Thursday, 5 June 2025

गुरु माधवराव गोलवलकर जी सनातन एकात्म मानव जीवन-दर्शन के विचारक के रूप में:

डॉ. राघवेन्द्र मिश्र, JNU (लेखक/रचनाकार)

वर्तमान भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण में यदि किसी एक व्यक्तित्व का सर्वाधिक योगदान रहा है, तो वह हैं गुरु जी माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर, जिन्हें स्नेहपूर्वक ‘श्री गुरुजी’ कहा जाता है। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के द्वितीय सरसंघचालक होने के साथ-साथ एक राष्ट्र द्रष्टा, दार्शनिक, और राष्ट्रऋषि भी थे, जिनके विचारों ने सम्पूर्ण भारत के युवाओं, चिंतकों और समाजसेवकों को दिशा प्रदान किया। गुरुजी का जीवन-दर्शन भारतीय संस्कृति की आत्मा से अनुप्राणित था। वे भारत को केवल एक भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक सत्ता मानते थे। उनके विचारों में धर्म, राष्ट्र, समाज, और अध्यात्म ये सब पृथक-पृथक नहीं, बल्कि एकात्म रूप में समाहित थे।

सनातन हिंदुत्व: एक समग्र सांस्कृतिक दृष्टि

श्री गुरुजी ने 'हिंदुत्व' को संकीर्ण धार्मिक पहचान से कहीं ऊपर उठाकर एक जीवनशैली, परंपरा और मूल्य-व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया। उनके अनुसार, "हिंदू कोई पंथ नहीं, बल्कि इस देश की भूमि, पूर्वजों, संस्कृति और जीवन-मूल्यों से निष्ठा रखने वाला प्रत्येक व्यक्ति है।"

सनातन शिक्षा और संस्कृति: चरित्र निर्माण का आधार–

गुरुजी आधुनिक शिक्षा प्रणाली के ‘पश्चिमीकरण’ पर चिंता व्यक्त करते थे। उनका मानना था कि शिक्षा का लक्ष्य केवल नौकरी या तकनीकी दक्षता नहीं, बल्कि चरित्र, आत्मबल और राष्ट्रनिष्ठा का निर्माण होना चाहिए। उन्हीं की प्रेरणा से संघ से जुड़ी विद्याभारती, भारतीय शिक्षा मंडल जैसी संस्थाएं पनपीं।

अध्यात्म और राष्ट्रधर्म:

गुरुजी ने अध्यात्म को केवल मोक्ष या आत्मकल्याण का साधन नहीं, बल्कि राष्ट्रनिर्माण का नैतिक आधार माना। वे श्रीराम और श्रीकृष्ण को केवल पूज्य देवता नहीं, बल्कि आदर्श कर्मयोगी और राष्ट्रपुरुष मानते थे। उनके जीवन से उन्होंने कर्म, भक्ति और सेवा का प्रेरणा-स्रोत लिया।

सनातन जनसेवा ही ईश्वर सेवा:

श्री गुरुजी का मूल मंत्र था “राष्ट्र सेवा ही ईश्वर सेवा है।” उनके जीवनकाल में संघ की शाखाएँ गाँव-गाँव तक पहुँचीं, और उन्होंने लाखों स्वयंसेवकों को निःस्वार्थ सेवा, सामाजिक समरसता, और जाति-विभेद से मुक्त भारत के निर्माण हेतु प्रेरित किया।

सनातन वैचारिक धरोहर:

उनकी पुस्तकें जैसे “We or Our Nationhood Defined” और “Bunch of Thoughts” आज भी लाखों राष्ट्रप्रेमियों के लिए चिंतन के स्तंभ हैं। इनमें उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत की एकता केवल संविधानिक व्यवस्था से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक समरसता और धार्मिक सहिष्णुता से टिकाऊ बन सकती है।

 मंदिर, परंपरा और समाज:

गुरुजी के अनुसार मंदिर केवल पूजा का स्थल नहीं, बल्कि सामाजिक जीवन की धुरी है जहाँ व्यक्ति अपने अस्तित्व से ऊपर उठकर समाज के साथ जुड़ता है। उनकी दृष्टि में मंदिर, पर्व, व्रत, सभी भारतीय समाज की सांस्कृतिक कड़ियाँ हैं।

श्री गुरुजी माधवराव गोलवलकर केवल संघ के नेतृत्वकर्ता नहीं थे, वे भारत के सांस्कृतिक आत्मबोध के जाग्रतक थे। उनका समर्पित जीवन हमें यह सिखाता है कि राष्ट्रनिर्माण का मार्ग केवल राजनीति से नहीं, बल्कि संस्कृति, सेवा, और अध्यात्म से होकर जाता है। आज जब भारत वैश्विक मंच पर आत्मनिर्भर और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ओर उन्नत हो रहा है, तब गुरुजी की एकात्म दृष्टि और मूल्याधारित नेतृत्व हमारे लिए प्रेरणा का शाश्वत स्रोत है।

“गुरुजी के विचार केवल अतीत नहीं, वर्तमान और भविष्य की भी राह दिखाते हैं।”

@Dr. Raghavendra Mishra JNU 

8920597559

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