Saturday, 26 April 2025

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र 

(लेखक/रचनाकार)

"कण-कण में वीरत्व जगा कर चला गया!"

(स्वर्गीय जवाहर लाल मिश्र जी के तपस्वी जीवन को नमन)

कण-कण में वीरता जगा कर चला गया,
धधकते अंगारों में हँसकर चला गया!
संघर्षों का दीप जलाकर,
संकल्पों का पर्व रचाकर चला गया।।

भूखे भटकते शिकारी कुत्ते,
न तोड़ सके उसका संकल्प रे,
चींटियों से भरी कोठरियों में,
प्राणों का भी दिया विकल्प रे!
आग परीक्षा बनकर जली थी,
लेकिन वह बनकर कमल खिला गया।।
कण-कण में वीरता जगा कर चला गया...

साइकिल-पदयात्रा पथरीले,
वन-गिरि डगर सभी छान डाले,
एक दीप लिये चल पड़ा अकेला,
हजारों दिलों में ज्वाला जला डाले।
संगठन का मंत्र फूंक चला,
धर्मध्वजा ऊँची कर चला गया।।
कण-कण में वीरता जगा कर चला गया...

रामजन्मभूमि की हुंकारों में,
श्रीराम जानकी रथ सजाए,
जाति पंथ की सीमाएँ तोड़ीं,
धर्मबंधुता के दीप जलाए।
श्रीराम के रथ का सारथी बन,
भक्ति की गंगा बहा गया।।
कण कण में वीरता जगा कर चला गया...

जर्जर काया भी रोकी न राह,
कर्मवीर की थी अग्निमयी चाह,
शरीर मिटाया, तेज बचाया,
अनन्त गगन में दीप सजाया।
आज भी उसका तप पुकारे,
रणभेरी बनकर बजा गया।।
कण कण में वीरता जगा कर चला गया...

@Dr. Raghavendra Mishra 

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