*भजन शीर्षक: "सनातन की वाणी बोल रही है*
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
(1) सनातन की वाणी बोल रही है,
वेदों की ध्वनि अनमोल रही है।
ऋषियों ने देखे जो दिव्य मन्त्र,
वो आत्मा की बोलियाँ खोल रही हैं।
अनादि, अनन्त हैं वेद हमारे,
नश्वरता से दूर हैं सारे।
ना किसी ने रचा, ना कोई लिखे,
शब्द रूप ब्रह्म के प्यारे।
राम जन्म का ज्योति पर्व,
चमके पंचग्रह अति गर्व।
5114 ई.पू. की नवमी,
आकाश ने दी थी वह स्वर्णिम कर्म।
सप्तर्षियों की देखी दृष्टि,
समाधि में प्रकट हुई वह सृष्टि।
मन्त्र बने मन के स्वरूप,
शब्द प्रमाण बना यह सृष्टिपुस्ति l
महाभारत का रण महान,
3139 ई.पू. का प्रमाण।
चन्द्र-सूर्य ने दिया संदेश,
धर्म की जय, अधर्म की हार।
रामसेतु, बाण और चूड़ामणि,
चावल, वट, और चंद कहानी।
खुदाई में जो सत्य निकले,
उनसे प्रकट हुई राम की निशानी।
सनातन का विज्ञान ये कहता,
वेदों में है ब्रह्म का रस्ता।
न वै वाक् क्षीयते कभी,
शाश्वत है यह ज्ञानवृत्ता।
हे वेद वाणी, हे ऋषि दृष्टि,
हम तेरे ही वंशज हैं सच्ची।
सनातन की गाथा गाएँ हम,
भक्ति में हो विज्ञान की सच्ची।
@Dr. Raghavendra Mishra
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