डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, BSVN नोएडा
भजन/गीत
*श्रुति-स्मृति की अमर वाणी*
श्रुति की वाणी अनादि है, वेदों की ज्ञान गाथा,
ईश्वर की वह प्रेरणा, अमृत जैसी बाता।
संहिता, ब्राह्मण, अरण्यक, उपनिषदों का गान,
ऋषियों ने पाया ध्यान में, यह दिव्य वरदान।
(श्रुति अमर है, न बदले कभी,
ज्ञान का वह शाश्वत स्वर है अभी...)
आयुर्वेद से जीवन सुधरे, धनुर्वेद रक्षक बना,
गान्धर्व वेद से राग जागे, अर्थशास्त्र नीति सना।
उपवेदों में छुपा हुआ, जीवन का सार पुराना,
श्रुति से निखरे आत्मा, मिटे हर मोह का जूराना।
अब सुन स्मृति की मधुर बानी, यादों में संजोई ज्ञान,
मनु स्मृति से नीति सीखे, पराशर का धर्म विधान।
याज्ञवल्क्य ने जो बताया, युगों तक अमर विचार,
स्मृति बदले समय अनुसार, पर भाव रहे सत्कार।
रामायण-महाभारत की गाथा,
इतिहास बना दिव्य वृथा।
गीता का वह उपदेश अमर,
कर्म और ज्ञान का पथ सरल।
पुराणों में कथा पुरानी,
१८ प्रमुख, उप-पुराण अनेक कहानी।
विश्व को जो दर्शन दे,
अगम-निगम का रस वो ले।
षड्दर्शन का दिव्य प्रकाश,
न्याय, सांख्य और योग विशेष।
वैशेषिक, मीमांसा ज्ञान की राह,
आत्मा को दें निर्मल आश।
(श्रुति-स्मृति का यह मिलन महान,
सनातन का है यह गूढ़ विधान...)
श्रुति की गूंज, स्मृति का ज्ञान,
संस्कृति की ये शाश्वत पहचान।
जय सनातन, जय ऋषिगण की वाणी,
भारत भूमि, ज्ञान की रानी।
@Dr. Raghavendra Mishra
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