Thursday, 5 June 2025

गुरुजी गोलवरकर के सनातन विचार(कविता)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

वह ज्योति पुञ्ज थे भारत के,
संघध्वनि में जिसका आह्वान होवे।
धरा चिंतक, संस्कृति के पूजक 
गुरुजी का जीवन ही आदर्श होवे।।

न सियासत, न तख़्त की चाह,
था एकात्म का सत्य संदेश।
धर्म, राष्ट्र, समाज, अध्यात्म,
संग-संग चला एक परम प्रवेश।।

हिंदू न कोई मज़हब मात्र,
यह तो जीवन की धारा है।
भू, पूर्वज, भाषा, विश्वास,
सबमें सनातन प्यारा है।।

संस्कृति जिसकी श्वास बनी,
संघ जहाँ से दिशा पाए।
विद्या जहाँ चरित्र बने,
वह शिक्षा गुरुजी सिखलाए।।

राम बने कर्म के प्रतीक,
कृष्ण बने नीति के सार।
योग, तप, सेवा, समर्पण,
गुरुजी का जीवन था अपार।।

“राष्ट्र सेवा ही ईश्वर सेवा”,
हर शाखा में प्रतिध्वनित हो।
गाँव-गाँव, नर-नारी जागें,
यह यज्ञ कभी न कक्षणितु हो।।

मंदिर केवल ईंट न पत्थर,
वह संस्कृति की साँस बने।
व्रत, पर्व, परंपरा-सेतु,
जन से जन का सदा साथ घने।।

न भूले हम नेशनहुड,
न छूटे बंच आफ थाट।
हिंदुस्थान की आत्मा बोले,
गुरुजी के वे अनुपम बात।।

आज जब भारत चेतन बना,
और विश्व में जयघोष उठा।
तो गुरुजी की वाणी बोले,
शाश्वत सनातन सदा टिका।।

गुरुजी थे संस्कृति के प्रहरी,
राष्ट्रबोध के दीप हमारे।
आज भी पथ उन्हीं का सुंदर,
कल के दीपक, आज के तारे।

गुरुजी के सनातन विचार केवल अतीत नहीं,
बल्कि सनातन भारत के भविष्य का निर्माण हैं।

डॉ. राघवेंद्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

8920597559

@Dr. Raghavendra Mishra, JNU 

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