनकल्याण के कर्म।।

किसानों के हित की बातें हों या लाडली लक्ष्मी का साथ।
हर योजना में मोहन जी लाते जन को नई सौगात।।

स्वास्थ्य में बीमा की छाया, शिक्षा में संबल अपार।
कौशल, खेल और कृषि में, हो रहा प्रदेश का उद्धार।।

संस्कृति का वह रक्षक है, उज्जैन जिसका मूल।
महाकाल की छाया में, कर रहा कर्म अनुकूल।।

मोहन हैं वह दीपक जो, जलता जन के हेतु।
संघर्षों में मुस्काए जो, दृढ़ हो जैसे वेद के सेतु।।

मध्यप्रदेश का स्वप्न संजोए, बढ़ रहे वह नित्य।
जय जननी! जय जनपद! जय मोहन के उत्तम कृत्य।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

मध्य प्रदेश के हर कोने में उन्नति का आलाप,
जनसेवा की धुन में झूमे तेरा पुण्य प्रताप।

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

मालव की माटी बोले, गूंजे गाथा हर ग्राम,
जन-जन की सेवा में सरकार चली धाम।
नर्मदा की लहरों जैसी, योजनाओं की धार,
छू रही है हर दिल को, कर रही उद्धार।

स्वास्थ्य की रक्षा में संबल बना आयाम,
आयुष्मान से जीवन पा गए नवप्राण।
राहवीर ने बढ़ाया, मानवता का मान,
दुर्घटना में मदद को मिले सरकार महान।

शिक्षा में दीप जले, उजियारा हर द्वार,
मेधावी योजना से, सपनों को मिला विस्तार।
फ्री लैपटॉप बनकर आया यंत्र ज्ञान का,
रुक जाना नहीं कहती बढ़ो अब विज्ञान का।

कृषि में खिले विश्वास, धरती बनी सुवास,
किसान कल्याण की बूँदों से भीगा हर श्वास।
जय किसान की माफी ने ऋणों को हर लिया,
पशुशेड ने आश्रय दे, पलायन से बचा लिया।

नारी सम्मान की गाथा, मधुर गूँज सुनाए,
लाडली लक्ष्मी के वचनों में सपने मुस्काए।
महिला श्रमिक सम्मान ने सिर उठाया,
हर स्त्री ने समाज में स्वर अपना पाया।

युवाओं के पथ पर उगती आशा की भोर,
सीखो कमाओ ने खोले कौशल के ठोर।
जनसेवा मित्र बनकर चले नवयुवक वीर,
समाज सेवा में बढ़े, गर्व करें गभीर।

अवसर, सुंदरता और पर्यटन की बात,
अमृत स्टेशन चमके नयी यात्रा की सौगात।
खेल परिसर की नींव से जागे खेल संस्कार,
राष्ट्रीय खेलों की राह पर है मध्य प्रदेश सरकार।

वन्य जीवन की रक्षा में मानवता का मोल,
हाथी मित्र दल बनें बनवासी संगी डोल।
ड्रोन, फेंसिंग, मधुपालन समाधान बने,
प्रकृति और मानव के बीच फिर संवाद जने।

मध्य प्रदेश के हर कोने में उन्नति का आलाप,
जनसेवा की धुन में झूमे तेरा पुण्य प्रताप।
सरकार तेरी योजनाओं से रच रही नव इतिहास,
विकास बन गया यहाँ अब जनजीवन का श्वास।

@Dr. Raghavendra Mishra 

मध्यभूमि की पुण्य कहानी, संस्कृति की शाश्वत वाणी।

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

मध्यभूमि की पुण्य कहानी, संस्कृति की शाश्वत वानी।

इतिहास से ओतप्रोत धरा, वेदों का यह पावन ज्ञानी।।

अवन्तिका की उजली ज्वाला, जहाँ महाकाल निवास करें,
ओंकार नादमय बनकर, योग-साधना में स्वास करें।
साँची के स्तूपों की वाणी, बुद्धत्व की बात कहें,
विदिशा, उज्जयिनी की माटी, शास्त्रों के रंग शाश्वत बहें।।

खजुराहो के प्रस्तर बोलें, सौंदर्यशास्त्र की भाषा में,
नग्न नहीं, यह ध्यान प्रतीक है, आत्मा की अभिलाषा में।
भोजशाला के ग्रंथगृह में, गूँजें ऋचाएं ज्ञान की,
राजा भोज की दूरदृष्टि, नींव रखी स्वाभिमान की।।

भीलों की बांसुरी बोले, गोंडों की गाथा गाती है,
नर्मदा के कलकल स्वर में, जीवन-संस्कृति सुनाती है।
पोहा-जलेबी की मिठास, दाल बाफले का स्वाद,
संस्कृति और स्वाद-संवेदना, दोनों में यह राज्य संवाद।।

