डॉ. राघवेन्द्र मिश्र
(लेखक/रचनाकार)
"तप की आग से खिला था एक पुष्प अमर"
(स्वर्गीय जवाहर लाल मिश्र जी को समर्पित राष्ट्रभक्ति गीत)
तप की आग से खिला था एक पुष्प अमर,
धरती बोली देखो जनमा मेरा वीर समर।
यातना की ज्वाला में जिसने फूल खिलाए,
ऐसे दीप को कोटि प्रणाम! चरणों में शीश धर।।
सोनभद्र की माटी का लाल,
काशी में सींचा स्वप्न विशाल,
संघ के पथ पर चला भूपाल,
हिम्मत से जीता हर भूचाल।
जीवन को साधना बना, तप का दीप जला,
वन उपवन में गूँजा जयजयकार का स्वर।।
तप की आग से खिला था एक पुष्प अमर...
भूखे शिकारी कुत्ते छोड़े,
रातें बीती चींटियों संग रोड़े,
लेकिन ध्येय न डिगा क्षणभर भी,
संघर्ष बना उनका अभिनन्दन जोड़े।
तानाशाही की रातों में, ज्योति बन शोले,
कण-कण में भर दी स्वदेश प्रेम की लहर।।
तप की आग से खिला था एक पुष्प अमर...
साइकिल लेकर चले गाँव-गाँव,
पाँव-पाँव मापा पूरा धाम,
संगठन बोए बीज समर्पण के,
फलते हैं जो बनके चिर आयाम।
रामजन्मभूमि की यात्रा के सारथी बने,
धर्म ध्वजा फहराई हर गली, हर नगर।।
तप की आग से खिला था एक पुष्प अमर...
रोग जर्जर तन को त्याग चले,
देवों से मिलने पथ पर आज चले,
पर उनकी साधना अमिट रहे,
युग युगांतर तक दीपक जाग चले।
उनकी प्रेरणा से हम बढ़ें, विजय पताका लहरायें,
भारत माता को करें हम वंदन नवपुष्प अर्पित कर।।
तप की आग से खिला था एक पुष्प अमर...
@Dr. Raghavendra Mishra
No comments:
Post a Comment