*भजन: "विश्व में गूँजे सनातन की बानी"*
लेखक का नाम
डॉ राघवेन्द्र मिश्र
विश्व में गूँजे सनातन की बानी,
भारत की वाणी, विश्व की कहानी।
शांति, सत्य, प्रेम की रवानी,
धर्मो रक्षति रक्षितः की निशानी।
गूँजे वेदों की वाणी, दिशा-दिशा में प्राचीनी,
सनातन की छाया, बसी विश्व भूमि में निर्मानी।
अजरबैजान की अग्नि पुकारे, बाकू की ज्वाला कहे,
अरमेनिया का गार्नी मंदिर, सूर्य की ज्योति बहे।
इजिप्ट के कोम्बू में उभरे, चरक-सुश्रुत के नाम,
शिलालेख बने गवाही, संस्कृति का हो अविराम।
धन्वन्तरी की आयुर्वेद ज्वाला,
जग में फैली दीपक की माला l
अमेरिका की घाटियों में, गूंजे ब्रह्मा-विष्णु स्वर,
नवाडा पर्वत कहें कहानी, सृष्टि के रहस्य अपर।
चीन की दीवारों पर संस्कृत,
भारत माता की हो वो वंदित।
सेल्टिक, इंका, पैगन धारा,
सनातन की एक ही धारा।
ताशकंद, समरकंद की गली,
मंत्रों से भर दे सजीव झली।
कम्बोडिया, थाईलैंड बोले,
वियतनाम की माटी डोले।
इंडोनेशिया में राम बहे,
भक्ति की गंगा नित बहे।
श्रीलंका से स्वीडन छू जाए,
भारत का नाम गगन गाए।
ज्ञान-योग की पावन गंगा,
पवित्र करे युगों की तरंगा।
हिंदु अमेरिका के स्वर उभरे,
गुप्तों की पुस्तकें सब कहे।
रोम, यूनान, हंगरी बोले,
संस्कृति की जड़ें अमर होले।
विश्व बने सनातन धारा,
शांति, सत्य और प्रेम हमारा।
भारत बोले, विश्व बोले,
"धर्मो रक्षति रक्षितः" बोले।
@Dr. Raghavendra Mishra
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