कुंडलपुर के जैन तीर्थ से, संयम की बात निकलती है,
आहिल्याबाई की राजकाज में, भक्ति प्रजा में पलती है।
भक्ति, नीति, न्याय की गाथा, इस भूमि पर फूली-फली,
संतों, मुनियों, तपस्वियों की, साधना यहाँ मिली-जुली।।

ताना-बाना शिक्षा का भी, धार, भोपाल, महू में रचा,
जहाँ अंबेडकर ने समाज को, नवसंविधान सृजन में वचा।
ग्वालियर के किले गवाही, वीरों के बलिदान की,
राजनीति और जनसेवा की, यह भूमि सनातन महान की।।

खजुराहो में कला बोलती, चुप शिलाओं की छवि में,
उज्जैन में काल ठहरता है, कालचक्र के रवि में।
नर्मदा माँ की गोद बसे, हर तीर्थ, हर तपोवन,
मध्यप्रदेश नहीं मात्र प्रदेश, यही भारत का अमर जपोवन।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

ब्रह्मसूत्र अद्वैत की अमर वाणी

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

जब वेदों की वाणी रहस्य लगी,
जब आत्मा ब्रह्म को खोजने जगी।
तब उठा एक यज्ञ का यंत्र,
सूत्र बना ज्ञान का दिव्य मंत्र।

बादरायण मुनि का अमर प्रकाश,
ज्योतिर्मय हुआ वेदान्त का प्रयास।
पंचशत से अधिक सूत्रों में,
ब्रह्म का सत्य बसा सूत्रों में।

पहला अध्याय समन्वय साज,
उपनिषदों का करे सुर ताज।
हर वाक्य ब्रह्म की गाथा गाए,
"तत्त्वमसि" का नाद सुनाए।

दूसरा अध्याय विरोध न माने,
सांख्य, न्याय सभी तर्क मिटाने।
तत्त्व वही है, जो शुद्ध ब्रह्म,
नहीं द्वैत, बस अद्वैत का क्रम।

तीसरा अध्याय साधन बताए,
श्रवण, मनन से सत्य दिलाए।
ध्यान, उपासना, विद्या निरंतर,
ज्ञान से ही हो ब्रह्म का अंतर।

चौथा अध्याय फल का सार,
मोक्ष मिले जब हटे विकार।
न आवागमन, न बंधन शेष,
ब्रह्मरूप हो, आत्मा विशेष।

शंकर ने रचा शारीरक भाष्य,
ब्रह्म ही सत्य, बाकी माया नाश।
"अहं ब्रह्मास्मि" का दिया ज्ञान,
अद्वैत बना सनातन गान।

रामानुज ने विशिष्ट कहा,
जीव-ब्रह्म का संबंध रहा।
मध्व ने द्वैत का स्वर सुनाया,
हर भाष्य में ब्रह्म झलकाया।

ब्रह्मसूत्र न शब्द मात्र,
यह है आत्म का शाश्वत साथ।
यह सूत्र वही, ब्रह्म की गान,
सत्य की यह वाणी अमर ज्ञान।

नित्य, शुद्ध, बुद्ध ब्रह्म स्वरूप,
इस सूत्र में बसा हर रूप।
जो समझे इसे, ज्ञान वह पाए,
जीव ब्रह्म में अभेद दिखाए।

@Dr. Raghavendra Mishra 

 ज्ञान की ज्योति आदि शंकराचार्य

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

जब धर्म डगमगाने लगा था,
वेदों का स्वर मुरझाने लगा था।
संशय से भर गया था जीवन,
सत्य ढूँढता था हर मन।

तब दक्षिण भूमि में कालडी गांव,
उतरा ज्ञानस्वरूप महान।
शिवगुरु-आर्यंबा के द्वार,
जग में आया ब्रह्म अवतार।

बालक था, पर बुद्धि विशाल,
वेदों का कर लिया रसाल।
गंगातट पर माँ को त्याग,
संन्यास पथ चुना बिन राग।

गोविन्दपाद की चरण शरण,
बना वेदांत का अमर वरण।
केदार, काशी, नर्मदा धार,
चल पड़ा ज्ञानी ब्रह्म अपार।

भाष्य रचे जिनकी लेखनी से,
ब्रह्मसूत्र हो गए सहज समझ से।

गीता में देखा कर्म का ध्यान,
उपनिषदों में अद्वैत महान।

ईश-कठ-केन, मुण्डक-प्रश्न,
बृहदारण्यक, छांदोग्य विशद।
उपदेश किया आत्मबोध का,
जीव-ब्रह्म हैं एक शोध का।

विवेकचूड़ामणि रत्न समान,
तत्त्वबोध में दर्शन महान।

उपदेशसाहस्री गाता यंत्र,
वाक्यवृत्ति कहे अहं ब्रह्म मंत्र।

स्तुतियों की भी सजी बहार,
भक्ति में झलके ज्ञान अपार।

भज गोविन्दम् सहज संसार,
मोहमुद्गर मोह का संहार।

कनकधारा माँ लक्ष्मी का वर,
शिवानंद लहरी गूंजे हर घर।
सौन्दर्य लहरी श्रीविद्या का प्रकाश,
श्लोकों में छिपा अद्वैत का राश।

