डॉ. राघवेन्द्र मिश्र (लेखक/रचनाकार)
नाट्यशास्त्र के प्रथम अध्याय पर आधारित कविता, जिसमें शास्त्र की समस्त भावभूमि, घटनाक्रम और तत्व-ज्ञान को काव्यात्मक शैली में प्रस्तुत किया गया है।
॥ नाट्यशास्त्र का प्राकट्य – कविता के रूप में॥
वंदना और प्रश्न
नमन करूँ मैं ब्रह्मा शंकर, योगीश्वर महेश।
जिनसे नाट्यशास्त्र जन्मा, भावों का संदेश॥
भरतमुनि जप कर विश्रांत, बैठे पुत्रों संग।
आत्रेय ऋषि आए समीप, मन शुद्ध, विनय रंग॥
पूछा मुनि ने प्रेम से, “हे मुनि श्रेष्ठ महान।
कैसे जन्मा नाट्यवेद? इसका क्या प्रमान॥
किसके हेतु? कितने अंग? कैसे हो प्रयोग?
कृपा कर हमें बताइए, इसके सारे योग॥”
नाट्य की उत्पत्ति
भरत बोले “हे तपोधन, सुनो कथा विचित्र।
त्रेता में जब धर्म गिरा, बढ़ा अधर्म समित्र॥
लोभ मोह में फँस गए जन, विघ्नों ने ली दीक्षा।
तब देवों ने की प्रार्थना, ब्रह्मा से विनती दीक्षा॥
‘हे पितामह, दो हमें, ऐसा सुख का साधन।
जो हो दृश्यम्, श्रव्यम् भी, भावों का हो बंधन॥
चार वेद तो वर्णमुख, अन्य न पाए भाग।
रचो पाँचवाँ वेद ऐसा, सबके हित का राग॥’”
नाट्यवेद की रचना
ब्रह्मा ने चित्त में उठाया, गम्भीर भावों से ध्यान।
किया स्मरण वेदों का, हुआ नाट्यवेद महान॥
ऋग से लिया पाठ्य, साम से स्वर-गान।
यजुर्वेद से अभिनय, रस लिया अथर्व प्रमान॥
तब भरतमुनि को दिया ज्ञान, पुत्रों में किया प्रचार।
किया प्रयोग, किया प्रणाम, ब्रह्मा बोले सत्कार॥
‘अब कैशिकी जोड़ो इसमें, जिससे रसे श्रृंगार।
देखा शिवनृत्य में इसको, सौंदर्य जिसकी धार॥’
अप्सराओं का आगमन और नांदी
‘यह वृत्ति पुरुष न निभा सकें, स्त्री चाहिए संग।
मन से रचीं अप्सराएँ तब, ब्रह्मा की यह रंग॥
इन्द्रध्वज महोत्सव का अवसर शुभ संधान।
प्रयोग करो इस नाट्य का, लाओ सबका ध्यान॥’
नांदी की रचना की गई, वेदों से सम्पन्न।
आठ पदों से युक्त वह, वरदानों की छन्द॥
दैत्यों की पराजय की, झाँकी मंच सजाय।
हर्षित होकर इन्द्र ने, ध्वजस्वरूप उपहार पाय॥
विघ्नों का प्रादुर्भाव और रंगमंच
दैत्य उठे विक्षोभ से, आए रंगभूमि पास।
इन्द्र ने जर्जर कर दिया, उनका हर प्रयास॥
विश्वकर्मा से कहा ब्रह्मा, ‘रचो रंगमंच महान।’
नाट्यगृह का निर्माण हुआ, लक्षणों से परिपूर्ण स्थान॥
ब्रह्मा बोले — ‘हे देवगण, करो इसकी रक्षा।
नाट्यमंच का प्रत्येक भाग, देवमय संरक्षा॥’
पर असुर बोले — ‘हे ब्रह्मन्, तुमने क्यों भुला दिया?
हम भी तुम्हारी सृष्टि हैं, क्यों विषम दृष्टि दिया?’
नाट्य का सर्वलोकिक धर्म
बोले ब्रह्मा ‘नाट्य नहीं केवल देवों का यशगान।
यह तो त्रैलोक्य का चित्र है, कर्म और भाव का ज्ञान॥
यहाँ धर्म भी, काम भी, युद्ध भी, शम का स्वर।
दुष्ट के लिए अनुशासन है, सज्जन हेतु साज स्वर॥’
‘शूरवीर को उत्साह है, विद्वानों को गौरवदान।
दुखियों को धैर्य-प्रदर्शन, विलासी को आनन्द विधान॥
श्रांत, क्लांत, शोक-संतप्त को देगा विश्राम।
धर्म, यश, बुद्धि, दीर्घायु का कर देगा विकास तमाम॥’
नाट्य की महिमा
‘नहीं है ऐसा कोई ज्ञान, न शिल्प, न योग, न कर्म।
जो न समाहित इस नाट्य में, यह है शास्त्रों का मर्म॥
यह नाट्य है सात द्वीपों का, लोककथा का सार।
देव, असुर, ऋषि, गृहस्थ सबकी छवि साकार॥’
‘अंग-वाचिक, सात्त्विक, आहार्य अभिनय इसकी देह।
रंगमंच है देवमंदिर, पूजन उसका श्रेष्ठ नेह॥
इसलिए जो मंच चढ़े, करे देवता का ध्यान।
यज्ञ समान पूजन करे, पावन हो मन प्रान॥’
@Dr. Raghavendra Mishra
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