डॉ राघवेन्द्र मिश्र
तू जिधर से गुजरेगी सनम,
गली उधर की सुधरेगी सनम ।
देखके तुझको बिगडे दिवाने,
जिन्दगी अपना बना जायेंगे सनम ।
तू जिधर से गुजरेगी सनम,
गली उधर की सुधरेगी सनम ।
अदायें तेरी जो रंगीन मौसम को लायें-२
रंगीन जुल्फ़े घनी बादल को भायें-२
ये करिश्मा कुदरत भी ना जानें,
जवानी को बस में कैसे कर पायेंगे सनम-२
ये सब अदायें अदायें-----३
दिवानों के दिल को बस तडपायेंगी सनम-२
तू जिधर से गुजरेगी सनम,
गली उधर की सुधरेगी सनम ।
तुझको पाना मुश्किल नही,
नामुमकीन हुआ है-२
तुझको जिसने बनाया,
अगर ना मिली तू उसे,
तेरे बिना, तेरी आशिकी में,
रब भी मर जायेगा सनम-२
तू जिधर से गुजरेगी सनम,
गली उधर की सुधरेगी सनम ।
@Dr Raghavendra Mishra
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