Friday, 18 April 2025

 उपन्यास: मीरगंज की राक्षसी


अध्यक्ष 1: खौफ का साया


चंडाली ने मीरगंज विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में पदार्पण किया। उसके चेहरे पर मासूमियत का नकाब था, लेकिन भीतर एक राक्षसी शक्ति छिपी हुई थी। उसकी पूरी राजनीति सबको डराकर और हेरा-फेरी करके सत्ता की कुर्सी तक पहुँचने की थी। वह सत्ता में बने रहने के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी।


जब वह विश्वविद्यालय में आई, तो सभी ने उसे एक नई उम्मीद के रूप में देखा। लेकिन धीरे-धीरे उसकी असलियत सामने आने लगी। छात्रों और शिक्षकों को एहसास हुआ कि उसके लिए सत्ता ही सब कुछ है, और उसके लिए कोई भी नैतिकता मायने नहीं रखती।


अध्यक्ष 2: सत्ता की सीढ़ियाँ


चंडाली ने मीरगंज विश्वविद्यालय की चारदीवारी में पाँव रखते ही यह जान लिया था कि यहाँ पर सत्ता सिर्फ ज्ञान से नहीं, बल्कि सत्ता पर काबू पाने के हुनर से मिलती है। उसने सत्ता के गलियारों में अपनी जगह बनाई और कुलपति का पद हासिल किया।


मूल्य और नैतिकता उसके लिए कुछ नहीं थे। वह किसी भी स्तर पर जाकर अपनी सत्ता को बनाए रखने के लिए तैयार थी। विश्वविद्यालय में उसे एक शानदार स्वागत मिला—चमचमाते कुर्ते-पायजामे, मुस्कुराते चेहरे, नकली अभिनंदन। लेकिन चंडाली को यह सब समझ में आ गया था कि ये सब उसके मुखौटे हैं। वह सच्चाई को जान चुकी थी कि उसे सत्ता पाने के लिए और अधिक बुरे रास्ते अपनाने होंगे।


अध्यक्ष 3: संबंधों का विष-जाल


चंडाली के जीवन में संबंध कभी आत्मीयता का स्रोत नहीं रहे। वे केवल एक साधन थे—लाभ उठाने का, नियंत्रित करने का, और सबसे बढ़कर—अपने भीतर के खालीपन को ढँकने का।


वह हमेशा अपने चारों ओर ऐसे लोगों का मंडल बनाती थी, जो उसके प्रभाव में आकर उसके आदेशों का पालन करते थे। वह हमेशा किसी न किसी रूप में सबको अपनी तरफ करती थी—कभी स्नेह का मुखौटा पहनकर, तो कभी क्रूर दंड का भय दिखाकर। इस दौरान उसने विश्वविद्यालय के कई महत्वपूर्ण पदों पर अपने काबिल लोगों को बैठा लिया था, ताकि उसे चुनौती देने वाला कोई न हो।


अध्यक्ष 4: नींव में पहली दरार


मीरगंज विश्वविद्यालय के प्रशासन में अंशुमान नामक शिक्षक पर झूठे आरोप लगने लगे थे। यह आरोप चंडाली के राजनीतिक खेल का हिस्सा थे, ताकि उसे विश्वविद्यालय से बाहर किया जा सके। लेकिन यह घटना एक बड़ी गलती साबित हुई, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप छात्रों और शिक्षकों के बीच असंतोष फैलने लगा।


यही वह समय था जब "प्रतिध्वनि" नामक छात्र संगठन का जन्म हुआ। यह संगठन चुपचाप उन सबकी आवाज़ बनने को तैयार था, जो चंडाली की सत्ता के तले दबे हुए थे। यह संगठन केवल सत्य के लिए खड़ा था, बिना किसी बाहरी राजनीतिक समर्थन के। यह संगठन चंडाली के खिलाफ था, और यह जल्द ही एक ताकत बन गया।


अध्यक्ष 5: अतीत की राख से उठती आग


"प्रतिध्वनि" अब केवल एक संगठन नहीं था—वह एक आंदोलन बन चुका था। विश्वविद्यालय में अब डर नहीं, बल्कि उम्मीद का माहौल था। छात्रों और शिक्षकों ने एकजुट होकर चंडाली की सत्ता को चुनौती दी। चंडाली का अतीत, उसकी माँ की कहानी और उसका असली चेहरा अब सार्वजनिक हो चुका था।


उसका जन्म एक गरीब घर में हुआ था, और उसने एक तंगहाल जिंदगी जी थी। उसका असल रूप अब सामने आ गया था। वह सत्ता की दीवानी थी, और इसके लिए उसने कई अनैतिक रास्ते अपनाए थे। उसकी असली पहचान अब सभी के सामने थी।


अध्यक्ष 6: अंतिम परिक्रमा


मीरगंज विश्वविद्यालय में अब स्थिति गंभीर हो गई थी। छात्रों ने मुख्य भवन पर कब्जा कर लिया था और "प्रतिध्वनि" ने ऐलान कर दिया था कि जब तक चंडाली को हटाया नहीं जाएगा, तब तक कोई कक्षा नहीं चलेगी। विश्वविद्यालय में पढ़ाई का माहौल अब पूरी तरह से बदल चुका था।


चंडाली को एहसास हुआ कि उसकी सत्ता अब समाप्त होने वाली है। उसका साम्राज्य एक तूफान की चपेट में आ चुका था। वह चुपचाप अपनी हार को स्वीकार करने के बजाय, सभी विरोधियों को खत्म करने के उपाय तलाशने लगी। लेकिन छात्रों और शिक्षकों का आंदोलन अब उसकी पकड़ से बाहर हो चुका था।


अध्यक्ष 7: पुनर्जन्म की मिट्टी


वो सुबह, जब चंडाली की लाश मिली, विश्वविद्यालय में कोई शोक नहीं था। कोई शोक सभा नहीं आयोजित की गई, कोई शांति मार्च नहीं हुआ। विश्वविद्यालय के हर कोने में एक अजीब-सी राहत महसूस हो रही थी—जैसे किसी लंबे अस्वस्थ सपने से जागा हो पूरा परिसर।


"अब कुछ नया शुरू होगा..." यह भावना हवा में तैर रही थी। चंडाली का नाम इतिहास में नहीं मिटाया गया, लेकिन उसकी स्मृति को एक चेतावनी के रूप में दर्ज किया गया।


उसकी मृत्यु के बाद, मीरगंज विश्वविद्यालय में एक नई शुरुआत हुई। अब यहाँ सिर्फ ज्ञान, मूल्य और नैतिकता का महत्व था। चंडाली का नाम अब "भूल का प्रतीक" बनकर इतिहास में दर्ज हो चुका था, ताकि भविष्य में कोई भी सत्ता के मद में डूबकर ऐसा न करे।


@Dr Raghavendra Mishra 

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