Sunday, 1 June 2025

राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच" इसके उद्देश्य, कार्य और राष्ट्रभक्ति के भाव को प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत कविता 

राष्ट्रीय सुरक्षा जागरण मंच : एक राष्ट्रगाथा

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

जागो भारत के प्रहरी बनो, रक्षण का व्रत धारो,
धरा पुकारे वीरों को अब, चेतन स्वर से पुकारो।
यह मातृभूमि तपोभूमि है, ना दुर्जन इसे झुकाए,
"सुरक्षा-जागरण" का दीप जलाकर तम को दूर भगाए॥१॥

जब सीमा पर लड़े जवान, लहू करे बलिदान,
तब हम भी बनें प्रहरी तन, बढ़े राष्ट्र का मान।
विचारों में नहीं विष बहे, न हो संशय का द्वार,
संस्कृति-सुरक्षा ही धर्म है, यही हमारा सार॥२॥

कश्मीर की वादी बोले अब, गूंजे भारतगान,
नक्सल के जंगल कांप उठें, जागे नव अभियान।
साइबर के रण में भी अब तो, रचे नीति महान,
युवा बनें तलवार विचार की, करें राष्ट्र कल्याण॥३॥

संवादों से सुरक्षा हो, हो शास्त्रों का शुभ वाद,
शक्ति के संग नीति चले, हो साहस का संवाद।
ध्वजा हमारी उन्नत रहे, हो वाणी में शान
वाम विकारों से मुक्त हों, यही हमारा संकल्प गान॥४॥

नवचेतना का रथ चला है, जागे नव विश्वास,
ज्ञान-विज्ञान-संस्कारों से हो भारत का प्रकाश।
‘राष्ट्र प्रथम’ यह मंत्र रहे, हर जन-मन में ज्योति,
"जागरण मंच" बना प्रकाशक, नवयुग का शुभ मोती॥५॥

चलो बढ़ें उस यज्ञ पथ पर, जहाँ निःस्वार्थ विचार,
देशभक्ति हो धर्म जहाँ का, हो जन-जन में प्यार।
रक्षा केवल शस्त्र नहीं है, रक्षा है संस्कार,
राष्ट्र-सुरक्षा है जीवन का सबसे बड़ा आधार॥६॥

जय भारत! जय सुरक्षा! जय संस्कृति!

@Dr. Raghavendra Mishra 

8920597559

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