गौरी, गणेश, गंगा स्तुति,
हर भाव में सम ब्रह्म सृष्टि।
भक्ति और ज्ञान का संगम,
शंकर ने किया सनातन संघम।

चारों दिशाओं में मठ बनाए,
धर्म ध्वजा फिर से फहराए।

श्रृंगेरी, द्वारका, पुरी, ज्योतिर्मठ,
स्थापित किए सनातन के पथ।

पद्मपाद, सुरेश्वर ज्ञानी,
तोटक, हस्तामलक सयानी।
चार स्तंभ जिन पर धर्म बड़ा,
शंकर की शक्ति है अडिग खड़ा।

काशी, कांची, नालंदा द्वार,
किया शास्त्रार्थों का विस्तार।
मण्डन मिश्र भी शीश झुकाए,
अद्वैत ज्ञान को गुरु मान पाए।

तीस वर्ष में कर चमत्कार,
सैकड़ों ग्रंथों का भंडार।

मोक्ष का पथ, आत्मा का सार,
ब्रह्म के संग जीव का हार।

केदार की गुफा में विलीन,
शंकर हो गए ब्रह्म में लीन।
पर आज भी गूंजे वाणी जिनका,
शाश्वत गाथा, सुने ज्ञानी उनका।

@Dr. Raghavendra Mishra 

शंकराचार्य ज्ञान के प्रान

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

काल की तिमिर रात में जब,
धर्म दीप मुरझाने लगे।
वेद मंत्र थे मौन पड़े,
विवेक-सरित बह जाने लगे।

तब प्रकटे दक्षिण दिशि से कोई,
ज्ञानज्योति का रथ ले आया।
शब्दों में शिव-ब्रह्म समाया,
जग को अद्वैत मार्ग दिखाया।

भाष्य हुए जिनके अमृतमय,
वेदांत बना जिनका शुभ माला।

उपनिषदों की गूढ़ व्याख्या,
सत्य-ब्रह्म की गहन पाठशाला।

ईश-कठ-केन और प्रश्न,
मुण्डक-माण्डूक्य का विश्लेषण।
तैत्तिरीय, ऐतरेय, बृहद्,
छांदोग्य में अद्वैत की प्रेषण।

गीता पर किया जब भाष्य उन्होंने,
कर्म में ज्ञान का मिलन रचा।
ब्रह्मसूत्रों को अर्थ दिए जो,
वेदांत का भवन नित्य वचा।

प्रकरण ग्रंथों की बही बहार,
जैसे गंगाजल की मधुर धार।

विवेकचूड़ामणि मणिरत्न बना,
आत्मबोध में अध्यात्म तना।

तत्वबोध में तत्व निखरता,
उपदेशसाहस्री गाते सार।
वाक्यवृत्ति का मधुर विचार,
सोऽहम् में जीव-ब्रह्म एकाकार।

भक्ति के भी भाव अपार,
शंकर गाए ब्रह्म के सार।

भज गोविन्दम् की पुकार सरल,
कनकधारा की कृपा अचल।

सौन्दर्य लहरी माँ का श्रृंगार,
दक्षिणामूर्ति गुरुवर आधार।
शिवानंद लहरी में शिव भासे,
हर श्लोक में चेतन स्वर रासे।

गौरी, गणेश, गंगा-स्तवन,
श्लोकों में रच दिया ब्रह्मदर्शन।
स्तोत्रों में भक्ति की वर्षा लागी,
भक्त-हृदयों में ज्वाला सी जागी।

लेखनी जिनकी ब्रह्म वाणी,
बोलों में समता, ध्यान ध्यानी।

संन्यास, तत्त्व, जीवन का सार,
शंकर ने खोले मोक्ष के द्वार।

जो वेदों का मर्म बतावे,
जो जीवन को ब्रह्म बनावे।
वह ग्रंथों का ऋषिराज महान,
शंकराचार्य ज्ञान के प्रान।

@Dr. Raghavendra Mishra 

भरत भूमि में जन्मे थे, मम्मटाचार्य महान

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र  (लेखक/रचनाकार)

कश्मीर भूमि तपोमयी, विद्या की थी शान।
भरत भूमि में जन्मे थे, मम्मटाचार्य महान॥१॥

रस की व्याख्या, दोष की सीमा, अलंकार की छाया।
गुणों की गंध समेटे जिसने, काव्य नव रस भाया॥२॥

कविता केवल शब्द नहीं है, यह चेतन अनुभव है।
रस के स्वर में बहता मन जो, वही काव्य का स्वर है॥३॥

काव्यप्रकाश को रचा जिसने, शास्त्रों का श्रृंगार बना।
शब्दार्थ, रस, ध्वनि, अलंकार सबका सुंदर सार घना॥४॥

वाक्यं रसात्मकं काव्यम् इस सूत्र का अर्थ लिख डाला।
काव्य वह, जिसमें छलक पड़े, हृदय भाव की सच्ची प्याला॥५॥

