Monday, 28 April 2025

 डॉ. राघवेन्द्र मिश्र 

(लेखक/रचनाकार)

"सदाशिव की अनन्त विभा से,

उत्पन्न हुआ वह ज्ञान अपार।"

सदाशिव की अनन्त विभा से,
उत्पन्न हुआ वह ज्ञान अपार।
कश्मीर धरा पर फूटा जिसमें,
चेतन की अनुगूँज सकार।

त्रिक तत्त्व का गहन अनुसंधान,
अद्वैतभाव का अनुपम ज्ञान।
शिव ही सत्ता, शिव ही स्वरूप,
शक्ति में रचता निज प्रमान।

वसुगुप्त ने शिवसूत्र रचा,
उर में गूँजी दिव्य ध्वनि।
स्पन्दन की लीला कल्लट ने,
जग में खोली गूढ़ कवि।

उत्पलदेव की प्रत्यभिज्ञा,
जागृत करती चैतन्य दीप।
अभिनवगुप्त ने तंत्रालोक,
सुधा सुनाकर कर दिया सीप।

न बंधन सत्य, न मुक्ति दया,
चित्तस्वरूप ही मोक्ष का पथ।
आत्मस्वरूप की जो करे पहचान,
वह पाए शिवमय अमृतज्ञान।

विज्ञान भैरव के ध्यान सुधा से,
श्वास-शब्द-स्पर्श में अनुभव हो।
अणु-परमाणु में खोजे हर शिव को,
क्षण-क्षण में शिव का भाव संभव हो।

क्रम, स्पन्द, प्रत्यभिज्ञा मर्म,
कौलमार्ग से खुलते हैं धर्म।
अद्वैत सत्य का सहज उद्घोष,
प्रकाशित करता स्वकर्म।

कश्मीर शैव का अमर प्रकाश,
आज भी साधक के हित में है।
चेतना का उन्मेष अनूठा,
सर्वत्र शिव चेतनचित्त में है।

@Dr. Raghavendra Mishra 

No comments:

Post a Comment