डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
भजन / गीत:
*"अवधी बोली गाइए, गौरव की ये गाथा है"*
अवधी बोली गाइए, गौरव की ये गाथा है।
भारत माँ के मन की भाषा, संतों से इसका नाता है॥
इंडो-आर्यन की संतान, पूर्वी
हिंदी शाखा से,
अपभ्रंश की कोख से आई, संस्कारों की राखा से।
ब्रज-भोजपुरी बहिनी जैसी, मधुर सुरों की थाती है,
लखनऊ से फैजाबाद तक, अमेठी इसकी साथी है॥
अवधी बोली गाइए...
रामचरित का रूप बनी जब तुलसी गुन गाते हैं,
मन के मानस में प्रभु श्रीराम चिरंजीवी आते हैं l
पद्मावत गाथा प्रेम भरी, जायसी ने जब गाई,
कबीर, रविदास की वाणी भी, अवधी में लहराई।
धरती पर अवतार बनी, जब लोकभक्ति में झाँके,
बोल बिरज की रचना करती, रामलला मुस्काए॥
अवधी बोली गाइए...
राज-रजवाड़े बदले लेकिन भाषा रही पुकार,
अंग्रेज़ी-उर्दू आईं, फिर भी रही यह सरकार l
गाँव-नगर में रामलीला, नाच बनके आती,
बिरहा, कहरवा, आल्हा में, क्रांति कथा कहके जाती।
1857 में रणभेरी, जब अवध ने बजवाई,
शब्द-शब्द में तलवारें थीं, जब भाषा ने लड़ाई॥
अवधी बोली गाइए...
रेडियो हो या मंच कोई, अवधी अब भी बोले,
नंदलाल से मालिनी तक, शब्द सदा रस घोले॥
आज यूट्यूब पे गीत बजे हैं, भक्ति के संसार में,
भोजन, परिधान, त्योहारों तक, अवधी है व्यवहार में।
‘हमरे’, ‘तोहरे’, ‘मनवा’, ‘जियरा’ – स्नेह भरे सब बोल,
देवनागरी में लिपिबद्ध है, यह वचन अनमोल॥
अवधी बोली गाइए...
मांग करें अब संविधान से, स्थान मिले अधिकार का,
जो भाषा बाँचें रामचरित, क्यों न हो श्रृंगार का॥
संस्कृति की सजीव शिखा है, तुलसी की अभिलाषा है,
संतों, वीरों, कवियों की ये, मातृभाषा-भाषा है।
आओ गाएं, भाव जगाएं, जन-जन में नव ज्योति,
अवधी बोले विश्व कहे – ये भारत की सच्ची मोती॥
अवधी बोली गाइए, गौरव की ये गाथा है।
भारत माँ के मन की भाषा, संतों से इसका नाता है॥
@Dr. Raghavendra Mishra
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