भामह बोले अलंकार आत्मा, वामन ने रीति मानी।
ध्वनि सिद्धि के साक्ष्य बने जो, आनन्दवर्धन की वाणी॥६॥

पर मम्मट ने सबको जोड़ा, बना समरस दृष्टि समाई।
गुण, रीति, अलंकार सभी,शुभ रस की सर्वोच्च परछाई॥७॥

रस निष्पत्ति, भाव अभास, सबका बोध कराता है।
साहित्य का दीप मम्मट, संशय हर ले जाता है॥८॥

ध्वनिरात्मा काव्यस्य कह, स्वीकार किया संकेत को।
पर रस ही बनता है ब्रह्म, जो जोड़े कवि के वेद को॥९॥

न्याय, व्याकरण, मीमांसा भी, उनकी रचना में बहती।
शास्त्र सभी उस काव्यगंगा में, एकधारा में रहती॥१०॥

टिकाएँ बनीं विवेचन उसकी, रुचि, जयदेव, अप्पय जैसे।
काव्यशास्त्र के पथिक सभी, उसे नमन करें मन से वैसे॥११॥

आचार्य मम्मट अमर रहें, साहित्यलोक में ज्योति बनें,
शब्दों के पीछे भाव रचे, रसध्वनि में मोती घनें॥१२॥

@Dr. Raghavendra Mishra 

हे आनन्दवर्धन वंदन तुम्हे, काव्य को दी जिसने चेतना।

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

कश्मीर धरा की विभा अपार,
जग में उजागर ज्ञान अपार।
जन्मे जहाँ आनन्दवर्धन,
कविता में बोले सत्य साकार॥१॥

ध्वनि की जोत जलाया जिसने,
रस की धारा बहाया जिसने।
शब्दों में छिपे अर्थों का,
गूढ़ रहस्य बताया जिसने॥२॥

ध्वन्यालोक रचा अपूर्व ग्रंथ,
साहित्य बना पुनः परम सन्त।
काव्य न रहा अब केवल छंद,
भावों का बहे अब रसगंध॥३॥

काव्यस्य आत्मा ध्वनिः कहकर,
कविता को दी दिव्य दृष्टि।
मुख्य लक्षण से जो न कहे,
वह संकेत बने काव्य सृष्टि॥४॥

रसध्वनि माने सर्वोत्तम,
जिसमें झलकें प्रेम वंदन।
संकेतों में बोले जीवन,
शब्दों में छलके अभिनंदन॥५॥

ना अलंकार, ना रीति मात्र,
ना गुण, ना मात्रार्थ विचार।
सच्चा काव्य वहीं पर ठहरे,
जहाँ भाव हो, संकेत अपार॥६॥

भामह, वामन, दंडी, मम्मट,
सबमें उनका प्रतिध्वनि स्वर।
मम्मट ने भी माना ध्वनि को,
आत्मा जैसे हो सुकवि वर॥७॥

शैव रसों से भरे विचार,
तंत्र योग वेदांत का सार।
काव्य बना अब साधना पथ,
रस की साधना, भाव का विस्तार॥८॥

सहृदय बना वह श्रोता धन्य,
जो पढ़ ले संकेतों की गाथा।
कवि बने वह योगी-पथिक,
जो शब्दों में बोले प्रभु थाता॥९॥

हे आनन्दवर्धन, वंदन तुम्हे,
काव्य को दी जिसने चेतना।
शब्दों के पार पहुँचाया जो,
बोल सका जो मौन भावना॥१०॥

@Dr. Raghavendra Mishra 


मार्तण्ड वह सूर्य है, जो सनातन धर्म का शान

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

स्वर्ण किरणों की गोद में, हिमालय का ताज,
मार्तण्ड खड़ा है अभी, सहन कर सब राज।
अनंतनाग की धरा पे, सूर्य की वह छाँह,
जहाँ पत्थर भी देखते, सभी वेदों की राह॥१॥

राजा ललित का स्वप्न था, धर्म की अभिव्यक्ति,
निर्माण में जो गूँजती, आदित्य की भक्ति।
कश्मीरी शिल्प की मृदुता, गुप्तों की गहराई,
ग्रीक मिश्रित चित्र वाली, शिव सूर्य की छाई॥२॥

न मंदिर मात्र भवन रहा, न ईंट मात्र शिला,
वह एक यज्ञ की ज्वाला है, तब शाश्वत बीज खिला।
वह सूर्य जो सबको ताज दे, पर खुद अकेला खड़ा,
भक्ति की वह बूँद है, जो आज भी अलौकिक पड़ा॥३॥

सप्त घोड़ों की रथ रेखा, नज़र न आती आज,
पर आकाश से बरस रही, अब भी उसी की साज।
खण्डहरों की छाँव में, इतिहास गाता राग,
कालजयी है यह स्मृति, काल से जो है विराग॥४॥

