Monday, 28 April 2025

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र 

(लेखक/रचनाकार)

भजन : "स्वयं को पहचानो शिव हो तुम"

स्वयं को पहचानो, शिव हो तुम,
छुपा है भीतर ही परम सुखधाम।
छोटा न समझो इस जीवन को,
यही है सच्चा मोक्ष का धाम॥१॥

भूले जो अपने स्वरूप को,
बंधनों में भरमाते हैं।
जागो रे मन! फिर देखो तुम,
शिव रूप में खिल जाते हैं॥२।।

ना कोई दूरी ना दीवार है,
सबमें बसा शिव का प्रकाश।
आत्मा की गहराइयों में,
मिलता है खुद शिव का आभास॥३॥

ज्ञान की जो दीपक जलाओ,
अज्ञान का तम मिट जाएगा।
प्रेम से अपने अंतर में,
शिवस्वरूप प्रकट आएगा॥४॥

प्रत्यभिज्ञा की जो राह चले,
पाए वही जीवन का राज।
गाओ रे मिलकर प्रेम भरे,
"स्वयं शिवं — यही है आज॥५॥"

@Dr. Raghavendra Mishra 

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