Wednesday, 16 April 2025

 डॉ. राघवेन्द्र मिश्र , BSVN, नोएडा 


*भजन*


 *"विश्व में गूँजे सनातन की बानी"*


गूँजे वेदों की वाणी, दिशा-दिशा में प्राचीनी,

सनातन की छाया, बसी विश्व भूमि में निर्मनी।


अजरबैजान में अग्नि जले, बाकू की ज्वाला कहे,

अरमेनिया के गार्नी में, सूर्य देव की सदा सवे।

इजिप्ट के कोम्बू मंदिर में, चरक, सुश्रुत का नाम,

साक्षी बने हैं शिलालेख, संस्कृति का हो अविराम।


विश्व में गूँजे सनातन की बानी,

भारत की वाणी, विश्व की कहानी।

धन्वन्तरी की औषधि पुरानी,

सब ओर फैली आयुर्वेद ज्योति रवानी।


अमेरिका की घाटियों में, ब्रह्मा-विष्णु के स्वर,

नवाडा की पर्वत-श्रृंखलाएँ, कहें सृष्टि के रहस्य अपर।

चीन की दीवारों पर, संस्कृत के अक्षर अमर,

जिनसे बोलती भारत माटी, युगों की गाथा भर।


पग-पग पर चिन्हित है यशगाथा,

सनातन की है यह अद्वितीय परिभाषा।

सेल्टिक, इंका, पैगन धारा,

सबमें झलके एक ही आशा।


ताशकंद, समरकंद की गलियों में गूंजे मन्त्र,

विलीनैस की पगान कथा में, शाश्वत धर्म का तंत्र।

कम्बोडिया, थाईलैंड, वियतनाम की मिट्टी कहे,

इंडोनेशिया के द्वीपों में, श्रीराम का भाव बहे।

श्रीलंका से स्वीडन तक जो,

गूँज रहा भारत का सजंगा।

ज्ञान, योग, शास्त्र की गंगा,

पवित्र करे युग-युग की तरंगा।

गुप्ता की पुस्तक में उभरे, हिंदु अमेरिका के स्वर,

१२वीं सदी तक बसे थे, भारतवंशी जन समर।

रोम, यूनान, हंगरी तक, संस्कृत की थी बानी,

सनातन की जड़ें फैली, जैसे गगन में रवि रश्मि वाणी।

विश्व बने सनातन धारा,

शांति, सत्य और प्रेम हमारा।

भारत बोले, विश्व बोले,

"धर्मो रक्षति रक्षितः" बोले।

@Dr. Raghavendra Mishra 

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