भजन/गीत
*जागो भारत, जागो भारत, सत्य का दीप जलाओl*
*वेदों की वाणी को,फिर से विश्व में फैलाओ*
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, BSVN नोएडा l
मैक्स मूलर की व्यर्थ बातों में, क्यों बंधा हमारा ज्ञान?
वेद अनादि, अपौरुषेय हैं, क्यों माने हम इनका शान?
ऋषियों की वाणी अनंत, सृष्टि का गान सुनाता है,
हर मन्त्र में विज्ञान बसा, क्यों ना हमें बताया जाता है?
रामायण, वेद, पुराण, जो भारत की आत्मा हैं,
क्यों कह दिया इन्हें 'मिथक', जब साक्ष्य सब शिवात्मा हैं?
मनुस्मृति से लेकर त्रिपिटक, तिरूकुरल की छाया,
दिग्दर्शक ये ग्रन्थ सदा से, नहीं किसी कल्पित माया।
हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिख, एक ही तो मूल वृक्ष हैं,
एकता को बाँटा जब, तब पनपे झूठे रीक्ष हैं।
संस्कृति की व्याख्या जिनकी, दृष्टि में था स्वार्थ छिपा,
भ्रम फैला, विवेक दबाया, सत्य को कर दिया फीका।
हम तो गिनते युगों से काल — सत, त्रेता, द्वापर, कलि,
पर उन्होंने कह डाला, गॉड ने रचा विश्व अभी-अभी!
Old Testament का वर्णन, विज्ञान पर भारी क्यों?
जब खगोल में हम सिद्ध हुए, फिर भी अस्वीकारी क्यों?
सरस्वती की सभ्यता के, साक्ष्य सनातनीयों ने पाए,
सनौली से शिवगंगालाई तक, सन् हजारों पीछे जाए।
किन्तु सबको भुला दिया, हड़प्पा तक सीमित कर,
इतिहास को काटा-छाँटा, और परोसा झूठा घर।
आर्य-द्रविड में बाँट दिया, नर्मदा-गंगा के नाम,
इंडस चिन्ह और द्रविड लेख, क्यों दिखते अलग-अलग ग्राम?
धातुओं से जो तय किया, वो कालक्रम खोखला था,
विचारों की गरिमा घटी, जब विज्ञान को छला था।
सूर्य-चन्द्र की पूजा, पंचतत्व की महिमा,
विश्व को जो जन्म दिया, उसी को बना दिया सीमा!
ग्रीक, सुमेरु, चीन, मिस्र, सब हमसे कुछ पाए,
पर कहे बिना उन्होंने, ज्ञान हमारे अपनाए।
संस्कृत को बना दिया, केवल एक कल्पना,
जबकि वही थी स्रोत-संगीत, भाषा की सजीव ध्वनि-सना।
प्राकृत, पाली, तमिल-संगम — इनसे उपजी हर तरंग,
फिर भी उनका योगदान, बना दिया केवल एक जंग।
202 विद्याओं की गाथा, 64 कलाओं की शान,
राजनीति, युद्ध-कला, संगीत-साहित्य महान।
गुरुकुल की शिक्षा लुप्त, यूरोप ने लिया साज,
पुनर्जागरण का स्रोत बना भारत का हर राज।
आयुर्वेद, पंचकर्म, ध्यान, मर्म विद्या, योग,
गैर-वैज्ञानिक बताकर, किये गये सब भोग!
होम, संगीत, वाजीकरण — ये उपचार की संज्ञा,
किन्तु प्रस्तुत किया गया, जैसे ये हों तुच्छ प्रज्ञा।
स्वर्णभूमि जिसे कहा गया, बना दिया भिखारी,
जबकि नालन्दा, विक्रमशिला थीं ज्ञान की फुलवारी।
गुरुकुलों को मिटा दिया, मैकॉले की चाल चली,
उज्जयिनी को छोड़ दिया, ग्रीनविच की घड़ी चली।
वर्ण का अर्थ कर्म रहा, जाति बना दिया क्यों?
ताड़न का अर्थ ‘दंड’ नहीं, ‘देखना’ है — समझो तो!
रामचरितमानस को तोड़ा, तुलसी को कलंकित किया,
राजनीति के चश्मे से, सनातन को ही विकृत किया।
चैत्र प्रतिपदा, ऋतु-विज्ञान, कृषिकाल का ज्योतिष,
अंग्रेजी कैलेंडर ने, ढक दिया वो ध्वनि विशिष्ट।
उत्तर-पथ, समुद्र मार्ग, व्यापार के प्रमाण,
किन्तु ‘सिल्क रोड’ के नाम से, मिटा दिया सम्मान।
ध्वंस, लूट, बलात्कार, मस्जिदों के निर्माण,
इतिहास ने सब लिखा है, फिर क्यों बने 'कलाओं' का गान?
पैगन, सेल्ट, रोमन-संस्कृति, मिटी अब्राह्मिक काल,
किन्तु सत्य सनातन डटा रहा, सहनशीलता में विशाल।
अब तो जागो, हे भारत!
स्मृति, वेद, पुराण गाओ।
वास्तविकता को पहचानो,
नैरेटिव्स को सच में बदलाओ।
जागो भारत, जागो भारत,
सत्य का दीप जलाओ!
वेदों की वाणी को,फिर से
विश्व में गुंजाओ।
@Dr. Raghavendra Mishra
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