डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
भगवान परशुराम जी पर आधारित एक भजन गीत, जिसमें उनकी जीवन-लीला, पराक्रम और धर्म-स्थापना की भावना को काव्यात्मक रूप में प्रस्तुत किया जा है ।
भजन/गीत
"जय जय परशुराम प्रभु, धर्म रचइया वीर"
जय जय परशुराम प्रभु, धर्म रचइया वीर।
भृगु कुल के भूषण प्रभु, ब्रह्म तेज धरा शरीर॥
शिव से पाया परशु प्रभु, रुष्ट भए जब काल,
एक–एक करके छिन्न किए, अत्याचारी जाल॥
इक्कीस बार खंडित किया, अधर्मी का अधिकार,
न्याय प्रतिष्ठित कर दिया, किया भूमि उद्धार॥
रेणुका माता के तुम पुत्र, जमदग्नि के लाल,
सहस्त्रार्जुन का किया विनाश, लिया पिता का भाल॥
क्षत्रिय जुल्म मिटाए तुमने, बनाया धर्म मार्ग,
शक्ति-संयम के संग दिखाया, जीवन का सच्चा सार॥
राम से हुई भेंट जब, धनुष यज्ञ के ठौर,
पहचाना तुम विष्णु को, कर लिया सिर मौर॥
कर्ण, भीष्म, द्रोण जैसे, पाये तुमसे ज्ञान,
शस्त्रों के वे देव हैं, तुम ब्राह्मण के प्राण॥
केरल की धरती जो उठी, वह भी है तेरा दान,
अब भी तू चिरंजीव है, करता धर्म का गान॥
कल्कि को देगा अस्त्र-विद्या, अंतिम युद्ध सँवार,
जय जय परशुराम प्रभु, तू सनातन का सार॥
जय जय परशुराम प्रभु, भक्तों के आधार,
तेरी कृपा से पावन हो, यह सारा संसार॥
@Dr. Raghavendra Mishra
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