संविधान के सनातनी शिल्पीकार: बी. एन. राव को समर्पित राष्ट्रकाव्य
डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)
मंगल भूमि, मद्रास की माटी, मैंगलोर की छाया,
जनमे वहाँ नरसिंह राव, न्यायवृक्ष की काया।
रामनाथ के पुत्र तेजस्वी, संस्कृति में लीन,
कैम्ब्रिज में विधि पढ़े, ऋषियों जैसे हो तल्लीन।।
संस्कृत, हिंदी, फ्रेंच, जर्मन, तेलुगु, कन्नड़ भाषा,
शब्दों में वे गूँथते थे न्याय की परिभाषा।
विद्या का वह संगम जिसमें संस्कृति झलकती थी,
विधि के शुष्क वनों में भी सरिता बहती थी।।
जब नवभारत खोज रहा था, स्वराज्य का आधार,
राव बने तब मौन ऋषि, शब्दों में विस्तार।
संविधान सभा के भीतर, उन्होंने दीप जलाया,
प्रत्येक अनुच्छेद में भारत की आत्मा समाया।।
"न्याय नहीं शुष्क सूत्र, वह धर्म की छाया है,
‘ऋत’ और ‘नीति’ का संगम, यही विधि की माया है।
संविधान केवल ग्रंथ नहीं, वह राष्ट्र की गीता है,
कर्तव्य, धर्म और सौंदर्य से जिससे प्रजा संजीविता है।।
बहुजातीय, बहुभाषी भारत की वह संहिता,
धर्मों का समन्वय जहाँ, न कोई सीमा रीता।
ना ‘सेक्युलर’ की परिभाषा, ना पश्चिमी बोली,
भारतीय समरसता में थी, जिसकी हर पंक्ति डोली।।
ध्यान, योग, उपनिषद, गीता की शुद्ध वाणी,
उनके विचारों में गूँजती, भारतीय दृष्टि पुरानी।
संविधान वही जो जीवन को संतुलन दे,
सत्ता नहीं, सेवा बने; पद नहीं, परमार्थ सहे।।
विश्वमंच पर जब पहुँचे, भारत का प्रतिनिधित्व किया,
इंटरनेशनल कोर्ट में न्याय का दीपक प्रज्वलित किया।
न्याय की वह भाषा जिसमें, वेदों की ध्वनि समायी,
भारतीय संस्कृति की गरिमा, फिर विश्वजनों ने पायी।।
हिन्दू लॉ, कंस्टीट्यूशन मेकिंग, कॉर्नर स्टोननेशन महान,
राव के लेखन में दिखे, भारत के संविधान के प्रान।
नियम सही, वह रचना जिसमें राष्ट्र की धड़कन हो,
विधि वही, जो वेदी जिसमें सनातन का दर्पण हो।।
हे नरसिंह राव! सनातन के दीपक, विधि के योगी,
भारत की आत्मा के भाव, शब्दों में बाँधनेवाले जोगी।
तेरे ऋषितुल्य श्रम से बना जो संविधान महान,
वह न हो केवल पुस्तक, बने भारत का जीवंत गान।।
नमन तुम्हें, हे मौन ऋषि!
न्याय और धर्म के पथदर्शी!
भारत की चेतना के व्याख्याता,
संविधान से सनातनी नाता!!
जहाँ विधि में सौंदर्य हो, और संविधान में संस्कृति की ध्वनि,
वहां बी. एन. राव जैसे महापुरुषों की स्मृति शाश्वत शुभ घनी ।
@Dr. Raghavendra Mishra JNU
8920597559
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