नत हो मस्तक तीर्थ में, निसर्ग करे जो नृत्य,
शब्द न हों, केवल हो मौन, आत्मा में हो कृत्य।
मार्तण्ड वह सूर्य है, जो सनातन धर्म का शान,
वह ज्योति जो भीतर जले, भारतीय के मन का गान॥५॥

@Dr. Raghavendra Mishra 

मार्तण्ड सूर्य मन्दिर जीवन हमारा

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

चमके एक दीप कश्मीर की छाया में,
सात किरण विद्यमान सूर्य के काया में।
कश्मीर की भूमि सदाशिव के माया में,
सनातनी है मार्तण्ड अनंत के साया में॥१॥

उत्तम राजा थे महान धर्म ज्ञाता,
ललितादित्य थे मन्दिर के निर्माता
पत्थर पर उकेरा वैदिक सांचा,
सूर्य का मन्दिर, भक्ति से नाता॥२॥

मट्टन की गोदी में खड़ा अजस्र,
स्तंभों का संगीत, वास्तु का रस।
ग्रीक, गुप्त, कश्मीरी भरत तत्त्व 
मंदिर बोले मैं हूँ साक्षी सनातन सत्त्व॥३॥

न स्वर्ण कलश, न दीप सजे,
फिर भी वहाँ प्रभा की लहर बहे।
खंडहर में भी सूरज मुस्काए,
दुष्ट ने तोड़ा, पर तेज न जाए॥४॥

शिखरों पर अरुणोदय की छाया,
हर पत्थर बोले प्राची की माया।
मार्तण्ड मृत्यु से भी परे हैं, 
सप्तरश्मि रथ पर अचल चले हैं॥५॥

कश्मीर की धरा का मणि मुकुट,
संस्कृति का दीप, भारत का भृकुट।
आओ जनों! यह तीर्थ जागृत है,
सनातन से शिवात्मा हिमादृत है॥६॥

जैसे कोणार्क, जैसे मोढेरा,
यह भी है आदित्य का सवेरा।
पुनः गूंजे कश्मीर में वैदिक धारा,
मार्तण्ड सूर्य मन्दिर जीवन हमारा॥७॥

@Dr. Raghavendra Mishra 

Wednesday, 21 May 2025

सनातन जम्मू-कश्मीर में मन्दिरों की मणिमाला

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

उत्तर में जहाँ ताज हिमगिरि धरे,
देवों की लीला वहाँ निर्झर बहे।
जम्मू-कश्मीर, तप की धरा रे,
मन्दिरों में वहाँ शुभ धर्मध्वजा फहरे॥१॥

अमरनाथ की गुफा गूंजे,
शिव के नाम का शंख बजे।
हिम से बने लिंग जो प्रकटे,
श्रद्धा से जन मन पुलक उठे॥२॥

त्रिकूटा वासी वैष्णो माता, 
शरणागत को रक्षक दाता।
गुफा में दीप धरे मन साथा,
माँ के दर पे झुके हर माथा॥३॥

शंकराचार्य पर्वत की छाया,
शिव समाधि का वह उपाया।
डल झील के ऊपर जो विराजा, 
शिव, सत्य, ज्ञान वहाँ सुसाजा॥४॥

मार्तंड सूर्य का पुरातन ध्यान,
ललितादित्य का तेज महान।
खंडहर गाथा कहता बारंबार, 
यह सूर्यदेव का दिव्य उपहार॥५॥

रघुनाथ मंदिर जम्मू जन में बसा,
राम नाम का अमृत पुष्प बरसा।
सोने की आभा शिखरों में सजा,
भक्ति है यहां जन तन मन में रजा॥६॥

रणबीरेश्वर, शिवशक्ति स्वरूप,
आठ शिवलिंग जपहि सब भूप।
पूजन होता वहां संग दीप–धूप, 

हर भक्त वहाँ हरि का ही रूप॥७॥

महालक्ष्मी जूड़े में चंद्रिका,

धन, ऐश्वर्य की मातरिका।

भक्ति में रमते सब व्यापारी,
माँ के चरणों में अब जीवन सारी॥८॥

नगली साहिब में गुरु छाया,
सिख-हिंदू का एक समर्पण भाया।
भक्ति, सेवा, लंगर का माया,
संघ शक्ति का सुंदर शिव काया॥९॥

श्री भद्रकाली उग्र रूप धारिणी,
रक्षा करें मातृसत्ता की वारिणी।
चामुंडा, दुर्गा, काली सम वाणी 
शक्ति स्वरूपा भवानी सब प्राणी॥१०॥

गुप्त गंगा, हरि परबत का गान, 
शारदा पीठ ज्ञान का उच्च शान।
जेष्टेश्वरा, महाकाल का उत्तम धाम,
कण-कण शिवमय, क्षण–क्षण सीताराम॥११॥

न जाने कितने तीर्थ बसे,
घाटी में पुण्य कथा सरसे।
हज़ारों मंदिर कुछ विख्यात से,
कुछ वीराने में, वे हैं दिव्यप्रभात से॥१२॥

