लेखक
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
गीत/भजन
"जय जय सुलतानपुर धाम"
जय जय सुलतानपुर धाम,
ऋषियों की यह पुण्य भूमि, यशवंत, गौरव गान।
वाल्मीकि-दुर्वासा वशिष्ठ, तप से किया निर्माण।
जय जय सुलतानपुर धाम...॥
गौरवशाली अतीत रहा, यह भूमि वीरों की,
हर कोना गूंजे गाथा, आत्मबल की धीरों की।
बचगोटीस, रजवाड़े, राजवंशों का स्थान,
दियरा, अमेठी, कुरवार, जिनकी गाथा महान॥
राज साह की वंशज रेखा, गूंजे इतिहास में नाम,
जय जय सुलतानपुर धाम...॥
ठकुराईन दारियाव कुंवर, नारी शक्ति की मिसाल,
कष्टों में भी वीरांगना, बढ़ाया कुल का भाल।
रुस्तम साह का तेज अनोखा, रण में जो चमका,
ब्रिटिश राज के दौर में भी, धीरज से न झुका॥
शौर्य, नीति, बलिदान का, जीवंत हुआ प्रमाण,
जय जय सुलतानपुर धाम...॥
कुश-काश की भूमि यह, गोमती तट पावन,
सई, तमसा के संग बहता, पुरखों का जीवन-ध्यान।
कुशभवनपुर से सुलतानपुर तक, बदला नाम-इतिहास,
राजभरों का वैभव आज भी, गढ़ों में करे प्रकाश॥
कलामवंशी क्षत्रियों की, गूंजे यशगाथा निष्काम,
जय जय सुलतानपुर धाम...॥
1857 की क्रांति में, उठी जब चेतना ज्वाल,
किसान बने रणबांकुरे, चल पड़ा स्वतंत्रता लाल।
बाबा राम चंद्र, राम लाल, त्याग की दीपशिखा,
नेहरू जी ने जिनको माना, गौरव की परिभाषा॥
हर आंदोलन, हर रणभूमि, किया समर्पण तमाम,
जय जय सुलतानपुर धाम...॥
इतिहास साक्षी बन गाता, इस माटी की शान,
हर संतति कहे गर्व से, जय भारत, जय महान!
विरासत को जिएं नव पीढ़ी, करे नमन अविराम,
जय जय सुलतानपुर धाम...॥
जय जय सुलतानपुर धाम...॥
@Dr. Raghavendra Mishra
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