डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
(लेखक/रचनाकार)
भजन: "भरत मुनि के चरणों में वंदन"
भरत मुनि के चरणों में, वंदन बारंबार।
नाट्यशास्त्र का दीप जला, उजियारा संसार।।
ऋग से लेइ भाषा मधुर, यजुर से गति पावन।
सामवेद का गान सुरीला, अथर्व रससागर मन।
चतुर्वेद के अमृत से, रचा नाट्य अपार।।
भरत मुनि के चरणों में, वंदन बारंबार।।
रसों की सुरसरि बही, शृंगार करुणा साथ,
वीर रौद्र हास्य से, नचा जगत के नाथ।
भाव, अभिनय, स्वर, छंद, सब शिव का अवतार।।
भरत मुनि के चरणों में, वंदन बारंबार।।
आंगिक, वाचिक, आहार्य, सात्विक आधार,
जग को ज्ञान सुधा पिला दी, मिटाया अंधकार।
धर्म, अर्थ, काम सिखाया, मोक्ष दिया आधार।।
भरत मुनि के चरणों में, वंदन बारंबार।।
आज भी तेरी वाणी से, नाचें सुर और लोक,
तेरा दिया अमृत शास्त्र, बने अमर आलोक।
यूनेस्को भी गाता गुणगान, हो गया सत्कार।।
भरत मुनि के चरणों में, वंदन बारंबार।।
भरत मुनि, हे ज्ञान दीप,
तेरी महिमा अपरम्पार।।
नाट्यधर्म जग में फैला,
तूने किया उद्धार।।
भरत मुनि के चरणों में, वंदन बारंबार।।
नाट्यशास्त्र का दीप जला, उजियारा संसार।।
@Dr. Raghavendra Mishra
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