ओ यात्री! यदि तू यहाँ आए,
श्रद्धा का दीप साथ में लाए।
यह कश्मीर न केवल सौंदर्य मन भाए, 
यह सत्य सनातन की अमर वाणी गाए॥१३॥

@Dr. Raghavendra Mishra 

सनातन जम्मू कश्मीर के देवालय

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

हिमगिरि की छाया में जहाँ गूंजे शिव का नाम,
अमरनाथ की गुफा में बसा है शाश्वत धाम।
हिमलिंग वहाँ प्रकट हो जाते, श्रावण में हर वर्ष,
श्रद्धा, तप और भक्ति से हो जाता जगत हर्ष।।

मार्तंड का वह सूर्य मंदिर, वैभव की इक छाया,
ललितादित्य ने रचा जिसे, जिसकी कथा जन गाया।
खंडहरों में भी तेज है, इतिहास वहाँ मुस्काता,
कश्मीर के भूपों में आज भी वह रश्मि बरसाता।।

शंकराचार्य पर्वत चढ़े, जहाँ शिव ध्यान लगाते,
डल झील की लहरों में भी, मंत्र जपित हो जाते।
श्रीनगर की ऊँचाई पर, मंदिर प्राचीन महान,
जहाँ दर्शन पा भक्त जन, पाते निर्वाण समान।।

जम्मू की नगरी में गूंजे, रघुनाथ का प्यारा नाम,
कृष्ण मंदिरों में सजीव हैं, लीला के विविध धाम।
कुपवाड़ा से बारामुला, पुलवामा से अनंतनाग,
हर नगर गाँव में रचे हैं, श्रीहरि के पावन राग।।

भव्य रथों में शोभा यत्रा, ज्योति उठे हर द्वार,
कश्मीर की माटी भी गाती, वैदिक युग का सार।
सनातन की उस पताका को, आज पुनः लहराएँ,
हर मंदिर में दीप जलाकर, भारत को सजाएँ।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

त्रिकूट शिखर पर दीप जले हैं, श्रद्धा के अंगार

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

त्रिकूट शिखर पर दीप जले हैं, श्रद्धा के अंगार,
जहाँ विराजें वैष्णवी माता, ज्योति जगे अपार।
बाणगंगा की धारा कहे, चरण पादुका गाथ,
हर शिखर, घाटी बोले जय माता दी एक साथ।।

शरणागत की रक्षा करती, देवी अन्नपूर्णा,
कभी काली, कभी सरस्वती, कभी लक्ष्मी पूर्णा।
गुफा में तीन पिंडियाँ, त्रिगुण रूप त्रिवेनी,
जहाँ दर्शन कर मुक्त हो जीव, कटे मोह के रैनी।।

पुराणों की वाणी गूंजे, स्कंद और देवी कथाएँ,
अर्जुन की भक्ति वहाँ पहुँचे, जहाँ सृष्टि झुक जाए।
राम ने जहाँ तप किया था, शक्ति का वर माँगा,
वहाँ आज भी भक्तों में, वही तेज है जागा।।

इतिहास गाए वैदिक स्वर, संस्कृति के साज,
राजाओं से लेकर ऋषियों तक, यह भूमि बनी राज।
शारदा पीठ का तेज समाया, माता की मुस्कान में,
संस्कृति, सभ्यता, योग-साधना सब त्रिकूट के धाम में।

गुफा की राह तप की राह, योगिनी प्यारी,
अर्धकुमारी की साधना में, कन्या रूप धारी।
हर डगमग पग में माँ का नाम, साधक की पुकार,
चलो उसी ओर जहाँ आत्मा से हो साक्षात्कार।।

ज्ञान भैरव की गहराई में, देवी तत्त्व समाया,
शिव की अर्धांगिनी शक्ति ने, योगमयी रूप पाया।
कुंडलिनी से लेकर ध्यान तलक, सब पथ यहीं से जाता,
जहाँ भक्ति हो योग में परिणत, वही वैष्णो माता।।

माता की भेंट न धन माँगे, न पद की कोई आस,
वो केवल भाव की भाषा समझे, करुणा का प्रकाश।
श्रद्धा से सब आएं भक्त जन, कटरा तक पुकार,
जय माता दी की गूँज चले, अम्बा हो तैयार।।

शास्त्रों ने भी शीश नवाया, वेदों ने की वंदना,
तांत्रिकों ने साधा स्वरूप, संतो ने की आराधना।
भक्ति की यह उच्च प्रतीति, शक्ति से पूर्ण नाता,
जहाँ पिंडियों में मां बसी हों, वही वैष्णो माता।।

मंदिर का संचालन जिसने, सेवा को धर्म बनाया,
श्राइन बोर्ड की छाया में, युगधर्म फिर से आया।
अस्पताल, पाठशाला में, माँ की छवि गान
सामाजिक सेवा में श्रद्धा, माँ करो मम कल्यान।।

