डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
(लेखक/रचनाकार)
कविता : "शिवस्वरूप अभिनवगुप्त"
शिवस्वरूप अभिनवगुप्त, ज्ञानदीप्ति के ज्योति-पुंज।
त्रिक, स्पन्द औ' प्रत्यभिज्ञा, सब दर्शन तुझमें एक मूंज।।
कश्मीर धरा का दिव्य रत्न तू,
साधना में पूर्ण सनातन तू।
स्वातन्त्र्य गूढ़ रहस्य रच,
चेतन रस बरसा अमृत तू।।
शिवस्वरूप अभिनवगुप्त...
शिव का स्वप्न, शक्ति का नर्तन,
तेरी वाणी में गूँजता अनन्तन।
ज्ञान बोध की धारा बहती,
रस में डूबे सुर और चन्दन।।
शिवस्वरूप अभिनवगुप्त...
नाट्यरंग में रस का जादू,
मुक्ति का भी मिल जाए स्वादु।
जो स्वयं को पहचाने अंतर,
वह हो तेरा सच्चा निरन्तर।।
शिवस्वरूप अभिनवगुप्त...
स्वयं में ही शिव है छुपा,
भूल मिटा दे अज्ञान घटा।
अभिनवगुप्त सिखाए हमें,
स्वरूप बोध की गहरी वता।।
शिवस्वरूप अभिनवगुप्त...
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