Wednesday, 16 April 2025

 डॉ. राघवेन्द्र मिश्र 

डॉ राघवेन्द्र मिश्र 

*भजन शीर्षक:*

*"सनातन धर्म की वाणी अमर"*


विश्व गूँजे सनातन की वाणी,

सूर्य सम तेज, शाश्वत कहानी।

चैत्र प्रतिपदा शुभ दिन आया,

ब्रह्मा ने सृष्टि का चक्र चलाया।


शुक्ल पक्ष में भोर सुहानी,

जग में गूंजी वेदों की वाणी।

यज्ञ हुआ, अन्न उत्पन्न हुआ,

अन्न से फिर जीवन जन्मा।


सूर्य से वृष्टि, वृष्टि से अन्न,

अन्न से जग में चले प्रजा-धर्म।

गीता कहे यज्ञ से पावन,

भव बंधन से मुक्त करे मन।


ॐ, अग्नि, वायु, आकाश, जल,

पृथ्वी, शिव, शक्ति का मंगल।

ऋग्वेद, यजुर्वेद के मंत्रों से,

झलके दिव्यता हर ओर से।


मनु ने कहा – सत्य ही धर्म,

प्रिय बोले पर असत्य न कर्म।

सत्य में ही है सनातन नाद,

जग में गूँजे उसकी बात।


इंडोनेशिया में श्रीराम का नाम,

मिस्र में चरक-सुश्रुत का सम्मान।

स्वास्तिक, ओम की ज्योति जलाए,

विश्व को प्रेम, शांति सिखाए।


नारद बोले धर्म सनातन,

विष्णु की छाया, मूल कारण।

वेद, गौ, यज्ञ की है भाषा,

धर्म की रक्षा, प्रभु की आशा।


धर्मो रक्षति रक्षितः – ये उद्घोष,

गूँजे हर द्वार, हर दिशि, हर जोष।

भारत बोले, विश्व बोले,

सनातन की जय-जय बोले।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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