हे वैष्णवी! त्रिकाल की तू, साधक की तू आस,
कश्मीर की धरती से, फैला तेरा प्रकाश।
शिव की तू आराध्य शक्ति, योगिनी तू महान,
तेरे दर पे मिटते हैं, दुखों के सब विधान।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

जम्मू कश्मीर सनातन की स्वरगाथा

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

हिमगिरि की गोदी में वसुधा की कान्ति,

जहाँ बहती चिरंतन ज्ञान की शान्ति।
वह भूमि जहाँ ऋषि-ज्ञान प्रकटे,
शिवसूत्र जहाँ अनहद शब्द लपेटे।।

सरिताओं से सिंचित वह सतीसर धाम,
जहाँ प्रकटे कश्यप, जहाँ ज्ञान का काम।
निलमतपुराण की कथा में जो जागे,
शारदा की जिह्वा से वेद जहाँ लागे।।

जहाँ अभिनवगुप्त ने दीप जलाया,
तंत्रालोक में ब्रह्मज्ञान समाया।
प्रत्यभिज्ञा की प्रतिध्वनि हर घाटी में,
भैरव का विज्ञान छिपा शुभ माटी में।।

राजतरंगिणी कल्हण की लेखनी,
इतिहास में उकेरी सच्ची रेखनी।
मम्मट के छंदों में अलंकार बोले,
काव्यप्रकाश में सरस्वती डोले।।

शारदा पीठ जहाँ विद्याओं का वास,
ज्योतिष, व्याकरण, तंत्रों का प्रकाश।
काश्मीर की पीठों से उपजी परंपरा,
संस्कृति बनी युगों तक अमर धरोहरा।

अवंतीस्वामी, मार्तंड की मूरतें,
सूर्य मंदिरों की स्वर्णिम सूरतें।
हरि पर्वत, अमरनाथ के गह्वर,
ध्यानस्थ योगी, तपस्वी अंबर।।

बहे ज्ञान की नदियाँ हिमगिरि से,
शिवशक्ति की साधना निर्झरि से।
शिवसूत्रों का नाद अनन्त गुंजे,
विज्ञान भैरव में ब्रह्म को पुंजे।।

यहाँ शैव, वैदिक, तांत्रिक रस,
योग-मुद्राओं से जुड़ा हर शुभ यश।
कुंडलिनी जगे जिस ध्यान विधा में,
नाद-बिंदु मिले जिस प्राण सुधा में।।

कश्मीरी पंडितों की पुण्य परंपरा,
जिनकी स्मृति बनी साक्षात् धरोहर अपरा।
वेदशास्त्र जिनके चित्त की श्वास,
भारतीय चेतना का उज्ज्वल प्रकाश।।

यह भू न केवल धरती का अंश,
यह तप, योग, ज्ञान का शुभ हंस।
सनातन संस्कृति की सजीव कथा,
हिमगिरी की गोद में अमृत मथा।।

@Dr. Raghavendra Mishra 

नारी हो या नर कोई भी, जब गुरु चरण पावै,

ज्ञान-ज्योति तब चित्त में उदित, स्वयं शिव बनि आवै।

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

अमरनाथ की शीत शरण में, जागे ज्ञान प्रखर, 

लक्ष्मण जू की वाणी में था, तत्त्वत्रय का स्वर।
शैव रहस्य प्रकट हुआ जब, मौन मुनि मुस्काए,
दो नारियाँ बन चलीं शिष्या, योग दिशा अपनाए।।

एक थी बेट्टिना बूम, विदेशी कुल की मान,
सांस्कृतिक सौंदर्य खोजती, पहुँची भारत धाम।
स्वामी की चरणों में बैठी, पाया शिव का ज्ञान,
ग्रंथों को अर्थवती किया, जगा दिया विज्ञान।।

शब्दों में उतरी चैतन्य की, अगम कथा अपार,
अभिनवगुप्त की व्याख्या में, प्रकट हुआ विस्तार।
वेद तंत्र संहिता सजीव, उनके कलम ने राचे,
पश्चिम में फैली प्रभा शिवा की, ऋषि वाक्य मुखर बाचे।।

नारी थीं वे, शुभ ज्ञान दीप थीं, शैवभाव में लीन,
नारीत्व का तेज बनीं वे, शिवशक्ति में विलीन।
लक्ष्मण जू की अमर धरोहर, दोनों ही स्तम्भ शान,
कश्मीर की तत्त्व-ब्रह्मधारा में, बन गईं विलक्षण नाम।।

शिव की लीला, गुरु की कृपा, शिष्या में जो जागे,
भाषा, देश, शरीर का बंधन, तत्वमार्ग न लागे।
नारी हो या नर कोई भी, जब गुरु चरण पावै,
ज्ञान-ज्योति तब चित्त में उदित, स्वयं शिव बनि आवै।

