डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
प्रत्यभिज्ञा दर्शन पर आधारित भजन/गीत:
वह शिवस्वरूप तू ही है, तेरे भीतर है परमात्मा,
अज्ञान के आवरण से, छिपा है तेरा ब्रह्म रूपण।
समझ ले इस सत्य को, खोज ले अपना आत्मा,
दृष्टि तुझे मिल जाए, बोध में हो समर्पण।
त्वमेव शिवः, तू ही शिव है,
चिंतन में जागे आत्मा की पहचान।
त्वमेव शिवः, तू ही शिव है,
यही है तेरा अद्वितीय रूप।
शक्ति का समागम है, तुझमें सब छिपा हुआ,
जगत रूपी सृष्टि तेरा ही विस्तार है।
स्वातन्त्र्य से है उत्पन्न, यह सृष्टि तेरी ही माया,
हर कण में बसा है, तू ही साकार है।
त्वमेव शिवः, तू ही शिव है,
चिंतन में जागे आत्मा की पहचान।
त्वमेव शिवः, तू ही शिव है,
यही है तेरा अद्वितीय ज्ञान।
विस्मृति ने हमें, जगत में बंधन डाला,
पर अब ज्ञान से, पुनः शिवत्व की पहचाना।
बंधनों को तोड़ दे, सच्चे स्वरूप का हो बोध,
तू है मुक्त, तुझमें है मोक्ष का ठिकाना।
त्वमेव शिवः, तू ही शिव है,
चिंतन में जागे आत्मा की पहचान।
त्वमेव शिवः, तू ही शिव है,
यही है तेरा अद्वितीय रूप।
अब बोध के साथ, हर क्षण तू साफ़ देख,
प्रत्यभिज्ञा ने खोले, तेरा असली रूप।
यह जन्म, यह जीवन, बस एक अनुभव है,
साक्षात्कार हो जाए, हर दिन तुमसे मिल भूप।
त्वमेव शिवः, तू ही शिव है,
चिंतन में जागे आत्मा की पहचान।
त्वमेव शिवः, तू ही शिव है,
यही है तेरा अद्वितीय ज्ञान।
@Dr. Raghavendra Mishra
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