1. नाट्यशास्त्र के प्रथम अध्याय "नाट्य उत्पत्ति" पर आधारित कविता
डॉ राघवेन्द्र मिश्र
नाट्य की वंदना
(नाट्यशास्त्र, प्रथम अध्याय)
प्रणम्य पितामह ब्रह्मा को, शिव को नमन करूं सिर झुका,
भरतमुनि ने वाणी खोली, नाट्यशास्त्र को दिया ऊषा।
चहुँदिशि जब मन थकित हुआ था, धर्म और सुख दूर लगे,
देवों ने ब्रह्मा से माँगा, एक नया रस, जीवन सजे।
ऋचाओं से पाठ्य लिया, साम से मधुर गीत,
यजुर्वेद से अभिनय लाया, रस लिया अथर्व का मीत।
रचा नाट्यवेद ब्रह्मा ने, भरत को सौंपा ज्ञान,
नव रस, नव रूपों से भरकर, रच डाला जीवन का गान।
अमृतमंथन विषय बनाया, प्रथम नाटक मंचित किया,
देवताओं ने देखा उत्सव, असुरों ने क्रोध किया।
बोले ब्रह्मा “यह तो जीवन, इसका चित्रण सटीक है,
सुख-दुख, क्रोध, प्रेम, करुणा सबका मिलन ब्रह्मजीत है।”
नाटक केवल खेल नहीं है, इसमें छिपा है ज्ञान,
माया भी है, योग भी है, इसमें रचा ब्रह्म का गान।
यह समाज का दर्पण है, यह रसों की गाथा,
श्रृंगार, वीर, करुण, रौद्र सब इसमें समाय जाता।
नट की देह में ब्रह्म वासे, भावों में शिव की चाल,
दर्शक मन में जाग उठे जब, वही हो नाटक का सुभाल।
@Dr. Raghavendra Mishra
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