Monday, 2 June 2025

गरीब और वंचितों के दीपक: रामविलास जी...

(एक समग्र काव्य-पुंज: कविता)

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

खगड़िया की मिट्टी में, उगा एक तेजस्वी फूल,
दलितों की आँखों में, बनकर आया संकल्प मूल।
नाम मिला 'रामविलास', पर जीवन था लोकविलास,
हर हृदय की वेदना को, समझे जैसे भाव-प्रकाश।।

ना कोई सिंहासन, ना कोई कुलीन गाथा,
पर उनकी नज़र में था, भारत से असली नाता।
जिनको न इतिहास ने गिना, वह उनके गीत बने,
भीमराव के स्वप्नों को, साकार सजीव बने।।

जाति नहीं जन्म से, कर्म से मानव होता है,
जहाँ समता हो जीवन में, वहीं धर्म सजता है।
न्याय जहाँ भोजन जैसा, सम्मान हो हर घर में,
ऐसा दर्शन रामविलास ने देखा सभी अक्षर में।।

ना केवल पर्व, ना केवल रीत,
संस्कृति है जहाँ मिले सबको प्रीत।
नाट्य नहीं यदि दलित नाचे नहीं,
गीत नहीं यदि पीड़ित गाए नहीं।
संस्कृति वही जो सबका हो भाग,
जिसमें हो समरसता का अनुराग।।

संस्कृति वही जो बंदिशें तोड़े,
नवचेतना की नयी राह मोड़े।
सौंदर्य वही जहाँ अश्रु भी चमके,
जहाँ श्रमशील कर्मठ हाथ दमके।
वे कहते "रूप नहीं रंग का मोल,
सत्य का तेज है सुंदरता का गोल।।"

काग़ज़-कलम से ही तो बदले विचार,
वह शिक्षा सही, जो सबको दे प्यार।
हर बालक को दो ज्ञान की मशाल,
ताकि अंधकार में भी दिखे उसे चाल।
गाँव-गाँव में स्कूल उत्तम चले,
नारी हो या दलित सबका भविष्य फले।।

योग नहीं केवल देह का मोल,
यह तो है आत्मा का मूल अनमोल।
रामविलास ने योग को कहा,
"यह संयम है, भीतर को तोल।"
ध्यान था उनका कर्म,
और भक्ति जनसेवा धर्म।।

मंदिर के द्वार जब बंद मिले,
उन्होंने आह्वान किया “ताले खुलें!”
ईश्वर न जात पूछे, न वंश,
हर प्राणी में बसता है उसका अंश।
भक्ति वही जो बंधन तोड़े,
हर मानव को भगवन से जोड़े।।

राजनीति नहीं था उनके लिए सिंहासन,
यह है एक यज्ञ, जनसेवा का आसन।
रेलमंत्री हों या मंत्री उपभोक्ता,
हर पद पे किया समाज का सुनियोक्ता।
दलितों के हक़ की बनी आवाज़,
लोक जनशक्ति में था संघर्ष का राज।।

"ना केवल आरक्षण, चाहिए सम्मान भी,"
हर ग़रीब को मिले समान स्थान भी।
कुरीतियों से लड़े, व्यथा से भिड़े,
सत्ता में रहते हुए भी सत्य से जिए।
उनके जीवन में छिपा वह गीत,
जो गूंजेगा युगों तक संप्रीत।।

अब भले वो न हों इस धरा पर,
पर विचार हैं हर पथ, हर घर।
रामविलास वो दीप हैं, जो बुझे नहीं,
हर अंधेरे को वो आलोक से छुए सही।
पीढ़ियाँ उठें नयी उनके नाम से
समानता का झंडा ऊंचा हो शान से।।

@Dr. Raghavendra Mishra, JNU 

8920597559

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