डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
(लेखक/रचनाकार)
(कविता)
"शिव है मूल, शिव ही धुरी,
चेतन स्वरूप, वही शिवपुरी।"
शिव है मूल, शिव ही धुरी,
चेतन स्वरूप, वही शिवपुरी।
शक्ति है उसका सहज विहार,
सृष्टि का हर कण उसका विस्तार।
स्पन्दन से उठती जीवन की धुन,
अणु-परमाणु में नृत्य करे गुन।
शिव का कम्पन, शिव का गान,
हृदय के पट पर लिखे भगवान।
प्रत्यभिज्ञा का संदेश सुनो,
"तुम ही शिव हो", यह ज्ञान चुनो।
भ्रम के पट हट जाए जहाँ,
सत्य का सूरज चमकता वहाँ।
विज्ञान भैरव का ध्यान अनोखा,
श्वास में, शब्दों में खोजो लोका।
छोटी छोटी क्रियाओं में छिपा,
शिव का स्वरूप, परम रहस्य रिचा।
वसुगुप्त, उत्पल, अभिनव गुप्त,
ज्ञान दीपक, करुणा में सुप्त।
तंत्रालोक की मधुर वाणी,
शिव-शक्ति की अमर कहानी।
न बंधन सत्य, न मुक्त उधार,
बस चैतन्य का उज्ज्वल अधिकार।
जो पहचाने निज स्वरूप महान,
वही बने शिव का सच्चा गान।
हे साधक! भीतर झाँक कर देख,
न बाहर खोज, न दूर विवेक।
तेरे ही अंतस् का गहरा शिव,
तू ही त्रिक, तू ही तन्त्र जीव।
@Dr. Raghavendra Mishra
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