डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
(लेखक/रचनाकार)
*नवरस दोहावली*
१. शृंगार रस (प्रेम और सौंदर्य)
प्रेम सुधा रस बरसता, मन मोहे हर बार।
मधुर दृष्टि से जगत में, खिलता शृंगार।
२. वीर रस (शौर्य और पराक्रम)
भय को चीर चला वीर, करतल में तलवार।
धैर्य धारण कर बढ़े, हो जयजयकार।
३. करुण रस (वियोग और करुणा)
विरह वेदना बह रही, नयन बहे जलधार।
हृदय पिघल कर रो रहा, करुणा अपार।
४. रौद्र रस (क्रोध और प्रतिशोध)
भृकुटि टेढ़ी हो उठी, ज्वाला भरे नयन।
रौद्र रूप धर कर चले, संहार करे क्षण।
५. हास्य रस (हँसी और विनोद)
हंसी फूटी कलि समान, मन बगिया मुसकाय।
चुटकुलों की फुहार से, छाये मधुमाय।
६. भयानक रस (भय और आतंक)
काले मेघ घिर आये, काँपे धरणी डोल।
भयानक भय फैला गया, गहन अंधियोल।
७. बीभत्स रस (घृणा और विकर्षण)
दुष्ट कर्म देखी जब, मन में उठी घृणा।
बीभत्स दृश्य विकृत करे, छीने सुधि सना।
८. अद्भुत रस (आश्चर्य और विस्मय)
नयन चकित रह जाय जब, देखे नव प्रकाश।
अद्भुत लीला हर दिशा, करे जगत विलास।
९. शान्त रस (शांति और निर्विकारता)
मन निर्लेप हुआ जब, बुझ गये विकार।
शांत रस की धार में, मिला ब्रह्म अपार।
नव रस के इस सागर में, भरत मुनि की छाप।
नाट्यशास्त्र अमर बना, जग में जगमग आप।
@Dr. Raghavendra Mishra
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