@Dr. Raghavendra Mishra 

हे लक्ष्मण जू! हे शिवतुल्य ज्ञानी,

तुमसे ही पुनः जीवित शिव वानी।

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

कश्मीर की घाटी में गूंजा स्वर, जहाँ हिम की चुप्पी कहे रहस्य।
वहाँ जन्मा एक योगीराज, जिनकी दृष्टि थी शिवमय स्पर्श।

लक्ष्मण नाम, पर जू कहें सब,वह जन में नहीं, शिव के सदृश।
जिसने तंत्र के मौन सूत्र को, शिवमय किया, जहां थे अदृश्य।।

न थे वे केवल ग्रंथों के ज्ञाता,

थे शिव के वे साक्षात् अनुभव।

प्रत्यभिज्ञा का पथ दिखाया,

कि तू ही शिव, बस कर अनुभव।।

बाल्य से ही तप की थी लौ, ध्यान बना जीवन का शुभ सार।
मौन साधना, मंत्र की धार, जहाँ समय थमता हर बार।।

स्पन्द ही शिव है, जान तू यह, हर गति में है परमेश्वर छिपा।
कहते थे वो मंद मुस्कान से, और घट में शिव को सदा दिखा।।

न कहीं तू भिन्न है शिव से, न कोई दूरी, न कोई द्वार।
बस जाग तू उस ज्ञान में, जहाँ 'मैं' भी है शिवाकार।।

शब्द उनके मन्त्रवत् बहते, भक्ति और बोध से पूर्ण दृष्टि।
संस्कृत के गूढ़ रहस्यों को, किया सहज जैसे शुभ काव्य सृष्टि।।

विदेशों के जिज्ञासु जन भी, खींचे आए उस दीप संग।
जहाँ गुरु न केवल आचार्य, थे अनुभूति का जीवंत अंग।।

ईश्वर आश्रम बना तीर्थस्थल, ज्ञान जहाँ बहे शिवसरिता सा।
प्रश्नों के चिता में वो सदगुरु, जैसे चैतन्य के दिव्य वर्षा सा।।

मृत नहीं वह, कालातीत हैं, शिवदृष्टि के वह बीज अनन्त।
जो साधक के हृदय पटल में, जगाते हैं निर्वाण के तीव्र सन्त।।

हे लक्ष्मण जू! हे शिवतुल्य ज्ञानी,

तुमसे ही पुनः जीवित शिव वानी।

कश्मीर का तत्त्व, त्रिक के सार,
तेरे चरणों में समर्पित सब प्रानी।।

@Dr. Raghavendra Mishra 


हे लक्ष्मण जू! प्रणाम तुझे, तू आचार्य, तू दिव्य मित्र।

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)

हिमवद् शिखर की छाया में, मन में हुआ तमराज 
उत्पन्न हुए योगी वहां, जो चैतन्य के अधिराज।।
वाणी जिनकी वेदवत् थी, दृष्टि में शिव का विलास,
जिनके ध्यान नयन तले, शून्य भी बन जाए प्रकाश।।

लक्ष्मण जू, वह ज्योति स्वरूप, शिवतत्त्व के हैं साक्षात्कार,
जिनकी श्वासों में गूँज रहा था, अद्वैत तंत्र का अमृत धार।
बाल्यकाल में ही प्रकट हुआ, जो अनुपम बीज शिवज्ञान का,
शब्दों में वे शिव मंत्र बहे, जग को दे मोक्ष शैव विज्ञान का।।

न शुष्क शास्त्र, न केवल ग्रंथ, जीवन बना प्रतीति का मंत्र।
‘शिवसूत्र’ का सार बहे, विज्ञानभैरव’ का साक्षी शुभ तंत्र।।

वह बोले न तू भिन्न शिव से, न ही सीमित यह तुच्छ मन।
जो भी जागे, पहचान सके, वही तत्त्व, वही चैतन्य धन।।

शिव मैं हूँ, न कोई भेद, प्रत्यभिज्ञा का यह मूल तत्त्व।
जब मिट जाएं द्वैत के बन्धन, तब जागे आत्मा का सत्त्व।।

शांत चित्त, गम्भीर दृष्टि, नयन नीरव, मन पूर्ण शुद्ध।
हर वाक्य उनका अग्निवत् जला दे अज्ञान का घोर युद्ध।।

विदेशों तक गूँजा स्वर उनका, ज्ञान बना जो त्रिक की नाव।
संस्कृत की उस गूढ़ गाथा को, किया सरल, सुसहज बहाव।।

ईश्वराश्रम बना तीर्थ वो, जहाँ विचार में न कोई व्याधि।
जन्मों की थकान मिटे, जहाँ चित्त को शिवमय समाधि।।

हे लक्ष्मण जू! प्रणाम तुझे, तू आचार्य, तू दिव्य मित्र।
तेरे ज्ञानस्रोत से हमने, पाया शिव का सत्य सुचित्र।।

तेरा जीवन एक दीपशिखा, प्रत्यभिज्ञा की दीर्घ पुकार,
जहाँ 'मैं' और 'तू' विलीन हो, बस बचे शिव का विस्तार।।

@Dr. Raghavendra Mishra